डर पर जीत – लतिका श्रीवास्तव

आज भी ट्रेन लेट होती जा रही थी…..पानी पीने के लिए बॉटल निकाली ही थी कि हाथ से छूटकर गिर गई उठाने के लिए झुकी ही थी कि किसी ने बॉटल देते हुए …..प्रणाम मैम”…. कहते हुए पैर छू लिए तो शमिता चकित हो गई!कौन है ?का स्वाभाविक प्रश्न उसकी आंखों में पढ़ते हुए सामने पुलिस की वर्दी में खड़ी चुस्त दुरुस्त हंसती हुई लड़की ने उसका हाथ पकड़ कर आतुरता से कहा ….

नहीं पहचान पा रही हैं मैम ध्यान से देखिए ना…. आज इन आंखों में डर नही है ,डर पर  नियंत्रण करना सीख लिया है मैम…..आपसे ही सीखा है मैम…आपकी प्रेरणा और दी गई हिम्मत से मैं आज इस जिले की महिला सुरक्षा विशेष दल की सूबेदार नियुक्त हुई है सबसे पहला सैल्यूट आपको मैम…”..उसने इतने बड़े स्टेशन में सबके सामने  सैल्यूट करके मुझे सार्वजनिक आकर्षण और सम्मान का केंद्र बना दिया।……अरे सुमी तुम”….यकायक मेरे मुंह से निकला।

….any doubt!!! शमिता ने लेसन का पहला चैप्टर समझाने के बाद जैसे ही क्लास में पूछा पीछे से एक हाथ धीरे से उठता हुआ दिखा था उसे।…..very good very good पूछो पूछो क्या पूछना है प्लीज स्टैंड अप….”. बच्चों की पढ़ाई के प्रति जिज्ञासा देख कर शमिता खुश हो गई थी।बहुत संकोच से उस छात्रा सुमी ने सेंटेंस पढ़ा था…

brave is not one who has no fear bt the one who conquers the fear….”mam प्लीज एक बार और एक्सप्लेन कर दीजिए।तब शमिता ने एक बार फिर से समझाया था बहादुर वो नहीं है जिनके मन में डर नहीं है बल्कि वो हैं जिन्होंने डर सामने आने पर उसका डट के मुकाबला किया और विजय पाई हो…..। सुमी के चेहरे  पर संतुष्टि के भाव ने शमिता की अध्यापन क्षमता को भी संतुष्ट कर दिया था।

  …..भोली सी प्यारी सी सुमी जो इसी वर्ष दूर गांव से इस शहर के स्कूल में पढ़ने आई थी…. उसी दिन डरते डरते क्लास के दो लड़कों सैंडी और राकेश की शिकायत लेकर शमिता जो उनकी क्लास टीचर भी थी के पास  आई थी…… दोनों लड़के उसे रोज छुट्टी हो जाने के बाद छेड़ते थे…. उस दिन उन्होंने उसे गर्ल्स टॉयलेट में एकांत देख कर घेर लिया था….

किसी तरह वो बच के आ पाई थी और सीधे शमिता के पास ही आई …शमिता उसे लेकर तुरंत प्रिंसिपल के पास  गई….प्रिंसिपल ने बात को गंभीरता से लेते हुए तत्काल दोनों लडको को बुलवाया लेकिन तब तक वो दोनो भाग गए थे।दूसरे दिन फिर से उन दोनो लडको को कक्षा में अनुपस्थित पाकर शमिता के मन में दोनों के अभद्र व्यवहार और सुमी की सच्चाई पर यकीन हो गया था।




उसने दोनों के अभिभावकों को स्कूल में बुलवाने पर प्रिंसिपल पर दबाव बनाया…..पर अभिभावकों  को बुलाकर समझाने के बजाय बार बार  सुमी को समझाने का प्रिंसिपल का आग्रह उसे आश्चर्य में डाल रहा था ।

अधिकतर स्टाफ भी शमिता  का ही विरोध कर रहा था……. “कोई फायदा नही है शमिता जी आप कुछ भी कर ले !!आप उन दोनों के अभिभावकों को नहीं जानती है शायद आप नई आई हैं ना इसीलिए…..”

सीनियर्स का भी यही दृढ़ विचार था…”अरे शमिता तुम्हे क्या करना है इन लफड़ो में पड़कर….नामचीन स्कूल है शहर का कुछ समझौते करने पड़ते है यहां नौकरी बनाए रखने के लिए..”

“पर मै उनकी क्लास टीचर हूं कितने विश्वास से सुमी ने मुझे अपनी पीड़ा मुझसे शेयर की है ,मासूम विश्वास से भरी सुमी की आंखें शमिता के सामने कौंध गई…”उसने तो अपने माता पिता से भी नही बताया है इस डर से कि कहीं ये सब सुनकर उसका स्कूल छुड़वा कर पढ़ाई ना बंद करवा दें!!!!!

क्लास टीचर हो तो क्या!!!!तुमने अपनी समस्या प्रिंसिपल के समक्ष रख दी बस तुम्हारी जिम्मेदारी खत्म हो गई!अब उन्हें करने दो अपने स्तर पर जो उचित लगे…..वरिष्ठ मल्होत्रा जी ने समझाया।

रसूखदार माता पिता के इकलौते पुत्र होने का दर्प और स्कूल प्रबंधन की स्कूल की साख बचाने की विवशता उन लड़कों को ऐसे अनुचित अमर्यादित आचरण की खुली छूट देते आ रहे थे… गत वर्ष वेलेंटाइन डे पर एक  जूनियर कोखुले आम गुलाब भेंट कर दिया सबके सामने उस पर अश्लील फब्तियां कसी…..उसके भाई के विरोध करने पर चाकू से प्रहार कर उसे लहू लुहान कर दिया और जान से मारने की धमकी भी दे दी…..!

ये सब स्कूल परिसर में हुआ .. सारे शिक्षक मूक दर्शक….स्कूल प्रबंधन रसूखदारों के हाथों की कठपुतली बन मामले को रफा दफा करवाने में सफल हो गया….विवश हताश भाई के पास अपनी बहन की पढ़ाई छुड़वाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचा था…!

आखिर इस तरह की विकृत मानसिकता वाले ऐसे छात्रों का रिजल्ट इतना अच्छा कैसे आ जाता है???शमिता के पूछने पर उसकी सहकर्मी मीरा ने जैसे विस्फोट कर दिया…”उनकी उत्तर पुस्तिका विषय शिक्षक स्वयं लिखते हैं……!”

प्रिंसिपल ने आवश्यक बैठक बुलाई है अभी..”.. चपरासी रामू ने आकर बताया …..बैठक हुई करीब पचास शिक्षकों का स्टाफ जिसमे तीस महिला शिक्षिकाएं थीं इस मुद्दे पर लगभग खामोश ही रहे सबने प्रिंसिपल और प्रबंधन समिति के प्रमुख की हां में हां मिलाई कि मामले को पुलिस में देने से बदनामी का खतरा है….

हमारे लिए हमारा स्कूल और इसकी साख सबसे बढ़कर है…..इस तरह की घटनाएं बेहद आम हैं छात्र छात्राएं साथ में पढ़ेंगे तो स्वाभाविक है ऐसा होना… इसमें ज्यादा बतंगड़ बनाने की आवश्यकता नहीं है…..समिति के प्रमुख ने विशेष रूप से शमिता की ओर दृष्टिपात करते हुए जोर देते हुए कहा……वैसे भी घटना का कोई चश्मदीद गवाह भी नही है…..इसलिए सभी लोग छात्रा को ही शांत रहने के लिए समझाए ….छात्रों को कुछ भी कहने की जरूरत नहीं है और ना ही उनके अभिभावकों को।”..बैठक समाप्त हो गई थी….



सर्वसम्मति से निर्णय लिख कर सभी को स्वीकृति हेतु हस्ताक्षर भी करवा लिए गए …..गुस्से के मारे शमिता ने हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया और बैठक से उठ कर चली गई।

शायद बैठक के निर्णय की खबर दोनों लड़कों को तुरंत पता चल गई थी या फिर उन्हें ऐसे ही निर्णय लिए जाने की पूर्ण आश्वस्ति थी..जो उन्हें मनमानी करने का सुनहरा अवसर दे रहे थे।

बैठक कक्ष से निकलते ही सुमी बहुत घबराई हुई मेरे पास आई थी..क्या हुआ सुमी “….मैने बहुत हिम्मत देते हुए उससे पूछा शायद उसे नही अपने आपको भी मैं उस वक्त हिम्मत दे रही थी…..”मैम वो …वो…वो धमकी देकर गए हैं ..आज स्कूल से घर कैसे पहुंचती हो देखते हैं…!! मैम मैं क्या करूं सभी टीचर्स मुझको ही डांट रहे हैं….मेरी बात पर कोई यकीन ही नहीं कर रहा है…..!मैं घर नहीं जाऊंगी मुझे बहुत डर लग रहा है…….घबराई हुई सुमी डर और दहशत से थर थर कांप रही थी।

शमिता को स्कूल स्टाफ के निजी स्वार्थ परक चिंतन , भेड़ चाल और स्कूल प्रबंधन की नपुंसक कार्य शैली के बीच  सुमी की मासूम सच्चाई …सैंडी और राकेश की घृणित और ओछी हरकतें अपनी बहादुरी और आत्मा की आवाज का दम घोटते नजर आ रहे थे….आज कर्तव्य और कृत्तत्व में…..उसके आंतरिक आत्मा के दबाव और बाह्य दबाव में….सबके साथ चलने या अपनी अंतरात्मा की सच्चाई की आवाज के साथ चलने का अंतर्द्वंद पराकाष्ठा पर चल रहा था।…..

 

…….शायद  सही काम करने की दृढ़ नैतिक ताकत मुझे स्वयं के अपनाए गए इस रास्ते को सही मंजिल तक पहुंचाने को आतुर हो उठी थी…….मैने तुरंत पुलिस थाने में फोन करते हुए सारी परिस्थिति से अवगत करवाते हुए सहायता मांगी,तुरंत महिला पुलिस सादे वेश में उस रास्ते में चारो ओर तैनात हो गई जहां से सुमी को अपने घर जाना था….

सुमी का डर और घबराहट से बुरा हाल था…तुम डरो नहीं मैं तुम्हे आज घर छोडूंगी ….” मैने उसके इस डर से मुकाबला करने में साथ जाने का निश्चय करते हुए अपनी स्कूटी निकाली और पीछे बिठा लिया…..मेरी सहकर्मियों ने हमेशा की तरह मुझ पर भी प्रहार के खतरे का भय दिखाया …पर आज मुझे भीड़ चाल नहीं अपनी आत्मा की नैतिकता की चाल ही चलना था।

पुलिस की मौजूदगी से अनजान वो लड़के अपने साथियों के साथ आज धृष्टता और अनैतिकता  की मूरत बने थे ….थोड़ा आगे आते ही करीब दस लड़के अचानक मेरी स्कूटी के सामने आ गए …कुछ ने मेरी स्कूटी पकड़ ली और सैंडी और राकेश सुमी को पकड़ कर खींचने का प्रयास करने लगे …मैं उनकी शिक्षिका हूं इस बात से उन्हें किंचित मात्र  लेना देना नही था….पर जब तक वो कुछ कर पाते या समझ पाते पुलिस ने उन्हें चारो ओर से घेर लिया था और हथकड़ी लगाकर पुलिस वैन में बिठा दिया था…….।

सच कहा गया है भय का ना होना बहादुर होना नही है बल्कि भय का सामना कर उस पर नियंत्रण पाना ही असली बहादुर होना है।

2 thoughts on “ डर पर जीत – लतिका श्रीवास्तव”

  1. बहुत ही प्रेरक प्रसंग और बच्चो मे अन्मुयाय से क़ाबला करने की शिक्षा देने वाली रचना।
    जयहिंद जयभारत वन्देमातरम

    Reply

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!