पिछले भाग के अंत में आपने पढ़ा, कि सुरैया को वर्तमान मंजर देखकर सब कुछ याद आ जाता है… और वह आनंद और उसके लोगों से बहस करने लगती है… अंगद भी आनंद को सुरैया से दूर रहने को कहता है..
अब आगे..
आनंद अंगद से: अंजाम..? मैं तो डर गया… पता है, आज तुझे देखकर मुझे इसका बाप माखनलाल याद आ गया… ऐसे ही बड़ी-बड़ी बातें कर रहा था… पर आज वह कहां है..? पता नहीं, सब ऊपर जाने से पहले ऐसी ही बातें क्यों करते हैं..?
सुरैया: तूने मेरे बाबा को तो मार ही दिया… पर विभूति काका..? उसने तेरा क्या बिगाड़ा था..?
आनंद: यह पगली..! बड़ी आई विभूति काका की भतीजी..! जब अपने काका की करतूत सुनेगी ना तो पता चल जाएगा, की कितना रिश्तेदारी निभा रहा था यह विभूति…
सुरैया: मतलब..?
आनंद: मतलब.. मेरा तुझ तक पहुंचने का सारा रास्ता विभूति ने हीं बनाया था… यहां तक कि तेरे पिता के करीब रहने का ढोंग कर, उसकी सारी योजना हमें बताता था… हम इतनी आसानी से तेरे बाप की हत्या से बच नहीं पाते, जो विभुति हमारे साथ नहीं होता…
सुरैया: मतलब विभूति काका को पता था..? तुम लोग मेरे साथ क्या करने वाला हो..?
आनंद: हां सिर्फ इतना ही नहीं… जब जब तुम्हारे बाबा कोई योजना बनाते मेरे खिलाफ, विभूति को अपना समझ साथ रखते थे… पर विभूति बस तुम्हें मेरी थाली में परोसने का रास्ता बना रहा होता था…
सुरैया: फिर तो बहुत ही अच्छा हुआ इनके साथ.. पर जब इन्होंने तुम लोगों की इतनी मदद की, फिर तुम लोगों ने इनको क्यों मारा..?
आनंद: वह इसलिए, क्योंकि जो इंसान अपनों का कभी ना हो सका… वह हमारा क्या होगा.., कल इतने पैसों के लिए तुम लोगों को फंसाया.. कहीं कल फिर पैसों के लिए, यह हमें भी तो फंसा सकता है..
अंगद: सुरैया..! यह तो रही विभुति की कहानी.. पर मुझे तुम्हारी कहानी सुननी है… तुम्हारी ऐसी हालत क्यों हुई..?
सुरैया: पर आप कौन हैं..? और आनंद.. तुमने इन्हें क्यों बांध रखा है..?
आनंद सुरैया के इस बात से, जोर से हंस पड़ता है और कहता है… जिसके लिए यह अभी मरने वाला है.. उसको तो यह याद ही नहीं…
महेंद्र: आनंद..! इ सब का फिल्म चल रहा है यहां पर..? जल्दी से सारा काम खत्म करो और निकलो यहां से… हम नहीं चाहते, अब कोई नया बखेड़ा खड़ा हो जाए…
आनंद: जीजा जी..! काम ही तो खत्म करने आया हूं.. पर जो फिल्म चल रही है… उसे देखने में बड़ा मजा आ रहा है.. पूरी फिल्म देखने दीजिए ना जीजा जी..! उसके बाद खत्म करता हूं सब कुछ..
महेंद्र चिढ़कर कहता है.. ठीक है… जो करना है जल्दी कर…
सुरैया की दादी: अरे करमजली..! अपने पति को ही नाही पहचान रही..?
सुरैया: पति..?
दादी: हां..! जब कौनो हमार साथ ना रहे, तब इ फरिश्ता बनकर हम लोगन का जिंदगी में आए रहो.. जो तोहार हालत जानो का बावजूद, तोहार हाथ थामो, तोहार से शादी किए रहो और इ लोगन से भिड़ गयो..
फिर दादी सुरैया को पूरी बात बता देती है…
सुरैया: शादी और वह भी एक पागल से..?
थोड़ी देर चुप रहने के बाद सुरैया कहती है.. दादी..! ज़माना इतना भी अच्छा नहीं, जितना तुम समझ रही हो.. यह शहरी लोग, अपनी नौकरी के चलते, अपने शहर और परिवार से दूर तो चले आते हैं और फिर उन्हें अकेलापन सताने लगता है… ऐसे में वह ऐसे इंसान को ढूंढते हैं, जिनके साथ वह ऐसा रिश्ता बना सके, ताकि जब वह अपने घर को लौटे, उससे सारे रिश्ते खत्म कर जा सके… और कोई उन पर सवाल ना उठा पाए… वरना एक अच्छा खासा नौजवान इंसान, एक पागल लड़की, वह भी गर्भवती से शादी क्यों करेगा..?
अंगद और दादी सुरैया के इस सोच से हैरान, बस एक दूसरे को टुकुर-टुकुर देखने लगे और अंगद को विभूति की कही हुई बात याद आ जाती है.. क्योंकि उसने भी कभी ऐसा कहा था.. शायद इस कस्बे में सभी की सोच एक जैसी ही है.. पर इनकी सोच गलत भी नहीं है, ज़माना उतना अच्छा भी तो नहीं है… अंगद ने सोचा…
आनंद: अरे वाह..! क्या दिमाग पाया है मेरी छम्मक छल्लो ने..? इसलिए तो मैं तेरा दीवाना हूं… तू एक काम कर, सब कुछ भूल जा और मेरी रखैल बन जा… तेरा मरना भी कैंसिल कर दूंगा.. इन सब को भी छोड़ दूंगा, और तेरे बच्चे से भी तेरी जान छुड़वा दूंगा… तेरे बाप को भी यह बात कही थी मैंने, पर उसने नहीं माना और उसे अपनी जान गवानी पड़ी…
सुरैया काफी देर तक कुछ सोचती और कहती है.. ठीक है..! मंजूर है… पर पहले इन सब को छोड़ दो…
तो क्या सचमुच सुरैया, आनंद के साथ चली जाएगी…? क्या आनंद सच में सबको छोड़ देगा…? यह जानिए आगे…
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दर्द की दास्तान ( भाग-15 ) – रोनिता कुंडु : Moral Stories in Hindi