दरवाजा खोला तो पड़ोस का प्रमोद घबराया हुआ था। रात के करीब डेढ़ बजे होंगे।
“क्या बात है प्रमोद?”
“भैया कुछो समझे में नहीं आ रहा है, बाबुजी को सीने में बहुत दर्द है,सांस भी नहीं ले पा रहे हैं, छटपटा रहे हैं, थोड़ा चलकर देख लीजिए ना, कुछो दवाई दे देते तो”
“हां हम चलते हैं, पर हम तो थोड़ा बहुत होम्योपैथी दवाई रखते हैं..”
बात करते हुए ही हम पहुंचे। हालत बहुत खराब लग रही थी उनकी
“देखो प्रमोद, इन्हें शहर ले जाना पड़ेगा”
“भैया, कैसे ले जाएं? प्रदीप का ऑटो खराब है, गांव में किसी के पास गाड़ी नहीं है, आपकी स्कूटी से ले चले क्या?
“स्कूटी से कैसे ले चलेंगे,उतनी दूर इस ठंड में, एक काम करो, रामाधीर सिंह चाचा परसों ही नई गाड़ी लिए हैं, उनके घर चलते हैं”
“उ देंगे भैया..वहां जाने से कुछो फायदा नहीं होगा..देखते नहीं हैं आप, उ किस रौ में रहते हैं..पैसे का कितना घमंड है.. बात बात पर तो डांट देते हैं”
बात तो सही कह रहा था प्रमोद। उनकी बेमतलब की डांट खाकर गुस्सा तो बहुत आता है पर हालत गंभीर होती जा रही थी, प्रमोद की माँ भी डर से कांप रही थी
“तुम चलो मेरे साथ जल्दी”
हम टार्च जलाकर पीछे वाली गली से रामाधीर सिंह के घर की तरफ तेज कदमों से चल दिये”
डरते हुए उनके गेट पर पहुंच मैंने ही आवाज लगाई। थोड़ी ही देर बाद रामाधीर चाचा दरवाजे से बाहर आये
“का बात है?”
“चाचा! उ दसरथ चाचा, जिनकी बीघे पर घर है, उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई है, शहर ले जाना पड़ेगा, प्रदीप का ऑटो खराब है, नहीं तो हम..”
“तो कैसे लेकर जाओगे”
“यही तो घंटे भर से सोच रहे हैं, बहुत सकुचाते हुए आपके पास आये हैं, आपकी गाड़ी अगर..”
बहुत हिम्मत करके मैंने उनसे उनकी गाड़ी मांगी थी।
“पैसे हैं तुमलोगों के पास?”
“जी पैसे?..दो चार हज़ार..तो हैं मेरे पास”
“गाड़ी चलाएगा कौन?
“गाड़ी तो हम में से किसी को नहीं..”
बड़े निराश होकर मैंने उनसे कहा, और वापस लौटने लगा, सोचा अब स्कूटी से ही ले जाना पड़ेगा..तभी
“तुमलोग दसरथ को ले चलने की तैयारी करो..हम कुछ पैसा और गाड़ी लेकर पहुंचते हैं”
“आपको कुछो दिक्कत तो नहीं होगा..?”
“गजब बात कर रहे हो जी तुमलोग, एगो आदमी बीमारी से तड़प रहा है अउर तुमलोगों को हमरी दिक्कत की पड़ी है,” वे हमें डांट कर अंदर चले गए.. आज पहली बार उनकी डांट खाकर, गुस्सा नहीं आया, बल्कि.. आँसू छलक पड़े.!
विनय कुमार मिश्रा