मैं नैना से सबसे पहले मिस रोहतगी के डांस स्कूल में मिला था। अगस्त का महीना था जिसमें बारिश अगर तेज हो जाए तो वक्त अच्छे से गुजर जाता है। लेकिन अगर थोड़ी सी बूंदाबांदी हो कर रुक जाए तो अगस्त महीने में जो उमस होती है। उसे झेलना वाकई बहुत मुश्किल होता है।
कोरोना के बाद अनलाॅक टू चल रहा था। उसकी दीदी के कोचिंग क्लासेस बंद हो गये थे। और थोड़े बहुत यानी दो- चार स्टूडेंट्स प्राइवेट ट्यूशन के लिए घर पर ही आ रहे थे।
कुल मिलाकर वे सब थोड़े परेशान थे।
नैना का खूबसूरत चेहरा जिस पर जब- तब उसके घुंघराले बाल बेकाबू हो कर आ जाते।
बहुत सजी- संवरी तो नहीं रहती थी। वह पर अपने अस्त- व्यस्त रूप में भी उतनी ही खूबसूरत लग रही थी।
नजर से नजर मिलाकर पूछे गए सवाल से भी उसे न तो कोई शिकवा ना शिकायत थी ना उसमें कहीं से भी दंभ था।
उदास मुस्कुराहट , निर्दोष और निष्पाप सी आंखें।
उसने पहले मुझे गौर नहीं किया और देख कर भी अनदेखा कर दिया। उसके परिवार के लिए वे बुरे दिन चल रहे थे।
सिर्फ मिस रोहतगी ही उसे जानती थीं। उनके डांस स्कूल में आने वाले बड़े और अमीर घरों के बच्चों की राज उसके बारे में अच्छी नहीं थी। वे उसकी साधारण कपड़ों वाली जानलेवा खूबसूरती को अपने बीच देख कर सहज नहीं रहते।
लेकिन वह इसकी जरा भी परवाह नहीं करके आम लड़कियों की तरह खाली वक्त में उनसे बातें करने के बहाने ढ़ूढ़ंती रहती। या फिर किनारे रखी कुर्सी पर बैठी ध्यान से उनके थिरकते हुए डांसिंग स्टेप्स देखती।
उसके इसी सीमित व्यवहार ने मुझे उसके प्रति अधिक सतर्क बना दिया था।
उसे अच्छी तरह जानने की शुरुआत मैंने मिस रोहतगी के कहने पर की। हम एक नये नाटक कंपनी खोलने की सोच रहे थे।
यों कि सच है कि नैना को मैं शुरू से ही चोर निगाहों से देखता रहा हूं। उसकी चाल- ढ़ाल, उसके कपड़े और रंगों की खास पसंद , उसके बातचीत का सलीका को देखकर जाने अंजाने ही बहुत कुछ सोचता रहा हूं।
कितनी दफा इच्छा होती कि उससे कुछ बातें करूं कुछ पूछूं । वह हमेशा मुझको शाम की तरह विचारों में उलझी हुई और अपने आप में डूबी हुई लगती।
पर उस दिन डांस स्कूल में सिर्फ वो और मैं था और हम दोनों ही एक दूसरे से सहज नहीं हो पा रहे थे।
नैना उस हाॅल के कोने वाली कुर्सी जिसपर सदा बैठती है बैठी हुई हाथ में पकड़े हुए किताब को उलट- पुलट कर रही थी।
जबकि मैं उससे कुछ दूरी पर अपनी कुर्सी पर बैठा हुआ था।
मुझे रह- रह कर उसे देखने के सिवा और कुछ सूझ नहीं रहा था। तब मैं उकता कर खुद अपने – आप से ही पूछ बैठा कि —
” कि क्या नैना यह नहीं जानती कि मैं उसे लगातार घूरे जा रहा हूं और मेरे पास आए इसके सिवाय कोई काम नहीं बच रहा है “
थोड़ी देर बाद वह उठी , उसने ठिठक कर मेरी तरफ देखा मैं नज़रें उसकी तरफ से हटा कर दूसरी तरफ करना ही चाहता था कि वो मेरे पास आई और हल्के से मुस्कुराई , वही उदास मुस्कुराहट।
उसने लाल रंग की बांधनी सूती सूट जिसपर पीले रंग बूंदें बने हुए थे और जो थोड़ा सा घिसा हुआ भी था पहन रखा है।
उसीसे मिलती – जुलती अपनी चमकती काली भौंहों के बीच छोटी सी पीली बिंदी लगा रखी थी।
क्या गजब ढा रही थी ! उस साधारण सूती परिधान में भी बेहद सुंदर और लावण्यमयी !
उसकी धीमी चाल से चलकर मेरे करीब आते जाने से लाख संयत करने पर भी मेरी सांसें अनियंत्रित हो रही थीं।
मेरे सामने रुक कर वह मेरे चेहरे पर मानों कुछ टटोलती हुई सी मुस्कुरा पड़ी ,
” मिस्टर शोभित ,
कहती हुई मेरी कलाई थाम ली। मैं अकचका कर उठ गया और कुर्सी पीछे खिसका कर उसके बराबर में खड़ा हो गया और उसके बालों को सहलाने लगा।
उसकी आंखें सूर्ख लाल हो चुकी थीं।
अपने बालों को सहलाते मेरे हाथों को उसने अपने कंधे और गालों के बीच दबा दिया।
तब मैंने उसे पहली बार ध्यान से देखा।
उसकी गर्दन किताबों में लिखी सुराहीदार गर्दन का जीता जागता नमूना है।
जिसे बालों के खत्म होते – होते छोटे- छोटे भूरे रोयें ने मखमली बना दिया था।
गौर से देखा तो वो बहुत अधिक उजली और चमकदार लग रही थी जिस पर छिड़की हुई टेलकम पाउडर की भीनी- भीनी खुशबू किसी को भी मदहोश कर देने के लिए काफी थे।
शायद उस खुशबू ने मुझे हिम्मत दी कि मैं ने उसके बालों को धीरे से सहलाया और कानों के किनारों को दबाते हुए गाल थपथपा लिए।
पहले तो वह भी काफी देर तक लड़ियाती हुई नजरों से मुझे देखती रही फिर छत की तरफ देख आंखें कस कर बंद कर लीं।
अब इस बात गुजरे सालों हो चुके हैं तो ठीक से याद नहीं हमारे बीच बातचीत किस बात से शुरू हुई और किस बात से हमारी घबराहट कम हुई।
उस रात के बाद कब हम औपचारिकता छोड़ कर आत्मीय बातें करने लगे।
याद है तो इतना कि बस नैना ने बहुत मासूमियत से पूछा था ,
” तुम मेरे बारे में कितना और क्या जानते हो शोभित ? “
फिर हम अक्सर शाम में मिलने लगे थे। लेकिन उन लंबे रास्तों पर चलते हुए भी वह अक्सर चुप और उदास ही रहती।
मिस रोहतगी का कहना था कि नैना मुझे पसंद करने लगी है।
पर मैं प्रेम के मामले में हमेशा कमजोर और दुर्भाग्यशाली रहा हूं। मैंने यह बात नैना को भी बताई । तो वह मुझसे बीती जिंदगी के बारे में खोद- खोद कर पूछने लगी।
और कुछ भी बात शुरू करने के पहले मुझे बीच में ही रोक देती। जबकि मैं उन बातों को अपनी स्मृतियों से भी मिटा देना चाहता हूं कि ,
” उन दिनों मैं माएरा नाम की किसी लड़की का दोस्त रह चुका था “
उदासी के भंवर में डूबे हुए किसी भी इंसान को हंसाना बहुत मुश्किल होता है। आप लाख कोशिश करेंगे तब भी उसे आपकी बातों पर विश्वास नहीं होगा।
क्यों कि सामने वाला यह जानता है कि आप उसे हंसाने की बनावटी कोशिश कर रहे हैं।
लिहाज़ा उसके मन को टटोल कर आपको वहां जाना होता है। जहां उसके आनंद का झरना बह रहा है। “
तो उस आनंद के झरने तक जाने के प्रयास में मुझे पता चला था। वह ,
” आत्मविश्वास से भरी हुई अपनी भावी जिंदगी के प्रति बेहद आशान्वित थी।
पैसे कमाना सिर्फ उसका जुनून नहीं बल्कि जरूरत थी। लेकिन वह जानती थी परिवार का सहयोग उसे नहीं मिल पाएगा और इसी से वह थोड़ी उदास और गहरी ऊहापोह से भरी रहती “
मैं उन दिनों अपने नये नाटकों की शुरूआत कर रहा था।
तो अपने अंदर साकारात्मक उर्जा का संचार करना चाहता था।
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डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग 2)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi
सीमा वर्मा