दर्द भरी आंखें – गीता वाधवानी : Moral Stories in Hindi

फोन बज रहा था। सुशीला जी ने फोन उठाया। उनके हेलो बोलते ही उधर से आवाज आई। आवाज सुनकर सुशीला  जी ने खुशी से कहा-” अरे दामाद जी,आप कहिए घर पर सब ठीक है। अनीता कैसी है, और दोनों बच्चे प्रफुल्ल और प्रियंका। आपकी माताजी ठीक है।”  

 उधर से उनके दामाद केशव ने कहा-” हां जी सब ठीक है, आप तुरंत आ जाइए,अनीता की तबीयत खराब है। जल्दी आने की कोशिश कीजिए। ” 

 सुशील जी घबरा गई और बोली-” कल तो अनीता ने मुझसे बात की थी, वह तो ठीक थी आज अचानक क्या हो गया? ” 

 केशव -” मां जी आप घबराइए मत, आ जाइए। ” 

 केशव को पता था कि सुशील जी बहुत जल्दी घबरा जाती हैं और उनकी तबीयत खराब हो जाती है इसीलिए उसने उन्हें सच नहीं बताया। दरअसल वह अपने ससुर से बात करना चाहता था लेकिन फोन सुशील जी ने उठाया, तो केशव ने उन्हें सच नहीं बताया कि उनकी बेटी अनीता अब इस दुनिया में नहीं रही। 

 तब केशव ने थोड़ी देर बाद दोबारा फोन किया और अपने ससुर को सच्चाई से अवगत कराया। अनीता के माता-पिता उसकी छोटी बहन आरती को लेकर तुरंत वहां पहुंच गए। 

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 सच्चाई जानने के बाद सुशील जी बेहोश हो गई। होश में आने पर रो रो कर उनका बुरा हाल था। आरती भी बहुत रो रही थी। उसकी बहन अनीता अच्छी भली रात को सोई थी, लेकिन सुबह जागी ही नहीं। डॉक्टर ने चेकअप करके बताया था कि आधी रात में उसका हार्ट फेल हो गया है। 

 दोनों बच्चे 6 साल का प्रफुल्ल और 5 साल की प्रियंका दोनों अभी छोटे ही थे। बेचारे बच्चों को मृत्यु के बारे में क्या समझ। वे तो अपनी मम्मी को ढूंढ रहे थे। क्रिया कर्म निपट जाने के बाद बच्चों की दादी ही उन्हें संभाल रही थी। 

 अनीता के माता-पिता और आरती जब वापस जाने लगे, तो दोनों बच्चे अपनी मासी को लिपट गए और रो कर बोले -” मासी आप हमें छोड़कर मत जाओ, मम्मी भी पता नहीं कहां चली गई है, पापा भी बार-बार रोने लगते हैं। दादी भी उदास है। आप मत जाओ प्लीज। नानी को भी इधर ही रोक लो। “

 केशव को भी बच्चों की बहुत चिंता थी, उसने भी अपनी सास को और साली को रुकने के लिए कहा। आरती ने कहा-” अगर मेरे फाइनल एग्जाम ना होते, तो मैं बच्चों के पास रुक जाती। लेकिन मुझे जाना पड़ेगा। एग्जाम खत्म होते ही मैं आ जाऊंगी। वरना मेरा बीए कंप्लीट नहीं हो पाएगा। ” 

 एग्जाम्स की मजबूरी के कारण उन लोगों को जाना पड़ा। पेपर देने के बाद आरती कुछ दिनों के लिए आ गई थी, लेकिन ऐसा कब तक चलता। उसे अभी आगे और पढ़ाई भी करनी थी। वह वहां कब तक रह सकती थी। 

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 बच्चों की दादी से भी, काम नहीं होता था। तब उन्होंने अपने बेटे केशव से कहा -” बेटा दोनों बच्चे अभी छोटे हैं, उन्हें देखभाल की जरूरत है और तुम्हारी भी पूरी जिंदगी पड़ी है, तुम दूसरी शादी कर लो। ” 

 केशव -” नहीं मां, न जाने फिर मेरे बच्चों को प्यार मिले या ना मिले, न जाने कैसी लड़की हो, कहीं मेरे बच्चों को दुखी ना कर दे। ” 

 केशव की मां भी सोच में पड़ गई। तब उन्होंने अपनी समधन से फोन पर बात की। ” समधन जी एक बात कहूं आप बुरा मत मानिएगा, दोनों बच्चे अभी बहुत छोटे हैं, मैं केशव से दूसरी शादी करने को कह रही हूं, लेकिन दूसरी शादी करके कैसी लड़की आएगी वह बच्चों को प्यार देगी या नहीं इस बात से केशव डर रहा है

और कुछ हद तक उसका डर सही भी है। अगर आपको सही लगे तो, आरती की उम्र भी शादी की हो गई है क्या वह मां बनकर बच्चों को संभाल लेगी। आप इस बात पर विचार करिए और आरती से भी जरूर पूछिए। अगर वह करती है तभी मैं केशव से बात करूंगी और ऐसा मत समझिएगा की आपके ऊपर कोई दबाव है। ” 

 सुशील जी ने घर में बात की। उन लोगों की को भी अपनी बेटी के बच्चों की बहुत चिंता थी। आरती के मां-बाप तो तैयार थे, बस आरती के मन को जानना जरूरी था। आरती ने अपनी मां से कहा कि सोचने का समय दो।

उसने कभी अपने जीजा के बारे में ऐसा कुछ सोचा नहीं था। उसे सब कुछ बहुत अजीब लग रहा था लेकिन वह अपनी बहन अनीता से और उसके बच्चों से बहुत प्यार करती थी। बहुत कुछ सोच समझ कर उसने इस शादी के लिए हां कर दी।  

 शादी वाले दिन उसने अपनी मां से कहा-” मम्मी प्रफुल्ल और प्रियंका मुझे बहुत प्यार करते हैं और मैं भी उनसे बहुत प्यार करती हूं, अब वही मेरे बच्चे हैं, इसलिए मैंने यह निर्णय लिया है कि मैं कभी भी अपना बच्चा पैदा नहीं करूंगी, ऐसा ना हो कि अपना बच्चा पैदा करने के बाद मैं उन में फर्क करने लगूं। ” 

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 सुशीला जी ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा-” आरती बेटा मैं तुम्हारे प्यार को समझ सकती हूं, तुम अपनी बहन अनीता से और उसके बच्चों से बहुत प्यार करती हो, लेकिन फिर भी मैं यही कहूंगी कि जल्दबाजी में कोई निर्णय मत लो।

हर लड़की को मां बनने का अधिकार है और शादी के बाद एक नन्हे मुन्ने बच्चे को पाने का सपना हर लड़की का होता है, यह निर्णय जो तुमने मुझे अभी सुनाया है यह किसी और से मत कहना। पहले इस बारे में अच्छी तरह सोच विचार कर लो, जल्दबाजी में लिए गए निर्णय सही नहीं होते। ” 

 केशव और आरती का विवाह हो गया। आरती बड़े प्यार से बच्चों की देखभाल और अपनी सास की देखभाल करने लगी। उसने केशव से भी बच्चे के बारे में कह दिया था। 

 धीरे-धीरे बच्चे बड़े होने लगे। प्रियंका से ज्यादा प्रफुल्ल समझदार था और आरती के बेहद करीब था। प्रियंका दसवीं में आ गई थी और प्रफुल्ल 12वीं में। प्रियंका कभी-कभी आरती को मां कहने की बजाय मासी कह देती थी

तब उसे प्रफुल्ल समझाता था कि तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए। कभी-कभी वह उसका अपमान भी करती थी। आरती, हमेशा यह सोचकर चुप हो जाती थी कि नादान बच्ची है धीरे-धीरे समझ जाएगी। लेकिन प्रियंका धीरे-धीरे बदतमीज होती जा रही थी। 

 एक दिन उसकी सहेलियां घर पर आई हुई थी। वह अपनी सहेलियों के साथ अपने कमरे में बैठी थी। आरती उनके लिए अच्छी-अच्छी खाने-पीने की चीज लेकर आई। वह उनके कमरे में सब कुछ रख कर जाने लगी तो प्रियंका की एक सहेली ने कहा-” प्रियंका, तेरी मम्मी कितनी अच्छी है यार, एकदम शांत और प्यारी। खाना भी कितना टेस्टी बनाया है। ” 

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 तब  प्रियंका ने धीरे से कहा -” यह मेरी मम्मी नहीं मासी है, मेरी मम्मी तो बहुत अच्छी थी, इसने तो पैसा देखकर मेरे पापा से शादी कर ली। ” 

 यह सुनकर आरती भौंचक्की रह गई। वह अपने कमरे में जाकर बहुत रोई और उसे अपनी मां की बात याद आने लगी। उसे लग रहा था कि काश!मेरा कोई अपना बच्चा होता, तो वह मुझे समझता। इन दोनों बच्चों को मैंने प्यार देने के लिए, अपनी कोख को सूना रखा और कई लोगों ने तो यह भी कहा कि मैं बांझ हूं,

मैंने इन दोनों बच्चों की वजह से लोगों के ताने भी सह लिए, और यह कह रही है कि मैं लालच में आकर शादी की। आरती Same आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। उसकी मां भी अब इस दुनिया में नहीं थी, अब वह किसे कहती अपना दर्द, अपने अनकहे दर्द के साथ जी रही थी और उसका अनकहा दर्द उसकी आंखों से छलक रहा था।

उसकी दर्द भरी आंखें देख कर प्रफुल्ल और केशव कुछ-कुछ बात समझ रहे थे और वह अपनी तरफ से प्रियंका को समझने की कोशिश करते रहते थे। आरती को भी यही इंतजार था कि एक न एक दिन प्रियंका उसको समझने लगेगी। 

 स्वरचित, अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली 

#अनकहा दर्द

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