अनुपमा की आदत थी। जब उसकी कोई फरमाइश माँ नहीं सुनतीं थीं। तो वह दादी से सिफारिश करवाती थी। तीन भाइयों मे सबसे छोटी थी वह, और कुटुम्ब की इकलौती लाड़ली बिटिया थी। उसकी माँ को लगता था।
सबसे ज्यादा लाड़ दुलार मिलने के कारण अनुपमा जिद्दी हो रही है। और मनमानी करने लगी है।जो उसके भावी जीवन के लिए ठीक नहीं है। इसीलिए वे उसकी नाजायज माँगों को स्वीकार नहीं करतीं थीं। लेकिन दादी कहतीं थी अभी बच्ची है। समय आने पर मैं उसे अपने अनुभव से मिले ज्ञान के द्वारा परिपक्व बना दूँगीं।
दादी घर की मुखिया थीं तो उन्ही का शासन था घर में। उनके खिलाफ कोई नहीं बोलता था। इसी तरह परिवार की व्यवस्था चल रही थी। समय पंख लगा कर उड़ रहा था। अनुपमा कालेज जाने लगी थी। वहाँ उसकी दोस्ती अनुराग नाम के युवक से हो गई। जो कि प्रेम में बदल गई। अभी दोनों की पढ़ाई पूरी नहीं हुई थी।
काम काज का ठिकाना नहीं था। लेकिन अनुपमा शादी के लिए जिद कर बैठी। वह किसी की कोई समझाइश मानने को तैयार ही नहीं थी। तब दादी ने अनुपमा से कहा अनुराग से तेरी शादी मैं करवा दूँगी। लेकिन उससे पहले तुम दोनों अपनी जिम्मेदारी अपनी मेहनत के पैसों से उठाकर दिखाओ। कल से तुम्हें जेब खर्च नहीं मिलेगा और अपना प्रत्येक काम खुद करना होगा।
कोई नौकर या परिवार का सदस्य तुम्हारा हाथ नहीं बँटायेगा। क्यों कि शादी के बाद ससुराल में अपने काम के अलावा परिवार के सदस्यों का भी ध्यान रखना पड़ता है। तो अगर पहले से अनुभव हो तो अच्छा रहेगा।
अनुपमा ने हामी तो भर ली पर बिना पैसों के एक दिन काटना मुश्किल हो गया उसके लिये। इसके अलावा घर के काम करने के कारण वह रात तक बहुत थक गई। सोते समय अनुपमा विचार करने लगी “अनुराग तो यह शर्त मानने को तैयार नहीं है।
वह अकेले क्यों परेशान हो रही है। परिवार है, जब शादी के बारे में सोचने के लिए। तो मुझे चिंता करने की क्या जरूरत है। मैं कल से अपने कैरियर पर ध्यान दूँगीं बस, शादी को वाय कर के।” सुबह उसने दादी को अपना फैसला सुनाया तो उन्होंने उसे ढ़ेरों आशीष दीं उचित फैसला लेने के लिए। परिवार के लोग भी प्रसन्न हुए दादी के प्रयोग से। अनुपमा उन्हीं की वजह से परिवार का महत्व समझ पाई थी।
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स्वरचित — मधु शुक्ला .