ये दर्द का रिश्ता बड़ा अजीब है,हम अपने किसी खास अज़ीज़ से या किसी दोस्त के दर्द से इतना गहरे जुड़ जाते हैं,कि उसके साथ एक दर्द का रिश्ता बन जाता है। ,, एक प्यारा सा गीत संदेश परक याद आ रहा है,, ,, अपने लिए जिए तो क्या जिए,, ये दिल ये जां किसी और के लिए भी हो निसार,, मैं दिल्ली में अपनी बेटी के पास रहती थी, वो दिन भर के लिए हास्पिटल चली जाती, तो मैं भी अकेलेपन से दूर होने के लिए सामने शिव जी के मंदिर में रोज भजन गाती महिलाओं को देख कर वहां जाने लगी,, बहुत बढ़िया भजन मंडली थी, सभी आयु की महिलाएं आती, खूब ढोलक,झांझ मंजीरा,बजता,कई तो उठ कर भावविभोर हो कर नृत्य भी करतीं,, मैं भी उनके साथ बैठ कर भजन गाती और तालियां बजा बजा कर सबका उत्साह वर्धन करती,,मेरा दो तीन घंटे का समय बहुत ही बढ़िया बीत रहा था,मेरा भी अब वहां मन लगने लगा था,, उन्हीं में से एक करीब पैंतालिस,पचास के बीच की एक मध्यम वर्गीय महिला वीणा बहुत सुंदर भजन गाती और नृत्य तो कमाल का करती थी।हम सब उसका गीत और नृत्य देख कर दंग रह जाते,, उसे शुगर और ब्लड प्रेशर भी था,
लेकिन वो अपनी बीमारी को धता बता कर हमेशा ही प्रसन्नचित और मस्त रहती थी, जिंदगी को खूब इंजॉय कर रही थी,, पर पता नहीं,कब हमारे खुशमय जीवन में ख़राब गृह नक्षत्र प्रवेश कर जाते हैं, हमें खबर ही नहीं होती, एक दिन वीणा मंदिर से भजन करने के बाद हम सबके साथ बाहर निकली,हम सब हंसते हुए आपस में बातें करते हुए चले आ रहे थे,कि अचानक वीणा लहराकर सड़क पर गिर गई,हम सब घबरा गए, जल्दी से उनके पति को फोन किया, सबने मिलकर किसी तरह वीणा को उठाया और मंदिर में लिटा दिया, पति आये और फौरन अस्पताल ले कर भागे, पता चला वो लकवाग्रस्त हो गई है,, हम सबने सुना तो बहुत दुःख हुआ,, हंसती खेलती वीणा को इस हालत में देख कर शरीर की नश्वरता के बारे में ही हम सबका ध्यान गया,कब किसको क्या हो जाए ये केवल ऊपर वाला ही जानता है।
वीणा के पूरे शरीर में लकवा मार गया था,वह अब बिस्तर पर बेजान सी पड़ी थी,ना किसी को पहचानती और ना ही बोल पाती, बेटे बहू, बेटी, दामाद सब आये, बहुत जगह दिखाया, सभी तरह की आयुर्वेदिक, एलोपैथिक और होम्योपैथी चिकित्सा किया पर आराम नहीं मिला, अब घर में ही सेवा होने लगी,, एक दिन हम सब भजन मंडली उनके घर वीणा को देखने गए, हम सबने उनसे कुछ कुछ बातें की,, आवाज लगाई, वीणा, वीणा,देखो कौन आया है,हम सब तुमसे मिलने आए हैं, तुम बहुत दिनों से मंदिर नहीं आईं ना, तो हम चले आये, आश्चर्य कि वीणा ने धीरे धीरे आंखें खोली,हम सबको देखते ही आंखों से आंसूओं की धारा बहने लगी,, हम सबने कहा ,, वीणा,रोओ मत, तुम जल्दी स्वस्थ हो जाओगी, और हमारे साथ फिर से भजन गाओगी,, सबने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा,, ,,, वीणा,, हमारा तुम्हारा साथ ना केवल भजन कीर्तन का ही साथ है, बल्कि** एक दर्द का भी रिश्ता है**,।
हम सब एक दूसरे के साथ हर सुख, दुःख में शामिल हैं। दिलासा देते हुए हम सब भारी मन से वापस लौट आए, उस दिन के बाद से हम सब ने तय किया कि हम वीणा के घर सप्ताह में तीन दिन जरूर जाएंगे। मंदिर ना जाकर हम वहीं जाएंगे, हमें लगता है वीणा हम सबको देखकर कुछ हरकत करने लगी है, मैंने कहा,कि इससे बढ़कर और क्या बात हो सकती है। भगवान् भी हमारे इस परोपकार को देख कर खुश होंगे, असली पूजा तो यही है, किसी का जीवन संवर जाए। हम तीन दिन मंदिर ना जाकर वीणा के स्वस्थ होने के लिए भरसक प्रयास करेंगे। हम सब जाते,बारी बारी से उससे बातें करते, पुरानी यादें ताजा करते, और तो और हम धीरे धीरे भजन सुनाने लगे,,हम सब भगवान की लीला के आगे नतमस्तक हो गये,जब देखा कि वीणा के होंठ खुलने लगे,भजन के टूटे फ़ूटे शब्द निकलने लगे, और एक दिन तो कमाल ही हो गया जब उसने एक दो महिलाओं का नाम भी अस्पष्ट शब्दों में लिया, हमारे लिए और पूरे परिवार के लिए ये किसी चमत्कार से कम नहीं था, हम लगातार प्रयास कर रहे हैं कि वो एक दिन ठीक हो जाए,अब तो धीरे धीरे वो खड़ी भी होने लगी है,,
सबको कुछ कुछ पहचानने भी लगी है। जो परिवार वाले ना कर सके वो दोस्ती ने कर दिखाया,, उसे लगा कि मेरे साथ अब भी मेरी सहेलियां हैं, इतने सालों में सबसे एक प्यारा सा रिश्ता जुड़ चुका था,, उसे हमदर्दी और अपनेपन, और प्यार की सख्त जरूरत थी,,,,दिल का रिश्ता दर्द के रिश्ते में बदल गया था। तो आप सबने देखा दोस्तो,,हमारा थोड़ा सा प्रयास और थोड़ा सा समय किसी के लिए रामबाण औषधि का काम करता है, उसके लिए दोस्ती जीवन दायिनी बन जाती है,, हम सब भी अपना कुछ समय देकर अपनी दोस्ती का फ़र्ज़ अदा कर सकते हैं,, हम सब बहुत आशान्वित हैं कि हमारे दर्द के रिश्ते से एक दिन वीणा पुनः उसी तरह से स्वस्थ हो कर हमारे साथ भजन मंडली में शामिल होने आ जाएगी, प्रभु से विनम्र प्रार्थना है। जल्दी से जल्दी वीणा को अच्छा कर दें। ,,दर्द का रिश्ता ,, होता ही ऐसा है, बहुत दर्द दे जाता है।
सुषमा यादव, प्रतापगढ़ उ प्र स्वरचित, मौलिक,
अप्रकाशित,
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