दान का इंतिहान – अर्चना नाकरा

दादाजी की शुद्धि विधिवत संपन्न हो गई थी

दादी तटस्थ भाव से बहुत देर तक बैठी रही फिर धीरे से उठ कर उन्होंने दादा जी की अलमारी में से उनके रखे सामान को एक-एक करके निकालना शुरू किया

‘कपड़े जूते.. उनकी छड़ी”!

जिसमें “दादाजी की जान बसती थी”

और न जाने कितनी चीज विशेषता ‘भीतरी कपड़े’ राहुल देख देख कर हैरान था

जिन चीजों को दादी अच्छे से प्रेस करवा कर रखा करती थी आज ‘उन्हें बिना आंसू बहाए चुपचाप निकालती जा रही थी’ बिस्तर पर एक चादर बिछाकर अलग-अलग ढेरियां बना दी गई

उन कपड़ों को पहले ही धुलवा कर रखवा लिया गया था

और फिर दादी ने अलग-अलग पैकेट बनवा कर उनके ऊपर राहुल से ही स्लीप लगवा ली

यह  पुराने माली काका.. यह धोबी भैया का.. गली वाले सफाई वाले भैया का!

वह बागवान भैया का.. और न जाने उनके कितने ‘स्वेटर कंबल सब इसी तरह लिस्ट में जुड़ते चले गए ‘

राहुल ने दादाजी की कुछ चीजों को “दादी से बचाकर छुपा लिया था”

दादी ने सब देखा पर चुप रही और फिर शाम को ड्राइवर भैया के साथ राहुल को भेजा कि जा कर यह सारा सामान बांट आये

वो.. सब लोग बहुत दूर दूर रहते थे कोई पूरब दिशा की ओर था तो कोई पश्चिम..


शाम तक सारा सामान बांट कर जब राहुल घर आया तो दादी ने उसे अपने कमरे में बुलाया उसके सिर पर हाथ फैरा और कहा सुन ..’जो तूने दादाजी की जैकेट छुपा कर रखी है साथ ही चश्मे का कवर और भी.. बहुत सारी चीजें’

‘सब निकाल के मुझे  दे देना’

” राहुल हैरान हो गया था” सोचने लगा’ दादी से तो कुछ भी नहीं छुपता ‘

दादी ने  कहा, कुछ खा पी ले फिर मेरे कमरे में आना राहुल थोड़ा सहमा हुआ था ..’ वो इतना छोटा भी नहीं था ‘नया-नया नौकरी पर लगा था

दादी बोली, राहुल मेरी बात ध्यान से सुनना!

उसके मम्मी पापा भी आकर साथ बैठ गए थे दादी ने आंख बंद करके तकिए के साथ टेक लगा ली और फिर बोली, तुम्हें मालूम है इतने सालों तक तुम्हारे दादाजी की जिन चीजों को मैं इतना सहेज कर रखती आई ‘अचानक  वो सब क्यूं बांट दिया ‘? इसके पीछे एक बहुत बड़ी कहानी है और एक गहरा राज भी!

तुम कहते हो तुम्हारी दादी बड़ी हाईटेक हो गई है ‘यूट्यूब ..भक्ति चैनल सुनती है’

पर उसमें भी बहुत सारी चीजें है जो समझ में आती हैं और जिनकी सच्चाई भी आज मैं ‘तुमसे शेयर करना चाहती हूं’

अभी कुछ समय पहले ही मैंने सद्गुरु जी का एक प्रवचन सुना था और अब मैंने उस पर अमल भी किया.. उन्हीं के शब्दों के अनुसार ‘आत्मा जाने के बाद अपने कपड़ों में चीजों में निवास करती है’

पता है तुम्हें बिना धोए रखे कपड़ों से.. “खुराफाती लोग इंसानी कोलोन बना सकते हैं” यानी “एक दूसरा वैसा हूबहू मानव” !

जो गलत है!

दूसरी चीज ..अनजानी शक्तियां उस पसीने गंध इत्र की खुशबू के साथ मिलकर कुछ भी करवा सकती हैं

जो उचित नहीं है!


इसलिए जितना दान कर सको.. जितना दे सकते हो.. बांट दो!

माना बहुत कुछ बांटा नहीं जाता.. हंसोगे ये सुनकर कि मैंने ‘दादाजी की अंगूठी उनकी चैन ‘यह सब क्यों नहीं बांटी’

उनको साफ-सुथरा करके क्यों रखवा दिया?

यकीनन  बहुत कुछ धोकर इस्तेमाल किया जा सकता है पर उनके

अंदरूनी कपड़े बिल्कुल नहीं !

उनकी वह चीजें जिन्हें ‘वह हरदम इस्तेमाल करते थे’

‘ जिसमें उनके हाथ लगे रहते थे ‘

उन चीजों पर अब हक त्याग कर उन्हें दूसरों को देना बेहतर होगा.. “विशेषता रोजमर्रा की चीजे”

शायद उनकी आत्मा की शांति के लिए… और उन्हें इस घर से मोह त्यागने के लिए यह बहुत जरूरी है!

बाकी “तुम जैसा ठीक समझो”

राहुल धीरे से उठा और दादा जी की आखिरी समय में पहनी हुई जैकेट को उठा लाया और आंसू पौंछते हुए बोला..’ दादी कल  ये धुलवा देना और अपनी गली की दूसरी और बैठने वाले चौकीदार भैया रात में ठंड से बहुत कांपते हैं.. यह उन्हें दे देंगे!

और यह छड़ी भी.. दादी ने उसके सिर पर हाथ रखा और कहा बेटा मेरी बातों पर गौर फरमाना!

‘मैं तो पत्नी हूं उनकी’

पर जो चीज जैसे समझ में आए उस पर अमल कर लेना चाहिए… मूल बात तो दान करने से भी जुड़ी है और भावनाओं से भी!

लेखिका अर्चना नाकरा

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!