दर्द की दास्तान ( भाग-19 ) – रोनिता कुंडु  : Moral Stories in Hindi

कहानी के पिछले भाग के अंत में आपने पढ़ा, के आनंद सुरैया से उसकी कहानी सुनता है और अंदाजा लगाकर कहता है, कि उसके साथ क्या हुआ होगा..? पर सुरैया ने कहा कि वह जान ही नहीं सकता कि क्या हुआ था उसके साथ..? जब तक के वह खुद ना बताएं..

अब आगे…

सुरैया:   जानते हैं सर जी..? बलात्कार एक लड़की के लिए जीते जी मौत की सजा है, जहां उसका शरीर तो जिंदा रहता है, पर आत्मा मर जाती है और जब सामूहिक बलात्कार हो तो फिर उसका दर्द तो बयां भी नहीं किया जा सकता…

अंगद:   सामूहिक बलात्कार..? सामूहिक बलात्कार हुआ था तुम्हारे साथ…? मुझे तो लगा के सिर्फ आनंद ने..? छि… पता नहीं यह दरिंदे अब तक खुला कैसे घूम रहे थे..? मेरा बस चले तो एक-एक को गोली मार दूं…

सुरैया:   पहले आनंद, फिर उसका जीजा, फिर उसके दो आदमी, फिर तो ना जाने कितने ही आए… शायद मैं वह देखने की हालत में नहीं थी… मेरे बाबा बस चीखे जा रहे थे और मुझे अपने बाबा का वह बेबस चेहरा ही दिख रहा था… हां… यह पता नहीं चल रहा था, कि बाबा उनसे किस बात की माफी मांगे चले जा रहे थे..? पर शायद अब उस बात का जवाब भी मिल गया… शायद वह वीडियो वाली बात का पता उन्हें भी चल गया होगा… एक वक्त ऐसा आया जब बाबा ने चीखना बंद कर दिया… शायद मेरे चिथरो को देखकर वह पत्थर बन गए थे… फिर बाबा ने कहा… आज जो दुर्दशा तुम लोगों ने सुरैया की, की है, अगर इससे भी बदतर दशा मैंने तुम लोगों की ना की तो, मेरा नाम भी माखनलाल नहीं..

बेचारे मेरे बाबा अब भी लड़े जा रहे थे… फिर जो हुआ वह देखने के बाद ही शायद मैं अपने होश खो बैठी…

अंगद:   क्या हुआ उसके बाद..?

सुरैया:  मुझे नग्न और अधमरी हालत में ही खींचकर उन दरिंदो ने बाबा के सामने मुझे पटक दिया… मुझे जरा जरा सा होश था… पर बाबा को देखकर मैं जोर-जोर से बिलखने लगी… बाबा अपनी कमीज खोलकर मुझे ढकने के लिए आगे बढ़े कि, तभी उन दरिंदों ने बाबा को दबोच कर उनके मुंह में जबरदस्ती तेजाब डालना शुरू कर दिया… बाबा की चीख मैं आपको बता नहीं सकती… मेरे आंखों के सामने बाबा तड़प रहे थे…

उनकी तकलीफ शायद ही कोई समझ रहा होगा..! उनके अंदर के अंग उनके मानो गल रहे थे… ना तो वह मर ही रहे थे और ना ही वह छटपटाना बंद कर रहे थे… मेरे अधमरे शरीर में जैसे अचानक जान आ गई… मैं बाबा..! बाबा..! चिखती हुई उनके पास गई… वे दरिंदे हंस रहे थे… शायद मैं नग्न हूं, मुझे इस बात का भी ध्यान नहीं रहा… मैं बस बाबा को पकड़ कर रोए जा रही थी… इतने में भी उन दरिंदों को चैन नहीं मिला… उन्होंने मेरे बाबा को मेरे पास से खींचकर पेड़ पर रस्सी से फांसी पर लटका दिया…  

मेरे सामने मेरे बाबा ने तड़प कर अपना दम तोड़ दिया और उसी के साथ मैंने अपना खुद के साथ रिश्ता भी तोड़ लिया… उसके बाद फिर मेरे जीवन में आगे क्या हुआ..? मुझे कुछ पता नहीं… उन्होंने मुझे क्यों जिंदा छोड़ा..? मैं यह भी नहीं जानती… यह कहकर सुरैया टूट कर रोने लगती है.. उसके बाद उसकी दादी कहना शुरू करती है…

हम तो रातई से परेशान रहो की, ई बाप बेटी कहां चल गयो..? पर जब सुबह बाहर शोर गुल सुनाई रहो, तो हमउ भी स्कूल के बाहर गए हतो… हम जो देखो हमार होश ही उड़ गवा.. माखन फांसी पर लटका रहो और सुरैया माखन का कमीज में अर्धनग्न हालत में वहां बेहोश पड़ो रहो… सारा गांव वालन उहा रहो, पर कोनो भी आगे आनो का हिम्मत ना करले… तो हमई सुरैया के 1 बोरा से ढक देनी… और फिर वहां पुलिस आए रहो… माखन के लाश इ कहीं के, के पोस्टमार्टम हुई… ले गयो… पर फिर कभी हमका ओकार लाश ना मिलले… बाद में खुदकुशी बताई के अपना पल्ला झाड़ लेलो पुलिस.. और इधर सुरैया के होश आए रहो, पर ई अपन दिमागी संतुलन खो देले रहे.. एक साथ दूई तूफान हमार ऊपर गिर गईल रहो…

अंगद:  शायद उन्होंने तुम्हें मरा समझकर छोड़ दिया होगा या..? या फिर सोचा होगा कि, तुम्हारे बाबा के ना रहने से तुम क्या ही कर लोगी…? खतरा तो उन्हें तुम्हारे बाबा से था…

दादी:  नाही.. नाही… और सुरैया को जिंदा रखे का एक और कारण हुई… ताकि उ मास्टरवा जब चाहे इसे अपन भूख मिटा सके… जो हो गईल… मिट्टी डालई दो अब, जो हुई वालो रहो, उ हो गईल…  अब का बात करो… अब ता हमार सुरैया एक पुलिस अफसर की लुगाई हो…

सुरैया:   नहीं दादी… मैं इस शादी को नहीं मानती.. मुझे नहीं रहना इनकी बीवी बनकर…

दादी:   का कहोत रहो करम जली..? उ तो तोहार भाग्य अच्छो रहो के इ बबुआ, तोहार जिंदगी में आए रहो… वरना एक लड़की जेकर साथ इतनो कुछ घट गयो, ओकर साथ ब्याह के करी..?

सुरैया:   मैं जिंदगी भर कुंवारी ही रहूंगी?.. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता… पर पूरी जिंदगी एहसान तले जीना मुझे मंजूर नहीं… सर जी..! आपको जब भी मेरी गवाही या मेरी जरूरत होगी, मैं हाजिर रहूंगी.. पर यह शादी को आप भूल जाइए और हो सके तो आप इस कस्बे से भी चले जाइए…

अंगद बस सुरैया की बातों को सुनता रहा… शायद वह भी अंदर से यही चाहता था, इसलिए बिना एक शब्द कहे, वह सुरैया के घर से चला जाता है… 

उसके जाते ही दादी:   का करम जली..? इससे अच्छो तो तू पागल ही रहतो… भगवान ने तोहार दुख देखकर इतना अच्छो वर भेज देलो,  पर इ अपने हाथों से सब सत्यानाश कर देलो… देख रहे तू माखन..!  काहे इ जंजाल को हमार माथे रखकर चल देले..? यह कहकर दादी रोने लगती है… सुरैया भी रोना चाह रही थी, पर शायद उसके आंसू अब सूख चुके थे… आखिर सुरैया ने यह फैसला क्यों लिया..? जानेंगे अगले भाग में…

अगला भाग

दर्द की दास्तान ( भाग-20 ) – रोनिता कुंडु  : Moral Stories in Hindi

error: Content is Copyright protected !!