निशि निशि… साड़ी की दुकान से निकलती निशि अपना नाम सुन पलट कर देखती है।
सुनिधि… सामने पुकारने वाली को देख निशि रुक गई।
तुझे आज शॉपिंग करनी थी तो बताना था न, दस बजे से कॉल करके थक गई यार… निशि मुंह बनाती हुई कहती है।
अरे नहीं निशि… मैं अपनी रिश्तेदार के घर आई हुई थी, पूजा रखी थी उन्होंने.. लंच चाय करते कराते शाम हो गई। घर के लिए ही निकली थी कि तू दिख गई… सुनिधि बताती है।
रहने दे रहने दे… निशि का पारा अभी भी गर्म लग रहा था।बचपन की दोस्ती और संयोग से एक ही शहर और एक ही कॉलोनी में रहने के कारण दोस्ती और प्रगाढ़ हो गई थी।
तू कह रही थी ,कॉल किया था तूने.. देखूं…कहती हुई सुनिधि पर्स से मोबाइल निकालती है।
ओय मां… इतने मिस्ड कॉल…सॉरी सॉरी…सुनिधि दोनों हाथों से कान पकड़ती हुई कहती है।
कहा न रहने दे… निशि ने कहा।
रहने कैसे दूं… अब तो भई बिट्टू खोमचे वाले की तीखी मसालेदार भेल पूड़ी और गर्म कॉफी ही हमारी महारानी साहिबा का मिजाज दुरूस्त कर सकता है… निशि के गुस्से का मजा लेती हुई सुनिधि उसके नाक को पकड़ हिलाती हुई कहती है।
हां तो गुस्सा दिलाया है तो ट्रीट तो देनी होगी ना… हूं.. निशि बालों को झटकती हुई कहती है।
हां बाबा…चल पार्किंग से गाड़ी निकालती हूं.. तू कैसे आई..तेरी गाड़ी… सुनिधि दो कदम चलने के बाद रुक कर पूछती है।
आज पति महोदय के साथ आई थी। आज मेरा तफरी का मूड था, तू थी नहीं और पति महोदय की अर्जेंट कॉल आ गई तो वो भी चल दिए…निशि बताती है।
और देख भगवान ने तेरी सुन ली और मैं मिल गई…चल अब…सुनिधि हंसती हुई कहती है।
अरे आपलोग को भी यहां की भेल पूड़ी पसंद है, हमें भी…कहती हुई उस कालोनी में पति और दो बच्चों संग शिफ्ट हुई रवीना वही बैठ जाती है।
आप यहां.. उस दिन तो आप कह रही थी , आपके पति को आपका कहीं आना जाना पसंद नहीं है। इसीलिए आप कहीं निकलती नहीं हैं..सुनिधि से पहली बार मिलते ही रवीना पति पुराण सुना चुकी थी।
हां क्या कहूं…तंग हो जाती हूं मैं…ये मत करो वो मत करो। ये मत खाओ वो मत खाओ। यहां मत जाओ वहां मत जाओ… भला ऐसी जिंदगी होती है क्या… रवीना आंखों में आसूं भर कर बोली।
पर रवीना कल ही तो आप पूरी फैमिली कहीं से घूम कर आई हो न…निशि ने अपनी बालकनी से उनलोगों को आते देखा था सो पूछ ही लिया।
हां वो हमलोग हिमालय के टूर पर थे… रवीना एकदम मटकती हुई बताती है।
अच्छा और आपके पति मान गए…सुनिधि जिसे उस दिन से रवीना से सहानुभूति हो गई थी आश्चर्य में थी।
हां जी मैंने ही जिद्द की, नहीं तो मेरे पतिदेव कहीं न आए जाए… रवीना ने ये कहते हुए चेहरा ऐसा बनाया मानो दुःख की देवी हो वो।
अच्छा सुनिए..कल मेरे बड़े बेटे का जन्मदिन, आप दोनों को फैमिली के साथ आना है… रवीना कहती है।
लेकिन उस दिन तो मेरे घर मेरे बेटे की जन्मदिन की तस्वीर देख कर आपने कहा था, कितने मजे हैं आपके…मेरे हसबैंड को ये सब कुछ पसन्द नहीं… सुनिधि रवीना के उस दिन पर ही अटकी थी।
जिद्द करनी पड़ती है… रवीना ने कहा।
मतलब आपके घर में आपका चलती है और आपने पतिदेव को यूंही बदनाम कर रखा है..सुनिधि घोर आश्चर्य से रवीना से पूछती है।
मेरी कहां चलती है, मेरे जीवन में घोर दर्द है… रवीना चेहरे पर मायूसी भर कर कहती है।
दर्द ….जानती भी हैं कि दर्द क्या होता है…निशि जो उन दोनों की बात सुन रही थी ये सुनते ही रवीना को लगभग खींचती हुई गाड़ी में बिठाती है और सुनिधि से भेल पूड़ी का पेमेंट कर आने कहती है।
आइए रवीना जी देखिए ये होता है दर्द… गाड़ी से उतर एक बिल्डिंग में रवीना को ले घुसती हुई निशि कहती है।
ये मानसिक चिकित्सालय है और ये सूनी सूनी आंखों से देखती ये औरतें मरीज। इनके साथ वो सब हुआ जो नहीं होना चाहिए था। किसी का बाप भाई छोड़ गया, किसी के ससुराल वाले छोड़ गए, किसी का पति छोड़ गया। जो जो दर्द आपने अपनी जिंदगी के गिनवाए, उन्हें इन्होंने सच में जिया है और किसी से कह नहीं सकी और यहां हैं। रवीना जी शुक्र कीजिए भगवान का कि ऐसे दर्द से दो चार नहीं होना पड़ा है आपको और भगवान के लिए दर्द का दिखावा बंद कीजिए और अपने लिए बेमकसद सहानुभूति बटोरना बंद कीजिए। जिसने ये दर्द जिया है, वही जानता है ये दर्द क्या है और कितनी मुश्किल होती है उस दर्द को भूल संभलने की कोशिश करना, ये आप सोच भी नहीं सकती निशि जी। आपको थाली में परोस कर सब कुछ मिल रहा है और आप झखी बनी फिर रही हैं….शून्य में ताकती और अपनी रौ में बोलती निशि की आंखों और आवाज में बेइंतहा दर्द समाया था और सुनिधि जो उस दर्द की गवाह थी, उसका हाथ निशि के कंधों पर था।
#दर्द
आरती झा आद्या
दिल्ली