भागती हुई नर्स डाँ. रवि के केबिन में आई।
” सर, वार्ड नम्बर-7 में जिसकी कल ही डिलीवर हुई थी,वो बच्चा छोड़कर न जाने कहाँ चली गयी?”
“अरे, ऐसे कहाँ चली जायेगी? खोजो, यहीं कहीं होगी। नहीं तो उसके परिजन से सम्पर्क करो।”
भूख से बिलखते उस बच्चे को नर्स ने नर्सरी में भेज दिया और उस महिला की खोज- बीन में लग गयी। परिजन की जगह तो साथ में सिर्फ एक नौकरानी थी और जो पता उसने लिखवाया था वह फर्जी निकला। अब डाॅ. रवि के साथ पूरे सहकर्मी परेशान हो गये।
दो दिन बच्चा शिशु वार्ड में रहा,जहाँ उसकी देखभाल हो रही थी।
अंत में सर्वसम्मति से पुलिस को सम्पर्क करने के बाद यह निर्णय हुआ कि जब- तक पुलिस अपने तरीके से उसकी माँ की तलाश नहीं कर लेती है, तब-तक बच्चे को किसी अनाथालय में रखा जाए।
अनाथालय की बात सुनते ही डाॅ.रवि के दिल पर एक हथौड़ा पड़ा।———
अनाथालय?
मैं भी तो अनाथालय जा रहा था। यदि बीच में गांगो फुआ नहीं आई होती तो……..
लगभग आठ साल का रहा हूँगा जब मेरे माता- पिता एक दुर्घटना के शिकार हो गये और मेरी जिम्मेवारी लेने के लिए कोई आगे नहीं आया। आता भी कौन? एक मामा थे, जो किसी तरह गरीबी से लड़कर अपनी चार बेटियों की परवरिश कर रहे थे। बहुत बड़ी सम्पति तो मेरे पिता की थी नहीं। अचल सम्पति के नाम पर सिर्फ एक घर था।
फिर भला ऐसे बच्चे को कौन रखता जो पोलियो का शिकार था। ऐसे में गांगो फुआ, जो बाल विधवा थी और पूरी जिन्दगी मायके में ही रहकर उन लोगों की तिमारदारी में बीता दिया। उनके पिता ने घर का एक हिस्सा उनके नाम कर दिया था। खाने की कोई कमी नहीं होती थी। पूरी काँलोनी में सबकी मदद के लिए हमेशा तैयार रहने वाली
गांगो फुआ ने मुझे सहारा दिया और मेरी परवरिश की। कुशाग्र बुद्धि के कारण मिलने वाले स्कॉलरसीप और गांगो फुआ की दुआओं ने मुझे डाॅक्टर बना दिया। मेरे खराब पैर की जगह नकली पैर ने ले लिया, लेकिन इस वृक्ष का फल वो नहीं चख पायी, जिसे उन्होंने सींचा था। मुझे उनकी सेवा का मौका नहीं मिला और वो मुस्कुराती हुई साकेत नगरी चली गयीं।———-
” सुनिए! मेरा एक प्रस्ताव है। इस बच्चे की जिम्मेवारी तब- तक मुझे दी जाए, जब- तक इसकी माँ नहीं मिल जाती।”
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बच्चे को लेकर रवि घर आया। दरवाजा खोलते ही सलोनी चौक गयी।
“ये बच्चा कहाँ से उठा लाये और क्यों?”
“अन्दर तो आने तो, फिर बताता हूँ।”
सलोनी अपने पति के चेहरे पर बदलते भाव को स्पष्ट देख रही थी। झट से पानी का ग्लास लेकर आई और अपने सवाल को दुहराने लगी।
” इस बच्चों को इसकी माँ अस्पताल में छोड़कर चली गयी।”
“चली गई कि छोड़कर भाग गयी?”
” जो भी समझो। लगता है बिन व्याही माँ बनी थी तभी तो……”
“तो तुम क्यों इसे लेकर आये हो?”
” जब-तक इसकी माँ की तलाश पुलिस नहीं कर लेती है तब- तक यह मेरे पास ही रहेगा।”
“और यदि नहीं मिली तो?”
” नहीं मिलेगी तो यह यहीं पलेगा।”
“यहीं पलेग?
अरे कुछ ही महीनों में गुड़िया के बच्चे होंगे, उसके साथ मैं इसकी जिम्मेवारी नहीं ले सकती।”
“मैं इसे अनाथालय तो नहीं जाने दूँगा।”
“अरे तुम्हारा इससे क्या रिश्ता? यह जहाँ भी रहे।”
“दर्द का रिश्ता है।”
“दर्द का रिश्ता?”
रवि के चेहरे पर आए उस दर्द के एहसास को सलोनी गहराई से निहारने लगी।
वह मन-ही-मन सोचने लगी- रवि ने इस बच्चे से एक रिश्ता तो जोड़ ही लिया। फिर उसकी गोद से बच्चे को लेकर अपने कमरे में चली गयी।——-
रवि सोचता रहा-
गांगो फुआ की दुआएँ आज भी मेरे साथ है, वरना मेरी जिन्दगी में सलोनी नहीं आती।
#दिल_का_रिश्ता
स्वरचित
पुष्पा पाण्डेय
राँची,झारखंड।