दरकते रिश्ते – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : “ माँ बुआ का फ़ोन है … तुमसे बात करना चाहती है ।” मोह की आवाज़ सुन चारू अपना काम छोड़कर झट से फोन हाथ में ले ली

“हाँ कनु बोलो क्या बात है…घर पर सब ठीक तो है ना?” चारू ने पूछा 

“भाभी अब आप जया के लिए फ़िक्रमंद रहना छोड़ दीजिए, अब तो आपने खुद सब देख लिया … हम तो जब भी कहते थे आप हमें ही समझा कर चुप करवा देती थी माँ भी ना जाने क्यों आपको उनकी ज़िम्मेदारी सौंपती रहती थी अभी भी समय है जब वो आपसे मतलब का रिश्ता रख रही है तो आपको क्या पड़ी है उनकी..आप भी बस मतलब का ही रिश्ता रखिए नहीं तो हमेशा आप तकलीफ़ में ही रहेंगी ।”कनु की आवाज़ में एक के प्रति फ़िक्र तो दूसरे के प्रति तल्ख़ी दिख रही थी 

“ कैसे कर सकती हूँ कनु… माँ जी ने ज़िम्मेदारी जो दे रखी है ।” चारू का स्वर दर्द और किसी की बेरुख़ी से डूबा हुआ था 

“ अच्छा ये तो बताइए यहाँ से जाने के बाद भैया का क्या हाल है और आपके मायके में सब ठीक है…. वो तो ग़नीमत है शहर में आपका मायका है जहां से फ़्लाइट की सुविधा है नहीं तो दिक़्क़त हो जाती ।”कनु ने पूछा 

“हाँ कनु घर पर सब ठीक है … आपके भैया का क्या हाल होगा सोच ही सकती है.. माँ से बहुत ज़्यादा प्यार था उन्हें… बस घर पर जो भी हुआ वो सोचकर और परेशान हो रहे हैं… गाँव से चले तो कह रहे थे जया की वजह से लग रहा घर भी छूट जाएगा…. अच्छा मैं दिल्ली पहुँच कर तुम्हें फ़ोन करूँगी … निकलने का वक्त हो रहा है ।” कहकर चारू ने फ़ोन रख दिया 

जल्दी से सब सामान पैक कर वो एयरपोर्ट की तरफ निकल गई

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एयरपोर्ट पर कॉफी का मग लिए चारू सामने आने जाने वाली फ्लाइट्स को बड़े गौर से देखते हुए सोच रही थी ये फ्लाइट्स गंतव्य तक सही सलामत पहुंचाने की जिम्मेदारी बखूबी उठाती है फिर भी कभी कभी चूक हो ही जाती है …वैसे ही मैं भी तो अपने ससुराल की सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही थी बिना किसी चूक के फिर क्यों आज मुझे एहसास हो रहा है कि मैं कहीं गलत तो नहीं थी जो इतना करने के बाद भी मुझे ऐसा सिला मिला।

चारू बार बार यही  सोच सोचकर परेशान हो रही थी कि कहां चूक हो गई उससे जो आज उसने भी मुझमें ही खामियां निकाल दिया।

चारू सोचने लगी इस परिवार के लिए उसने क्या कुछ नहीं किया पर बदले में वो आज खाली हाथ लौटकर वापस अपने उस घर जा रही है जहाँ पति की नौकरी की वजह से बच्चों के साथ रहती है शायद वही कहने को उसका बस उसका अपना घर है।

पन्द्रह दिन पहले सास की मृत्यु की खबर सुन कर वे लोग सब पहली फ्लाइट लेकर पहले शहर गए फिर वहाँ से गाँव तक कार का सफर कर पहुँचे जहाँ सास की अंतिम यात्रा की तैयारी रिश्तेदारों ने मिलकर कर दी थी ।

वहाँ सास के साथ देवरानी जया रहती थी।देवर कहीं और नौकरी करते थे और वो अपने में ही मस्त रहते थे… बच्चे हो जाने के बाद घर आना बंद ही कर दिया था… उसके बाद उन्हें किसी से कोई मतलब नहीं रहा…सालों हो गए थे घर छोड़ कर गए …कभी किसी को उनकी कोई खबर भी नहीं मिलती थी …. माँ  के गुजर जाने का संदेश भी लोग कैसे देते जाहिर था सालों से जिसने घर का मुँह ना देखा उसे माँ के मरने की खबर का असर भी ना होता ऐसे में उनका ना आना होगा ये सब को पता ही था।

सास को पेंशन भी मिलती थी और जो खेती जमीन थी उसपर जो भी अनाज होता था उसको बेचकर सारे पैसे सास ही रखती थी। चारू और उसके पति कभी भी एक पैसा माँ से नहीं लिए थे वो अपनी मर्ज़ी से जो चाहती वो करती थी… कभी किसी ज़रूरतमंद को पैसे उधार में देती या फिर बैंक में जमा करती जाती साथ ही छोटी बहू और उसके बच्चों के लिए भी थोड़ा बहुत खर्च करती थी ।

देवर घर छोड़कर गए तब से पलट कर नहीं देखे ऐसे में उसकी पत्नी और बच्चों के लिए चारू पति से कहकर ज़रूरी का सारा सामान और बच्चों की पढ़ाई खर्च उठा कर देवरानी की मदद करती रहती थी। 

बाहर रहने की वजह से उसके कभी कभी ही गाँव जाना होता था। कुछ दिनों के लिए ही जाती थी तब देवरानी हमेशा चारू के आगे पीछे रहती सुख दुख कहती और उसका एहसान मानती ।

पर इस बार बहुत सालों बाद चारू पंद्रह दिन ससुराल में रही चूँकि सारे क्रियाक्रम कीं ज़िम्मेदारी इन्हें ही उठानी थी और घर ज़मीन जायदाद जिनसे वो लोग अब तक अनजान थे वो भी समझकर जया को समझाना ज़रूरी समझा….उसे पता था सास के पास एक बक्सा है जिसमें वे अपने सारे ज़रूरी पेपर रखती हैं। 

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वो देवरानी से बोली,‘‘ जया माँ के बक्से की चाभी किधर है, सब बोल रहे खोल कर देख लो वो बहुत लोगों को मदद के लिए रूपए दिया करती थीं उसमें उनके नाम के काग़ज़ होंगे तो हम उनसे अभी जरुरत में पैसे ले लेंगे तो हमारे काम आ जाएँगे ।”

जया ने कमर में लटकी चाभी दे दी। बक्सा भी खुला पर ये क्या उधर तो कुछ भी नहीं मिला। पूछने पर जया  साफ मुकर गई। 

“ मुझे क्या पता इसमें सासु माँ क्या रखती थी हमने तो कभी देखा तक नहीं ।” जया ने कहा 

गाँव भर के रिश्तेदारों ने बाद में चारू और उसके पति से कहा ,”आपको आने में जो देरी हुई उसका फायदा जया  ने उठा लिया वो सब पैसे और कागज निकाल चुकी होगी।”जया के बेटे ने ऐसे ही एक दिन बातों बात में बोल दिया,‘‘ पता है बड़ी माँ,मम्मी के पास पाँच पाँच सौ के बहुत सारे नोट है।‘‘ 

ये सुनकर जया ने तपाक से कहा ,‘‘कुछ भी बोलता है बच्चा है ना।”

गाँव के लोग कुछ और बोलते उससे पहले ही जया ने रो रोकर पूरे घर को अपनी तरफ कर लिया,‘‘ दीदी मुझपर शक कर रही….मैं क्यों माँ जी के बक्से को हाथ लगाऊँगी ….और भी न जाने क्या क्या….।‘‘ 

चारू अवाक हो कर जया को देखने लगी। 

बात ज्यादा न बढ़े ये सोचकर बस किसी तरह  तेरहवीं तक चारू चुपचाप अपने काम करती रही और उसके पति ने सारी ज़िम्मेदारी समझ सारा खर्चा उठाया ।

जिस देवरानी को अबला समझ चारू उसकी मदद करती रही थी और जिसके हक के लिए अपनों से लड़ जाती थी आज उसी देवरानी ने उसको अच्छे से छल लिया था….सबके सामने उसपर ही इल्ज़ाम लगा कर …..रिश्ते का ऐसा रूप देख कर अब उसका विश्वास अपनों से ही डगमगाने लगा था।

गाँव से निकलते वक्त बस वो आखिरी बार उस दहलीज को देख रही थी जहाँ दुल्हन बन कर आई थी। जब तक सास थी रिश्तों को सहेज रही थी अब किसके लिए और क्यों लडाई करना ये सब उसके मन मस्तिष्क में चल रहा था ।

तभी किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा …आँखो में छलके आँसुओ को पोंछ कर मुड़ी तो सामने रितेश को देख कर चैन की सांस ली। 

वो रिश्ते जो अब दरकने लगे थे उसे दरकिनार कर पति और बच्चों के लिए सोचना शुरू करना है ।

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‘‘ चारू चलो बोर्डिंग का वक्त हो गया, तुम्हारी कॉफी भी ठंडी हो गई…अब जो हो गया उसे सोचना छोड़कर आगे बढ़ते हैं …मुझे पता था जया के लिए तुम कुछ ज्यादा सोचती और करती थी मना करने पर मुझे ही चार बातें सुना देती थी फिर मैं भी सोचता कौन इतना किसी के लिए सोचता है फिर तुम तो मेरे ही भाई की पत्नी के लिए सब कुछ कर रही थी, जिसकी खोज खबर पति भी नहीं करता। अब जया  कब तक उन पैसों पर जिन्दगी जिएंगी हम भी देखेंगे…अब चलो माँ तो चली गई लगता है घर भी कही छूट सा गया।‘‘ कंधे पर मजबूती से रखे हाथ की नरमी चारू को एहसास करवा रही थी कि कहीं ना कहीं से चोट रितेश को भी लगी है।

समय धीरे-धीरे गुजर रहा था पर चारू अभी भी कभी कभी फोन कर  देवरानी की खोज खबर लेती रहती थी देवरानी अभी भी बच्चों के नाम लेकर रुआंसे स्वर में चारू से बाते करती जिससे चारू सब भूल बच्चों की ख़ातिर मदद करने के लिए रितेश से कहती और दोनों बच्चे को हॉस्टल में पढ़ने भेज दिया गया ताकि अच्छी शिक्षा पा सकें।

घर से आने के दो महीने बाद ही अचानक चारू का एक भयंकर एक्सीडेंट हो गया और ऑपरेशन की नौबत आ गई थी और सब होने के बाद वो बिस्तर पर आ गई… दो महीने गुजर गए थे.. देवरानी ने एक बार भी फोन कर कोई खोज खबर ना ली और चारू खुद ही परेशान थी तो वो क्या ही फोन करती ।

“आज बहुत ज़्यादा ठंड हो रही है…कांता जरा कॉफी बना कर ला दो।” किसी तरह बिस्तर पर बैठ कर कांता से कॉफी बनाने को बोल चारू अपने पैर को देखने लगी 

कुछ समय उसकी माँ आकर यहाँ रह गई थी पर अब उनकी उम्र भी नहीं रह गई थी कि ज़्यादा काम कर सकें…. दस पन्द्रह दिन बारी बारी से दोनों ननदें आकर सँभाल गई थी…अब चारू थोड़ा बहुत चलने फिरने लगी थी….फिर अब एक सहायिका रखी थी जो मदद करने आती और घर का सब काम निपटा कर चली जाती…. कांता उसे कॉफी का मग पकड़ा कर दूसरे घर काम करने चली गई….

इतने में बड़ी ननद का फ़ोन आ गया ,“ हैलो चारू कैसी हो… अब पैर कैसा है….हम लोग ज़्यादा वक्त नहीं रह पाए तुम्हारे पास…. यहाँ की ज़िम्मेदारी भी तो देखनी है… ससुर जी की तबियत अब ज़्यादा खराब रहती इसलिए तुम्हारे जीजा जी कहते यही रहो…..अच्छा सुनो जया ने अपने बच्चों को हॉस्टल से निकाल कर घर के पास ही किसी स्कूल में दाख़िला करवा दिया है…..तुम उसके बच्चों के बारे में सोचती रहती हो…. उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता…. तुम्हारा इतना बड़ा एक्सीडेंट हुआ…. जब हमने बताया तो कहती है….खरोंच तो आया है…. ऐसा क्या हो गया…. झूठे मुँह ये भी नहीं बोली … दीदी से बात कर लूँगी… देखो पाँच महीने होने को आए तुम्हें बिस्तर पर एक बार भी जो उसने फ़ोन किया तुम्हें….और तुम उसकी फ़िक्र में लगी रहती हो…।”

“ दीदी आपको भी पता है देवर जी बिना किसी को कुछ बताएँ घर छोड़कर चले गए हैं…. हम घर के बड़े है … उसकी और बच्चों की चिंता कैसे नहीं करें….माँ थी तो लगता था उसके पास कोई तो है पर अब माँ भी नहीं है…।” चारू ने कहा 

“ तुम अभी भी उसके बारे में सोच रही हो… तुम्हें पता भी है उसने क्या क्या किया है… रितेश को तो फ़ुरसत ही नहीं घर ज़मीन की देखभाल करने की….उपर से इतनी खेती…. वो जया  सब पर अपना हक समझें बैठी है…. कहती है अब कौन सा वो लोग यहाँ आने वाले ये सब देखने… जो है सब मेरे बेटे का ही होगा….यहाँ रहेगा तो सब देखें समझेगा…. फिर दोनों बेटे हॉस्टल में रहकर क्या ही कर लेंगे….जो यहाँ के स्कूल में पढ़ते हैं वो भी तो कही काम करने जाते ही है ना… वैसे भी मेरे बच्चों को क्या ही ज़रूरत काम करने की खेती के ही पैसे से गुज़ारा चल जाएगा ।” ननद ने कहा 

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“ दीदी … जया ये सही नहीं कर रही है…. हम तो उसके भले का सोच रहे थे पर वो हमें ही सब चीज़ों से बेदख़ल करने का सोचे बैठी है…. बच्चों को तो पढ़ने देती उनका भविष्य बनता… छोटा सा गाँव है वहाँ कहाँ अच्छा स्कूल है….?”कह चारू थोड़ी बातचीत के बाद फ़ोन रख दी 

चारू को अब उन बच्चों की चिंता सताने लगी…. बच्चे बहुत स्मार्ट है वो ज़रूर कुछ ना कुछ करते पर अब उनका क्या भविष्य रहेगा…..

माँ को गए दो साल होने को आए….उसकी ज़िन्दगी में भी इतने उतार चढ़ाव आए पर जया  और उसके बच्चों की चिंता करना नहीं भूली…. रितेश भी ज़्यादा ध्यान नहीं देते थे ….हाँ ….पर ये कह चुके थे अबकी छुट्टी में जाकर बँटवारा कर लेते हैं…. नहीं तो छोटा भाई जो सब छोड़कर भाग गया है उसके ज़मीन जायदाद पर तो जया का हक़ है…और माँ के बक्से से उसने कौन कौन से कागज निकाले…उनका कुछ पता नहीं है….. जो हमारे हिस्से की सम्पत्ति है वो भी ना निकल जाए।

पर घर जाने का सोचते उससे पहले ही चारू का भयंकर एक्सीडेंट हो गया…माँ और ननदें बारी बारी से आकर रह गई थी….जब अब चारू खुद सहारे के साथ थोड़ा चलने लगी तो सब चले गये…. पर देवरानी ने कभी झूठे मुँह भी ना फ़ोन किया ना मदद करने आई…. चारू को ये बात चुभ रही थी…. जिस जया के लिए वो पूरे परिवार वालों के विरूद्ध जाकर मदद करती रही थी …. दया करती रही आज उसी जया ने उसकी जरा सी भी परवाह ना की….ननदों ने जब जया से कहा कि चारू बहुत परेशान है… भाई  अकेले सब मैनेज कर रहे…. बच्चे छोटे है … तुम्हें जाना चाहिए … उसने पलट कर कह दिया…. खरोंच ही तो है…. इतना बड़ा क्या ही हो गया जो मैं यहाँ घर बार छोड़ उनकी सेवा करने जाऊँ … चारू को ये बात चुभ सी गई थी…. कहते हैं ना जब तक किसी बात की हद नहीं होती आदमी को सतह पर आने में वक्त लग ही जाता है…

चारू कुछ सोचकर डंडे का सहारा लेकर उठी वॉकर पकड़ कर अलमारी तक गई….कुछ फ़ाइलें निकाली जिन्हें उसने ये सोच कर रख दिया था दो ही तो भाई है…. कहाँ ही ज़रूरत पड़ेगी कभी बँटवारे की…. रिटायरमेंट के बाद वहीं जाकर प्यार से पूरा परिवार साथ रहेंगे….जेठानी देवरानी कभी संग संग नहीं रहे हैं… उस समय बहनों की तरह रहेंगे और जी भर बातें करेंगे…..तभी उसे एहसास हुआ जैसे सासु माँ कह रही है,“ बहू तुमने अपनी ज़िम्मेदारी और रिश्ते दोनों निभाने में कभी कोई समझौता नहीं किया पर अब समय आ गया है…. जो जैसा है उसे उसके हालत पर छोड़ कर अपने बारे में सोचो…. रितेश ने हमेशा परिवार को समझा पर रजत घर छोड़कर भाग गया…. ना उसने पत्नी की परवाह की ना बच्चों की….तुमने जया को बहुत सहारा दिया पर जया उसके लायक़ जरा भी नहीं…. बच्चे उसके है… उसे समझने दे….अच्छा होगा तू जब ठीक हो जाए जाकर अपने हिस्से की ज़िम्मेदारी उठा…वो तेरे बच्चों के भविष्य के लिए धरोहर है … जया को उड़ाने के लिए सब सहेज कर नहीं दिया था उसको…. भूल जा तेरी कोई देवरानी भी है…. जो अपनी सास के मरते पहले बक्से और पैसे की सोच सकती वो किसी की सगी कभी नहीं हो सकती।”

चारू इधर उधर सासु माँ को देखने लगी…. वो बिलख पड़ी…. माँ मुझे माफ़ करें मैंने घर की बड़ी बहू के सारे फ़र्ज़ निभाने की पूरी कोशिश की पर मैं विफल रही जया ने मुझे कभी समझा ही नहीं वो तो मेरी मदद को बहुत हल्के में ले मुझे ही लूट रही थी और मैं ये अब जाकर समझ पाई … हाँ माँ जब ठीक हो जाऊँगी एक बार फिर गाँव जाऊँगी…. सब समेट कर ही आऊँगी…. जो नाता आपकी वजह से बाँधकर रखा था जया  ने उसे बाँधने की कभी कोशिश ही नहीं की और मेरी हाथ से वो सिरा अब छूट रहा है…. जो मैं चाह कर भी पकड़ कर नहीं रख सकती।”

मेरी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा…मेरी रचना पसंद आये तो कृपया उसे लाइक करे कमेंट्स करें ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#मतलबी रिश्ते

2 thoughts on “दरकते रिश्ते – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi”

    • Kahani padh kar Apne vichar dene ke liye dhanywad🙏jarur koshish karungi ye Sachi kahani hain isliye isme Kalpana karke end Karu bhi to kya🙏

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