दर्द ने ही दर्द का एहसास दिलाया !!- मीनू झा

वह अपना दर्द कभी किसी को नहीं बताती यह तो मैं शुरू से जानती हूं..पर इतनी अहम बात उसके पति होने के नाते आपको तो पता होनी चाहिए विनीत जी..इतने दिनों का दाम्पत्य जीवन साथ गुजारने के बाद भी आप उसके हृदय की थाह ना पा सके ना सही,उसकी शारीरिक तकलीफ़े भी नहीं दिखी आपको…??? निहारिका जी… मैंने तो अपना सबकुछ सौंप दिया उसे विवाह के बाद..कभी किसी चीज पर प्रतिबंध नहीं लगाया ना किसी बात पर टोकटाक की..वो तो सदा अपने मर्जी की स्वामिनी बनी रही फिर मैं कैसे समझता की वो तकलीफ में है,दर्द से गुजर रही है! अगर सुख सुविधा मुहैया करवा देना ही खुशी का कारण होता तो कोई पैसेवाला इंसान दुखी नहीं होता विनीत जी…समय दिया कभी आपने उसे??

समय…दफ्तर के बाद तो मैं उसके साथ ही होता था हर दिन!! साथ रहने और समय देने में फ़र्क है विनीत जी और कोई छोटा मोटा फ़र्क नहीं बहुत बड़ा फ़र्क है…शायद अब आप इस बात को समझ रहे होंगे..है ना?? निहारिका जी…जीवन ने उस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है कि समझने पर भी कष्ट है और ना समझने पर भी अथाह दर्द…क्या करूं क्या कहूं…कुछ समझ नहीं आ रहा ये समय धैर्य रखने का है विनीत जी…और सबको मौके मिलते हैं मेरा दिल कहता है ईश्वर आपको भी मौका जरूर देगा… विनीत और सारिका शादी के सोलह साल पूरे कर चुके थे…उनके दोनों बच्चे बाहर हाॅस्टल में पढ़ाई कर रहे थे।बेहद शांत स्वभाव की सारिका के उस स्वभाव के पीछे पिता का ना होना और चार भाई बहनों में सबसे बड़ा होना था..जिसे समय और हालात ने जबरदस्ती बड़ा बना दिया था… हालांकि उसके विवाह के समय तक उसका घर अच्छी स्थिति में पहुंच गया था… दोनों भाई नौकरी की राह पर चढ़ चुके थे

और छोटी बहन पढ़ाई कर रही थी जिसके बाद उसकी भी नौकरी पक्की थी। पर एक बेटे की तरह बचपन से घर को संभालने वाली सारिका का मन था कि विनीत उससे कहें —तुम मां को अपने साथ रख लो ना..सभी तो बाहर है बेचारी अकेले कैसे रहेंगी?? अपने माता पिता को शादी होते ही गांव से अपने पास ले आए..सेवा करने वाली जो आ चुकी थी..पर उसकी मां के प्रति कोई संवेदना नहीं..! सारिका ने शादी से पहले स्वेच्छा से नौकरी छोड़ी थी.. क्योंकि उसकी इच्छा थी कि शादी के बाद वो पूरा समय पति और घर परिवार को देगी..पर इस घर परिवार में उसकी मां भी सम्मिलित थीं ये विनीत ने कभी समझा ही नहीं…।




भाईयों के पास मां ज्यादा खुश रहेगी–तुर्रा छोड़ देते अक्सर और व्यस्त हो जाते। पत्नी,बहू,भाभी और मां का नाम तो दिलाता गया विनीत पर सारिका कब अपना “नाम” अपना व्यक्तित्व खोकर अंदर अंदर दर्द रखकर कब उसमें घुलने लगी है ये नहीं देख पाया वो..। विनीत नौकरी में व्यस्त रहता और सारिका घर सास ससुर और बच्चों में…सास ससुर की टूट कर सेवा करने के बाद पति से प्यार भरे शब्दों की अपेक्षा रखती…पर विनीत के लिए तो वो फाॅर ग्रांटेड थी…। अपनी किसी तरह की शारीरिक तकलीफ़ की भी बात कहती तो विनीत कहता–फोन पर डाॅक्टर का नंबर लेकर चली जाओ ना कमी किस चीज की है तुम्हारे पास…वैसे तुम बेकार ही परेशान हो रही हो.. शारीरिक श्रम नहीं करने से ऐसा ही होता है,अपने बढ़ते शरीर के बोझ को कम करो ठीक हो जाओगी।

खैर,इस जीवन में भी खुश रह रही थी वो..पर विनीत का बच्चों को हाॅस्टल भेजने का फैसला फिर सारिका को तोड़ गया.. विनीत बच्चे इतना अच्छा तो कर ही रहे हैं…फिर बाहर क्यों भेजना इन्हें?? सारिका…अच्छा कर रहे हैं, इसे बनाए रखने के लिए ही तो बाहर भेज रहा हूं…भविष्य का भी तो सोचना है काश उसकी भावनाओं का भी एक बार सोच लिया होता। बच्चे बाहर चले गए…सास ससुर वृद्ध और बीमार थे तो अपने में ही व्यस्त रहते..विनीत के पास दफ्तर के बाद जो समय होता वो फोन,टीवी,मित्रगण और मातापिता की सेवा में गुजर जाता…सारिका के ज्यादा मित्र भी नहीं थे ले देकर एक निहारिका थी जो उसे समझती भी थी और समझाती भी..तो उसी से हफ्ते दस दिन में बात कर लिया करती। सारिका…तुझे कुछ हुआ है क्या??एक तो वैसे ही तू कम बोलती थी…इन दिनों तो और हूं और हां मे जवाब देती है… कोई परेशानी है क्या तुझे??—कुछ दिनों से सारिका को और कम बोलता देख निहारिका पूछ ही बैठी क्या परेशानी होगी निहारिका…कमी किस चीज की है मुझे जो तकलीफ होगी—इस बात के पीछे का दर्द उस वक्त निहारिका समझ ही नहीं पाई। एक दिन बदहवास से विनीत ने उसे सारिका के नंबर से फोन किया.. बोल सारिका…इतने दिनों बाद फ़ोन किया तूने मैं विनीत…सारिका…तो अस्पताल में हैं… मैं आती हूं–निहारिका ने स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए ज्यादा प्रश्न नहीं किया।




पता चला पिछले कई महीनों से सारिका को पेट के निचले हिस्से में दर्द रहता था और कुछ ना कुछ परेशानियां लगी रहती थी…पर ना कहीं दिखाया ना सुनाया…अपने मन से दर्द निवारक गोलियां लेती रही…एक दिन दर्द से बेहोश हो गई तो विनीत डाॅक्टर के पास ले गया…पता चला यूट्रस पूरी तरह डैमेज हो चुका है… ऑपरेशन और टेस्ट के बाद पता चलेगा कि कहीं कैंसर तो नहीं…। आज ऑपरेशन था और शाम तक टेस्ट की भी रिपोर्ट्स आनी थी… निहारिका और विनीत बीते समय की गुत्थियां सुलझाने में लगे थे..तभी डाॅक्टर बाहर आया– हमने ऑपरेशन तो कर दिया है..पर कंडीशन बहुत बुरी थी..हम रिपोर्ट्स आने के बाद ही कुछ बता पाएंगे। उफ़…और कितनी परीक्षा लोगे भगवान…एक बार सुधरने का मौका तो दे दो..माफी मांगने का मौका दे दो–विनीत बुदबुदा उठा।

विनीत जी हिम्मत मत हारिए…सारिका ठीक हो जाएगी.. बहुत प्यार करती है आपको… कहीं नहीं जाएगी वो.. विनीत जी आप ही हैं क्या…आपकी वाइफ के रिपोर्ट्स आ गए हैं… डाक्टर मेहता ने आपको अपने केबिन में बुलाया है—एक आध घंटे बाद एक नर्स ने आकर सूचना दी सौ सौ मन के कदमों से बढ़ चला विनीत केबिन की ओर विनीत जी…इतनी खराब कंडीशन देखने के बाद हम लगभग कंफर्म थे कि ये कैंसर ही है..पर इस रिपोर्ट ने तो चमत्कार कर दिखाया…आपकी पत्नी के सारे रिपोर्ट्स नार्मल है…डोंट वरी अब उन्हें कुछ नहीं होगा…आपका प्यार और साथ उन्हें वापस खींच लाया। साथ तो अब मुझे उसका देना है सर..जो अब तक नहीं दे पाया था..अब दूंगा..अब नहीं….हमेशा दूंगा…विनीत के होंठों से अस्पष्ट आवाज सी आई और हाथ ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करने को खुद ब खुद जुड़ गए । सारिका के साथ साथ वो भी उबर जाएगा अब…अपने दर्द ने उसके दर्द का एहसास जो दिला दिया था…। स्वरचित एवं मौलिक 🙏मीनू झा
# दर्द

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