दबंग मोहल्ला – शैली गुप्ता

सीमा बैग उठाए स्टेशन से बाहर निकली और बाहर खड़े रिक्शावाले से पूछने लगी, ” भैया शर्मा नगर चलेंगे?”

रिक्शावाला ज़ोर से हंसता हुआ बोला,” अच्छा आपको दबंग मोहल्ला जाना है….. बैठो।”

रिक्शावाले की बात सुनकर सीमा पुलक कर हंस पड़ी और रिक्शा में बैठ गई और सोचने लगी,” हां!!! दबंग मोहल्ला…..इसी नाम से तो अब उसका मोहल्ला जाना जाता है। ” और इसी के साथ सीमा पुरानी यादों में खो गई।

रात को सब काम समेट कर सीमा ने जैसे ही बाहर छज्जे की लाइट बंद की उसी के साथ उसके बिल्कुल सामने वाले घर का दरवाज़ा खुला और सामने रहने वाले हरी ने एक झटके से अपनी पत्नी को हाथ पकड़ बाहर धक्का दे दिया, ” निकल जा इस घर से। अब अपने बाप के पास रह। लड़की पर लड़की को जन्म दिये जा रही है और जबान कैंची की तरह चलाती है। तेरे जैसी के लिए मेरे घर में जगह नहीं है, निकल जा यहां से।”

धक्के से हरी की पत्नी आशा लगभग गिरते गिरते बची और दरवाज़ा पकड़ अपने पति के आगे रोते हुए मिन्नत करने लगी कि वो ऐसा ना करे और जो भी बात है वो अंदर चलकर सुलझा ले और बाहर तमाशा ना बनाए पर हरी समझने के कतई मूड में नहीं था।

सीमा बुत बनी तमाशा देख रही थी और उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये कैसे रोके। उसके पति को किसी के पचड़े में पड़ना बिल्कुल पसंद नहीं था पर सीमा से रोती बिलखती आशा देखी नहीं जा रही थी।




सीमा ने एक कदम अपने कमरे की ओर बढ़ाया पर साथ ही वापिस मुड़ गई और जो लाइट का स्विच उसने बंद किया थी उसे फिर से चला दिया। रोशनी होते ही हरी और आशा उसकी तरफ देखने लगे और हरी इंतजार करने लगा कि सीमा भाभी अंदर जाए तो वो आगे अपनी पत्नी को सीधा कर सके।

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पर सीमा अंदर जाने के लिए नहीं मुड़ी और वहीं खड़ी होकर गुस्से से हरी को घूरने लगी। उम्र में बड़ी होने के कारण हरी सीमा की इज्ज़त करता था और उनके विरोधी तेवर देखकर दो मिनट में ही अपनी पत्नी का हाथ पकड़ अंदर जाने लगा। अंदर जाती हुई आशा ने पलट कर सीमा को देखा और उन नजरों में सीमा के लिए शुक्रिया के भाव थे । उनके अंदर जाने के बाद भी सीमा काफी देर बाहर खड़ी रही कि हरी कहीं फिर से बाहर न आ जाए पर ऐसा नहीं हुआ।

सीमा अंदर आ कर अपने बिस्तर पर लेट गई और उस दिन उसे एहसास हुआ कि उसकी एक पहल से आशा की परेशानी थोड़ी कम हो गई।

उसके बाद सीमा ने मानो ये मन बना लिया था कि जहां तक उसके बस में होगा वो ऐसे ही आशा जैसी औरतों की मदद करेगी। पर ज्यादा हैरानी उसे तब हुई जब उसने यही आशा को भी करते देखा। और फिर आशा ने उसे बोला ,”भाभी उस दिन आप बीच में न पड़ती तो जाने बात कितनी बढ़ती। आपकी हिम्मत ने मेरे अंदर हिम्मत जगा दी। वो आखिरी दिन था जब मुझे घर से निकालने की कोशिश की गई थी। उसके बाद मेरे अंदर के बदलाव को देख ऐसा करने की किसी की हिम्मत नहीं बनती अब। और आपकी ही तरह अब मैं भी अपनी तरह किसी परेशान औरत के लिए खड़ा होने से नहीं डरती। धन्यवाद भाभी उस दिन के लिए।”



 

सीमा ने आशा को गले से लगा लिया और आशा फिर से कहने लगी,” भाभी मैंने फॉल टांकने और ब्लाउज सिलने का काम शुरू किया है ताकि कुछ पैसे हाथ में आएं। अगर आपको कभी कुछ काम करवाना हो तो बताना मुझे।”

सीमा अभी यादों में खोई हुई थी कि रिक्शावाला भैया बोल पड़ा,” बहनजी !आपको नहीं पता कि इस मोहल्ले की औरतें बड़ी खतरनाक हैं। सबने मिलकर अपने और अपने पड़ोस की ससुराल वालों की नाक में दम किया हुआ है। मजाल कोई अपनी बहू को कुछ गलत कह दे, सब मिलकर खड़ी हो जाती हैं और अब तो वहां हर औरत अपना छोटा मोटा काम भी करती है –  कोई कपड़े सीती है तो कोई अचार पापड़ बनाती है तो कोई रजाई गद्दे बनाती है तो कोई स्वेटर बनती है। सब अपना कमाती हैं और आराम से ठसके से रहती हैं। सही में बहन जी सब दबंग हैं, अपनी शर्तों पर जीती हैं।”

सीमा ये सब सुनकर मुस्कुरा दी और बोली,” भैया लगता है आपको ये मोहल्ला बिल्कुल नहीं पसंद। तो आप मुझे बिठाने से ही मना कर देते, मत लाते मुझे।”

” बहन जी! बड़े टाइम तक मैंने यही किया था और मैं यहां की सवारी नही बिठाता था पर महीना भर पहले मेरे दामाद ने भरी रात में मेरी बिटिया को धक्के दे कर घर से निकाल दिया। रोती कलपती मेरी बेटी किसी तरह मेरे पास पहुंची और तब उसकी हालत देखकर बस यही इच्छा हुई थी मेरी कि काश इसका मोहल्ला भी दबंग मोहल्ला होता, वहां भी गलत का विरोध करने वाली औरतें होती तो आज मेरी बेटी के साथ ऐसा न होता।”, कहते कहते रिक्शा वाला सिसक पड़ा । ” और साथ ही सीमा की भी आंखें नम हो गई।

#विरोध

 

मौलिक , अप्रकाशित

#विरोध

धन्यवाद

शैली गुप्ता

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