दाल भात में मूसर चंद – संध्या त्रिपाठी   : Moral Stories in Hindi

सुनते हैं जी ….वो प्रेक्षा बोल रही है नई मूवी आई है… देखने जाना है …अंजिता ने काम करते हुए पति रत्नेश से कहा….! हाँ तो जाए ना …इसमें पूछने वाली कौन सी बात है…. नई-नई शादी हुई है … जाएँ घूमे फिरे…. जिंदगी का आनंद लें…. रत्नेश ने भी सहज भाव से उत्तर दिया…।

अरे बाबा…. वो दोनों प्रेक्षा और तुषार (बहु बेटा) हमारे साथ पिक्चर देखने का प्लान बना रहे हैं…. !

हमारे साथ…..? हम क्या करेंगे जाकर….? अब उम्र है पिक्चर देखने की….?? वो भी बहू बेटे के साथ …..तुम भी ना……..

” दाल भात में मूसर चंद “

क्या ….? दाल भात में मूसर चंद…. अरे आप दोनों तो दाल भात में घी और चटनी है मम्मी पापा …..पास खड़ी प्रेक्षा ने सास ससुर की बात सुनते ही हाजिर जवाब दिया….।

बगल में तुषार मोबाइल में ऑनलाइन टिकट ही देख रहा था ….  इसी बीच अंजिता ने कहा…. तुम लोग हमें भी ले जाने के चक्कर में हो और तेरे पापा दाल भात में मूसर चंद बोल रहे हैं …..!

हंसते हुए मजाकिये मूड में तुषार ने कहा…..हाँ तो मम्मी कभी-कभी पापा की बात भी मान लिया करो …..और सब ठहाका मारकर हंसने लगे…।

काफी सोच-विचार के बाद अंजिता ने बहू को समझाते हुए कहा…. बेटा तू तुषार के साथ पिक्चर देखने चली जा…. नई-नई शादी हुई है तुम लोग एंजॉय करो…. हम लोग तो वैसे भी पिक्चर विक्चर नहीं जाते हैं….।

मम्मी …15 – 20 दिन से मैंने तुषार के साथ ही तो हनीमून पर अकेले समय बिताया था ना ….और हम दोनों तो हमेशा अकेले बाहर जाते ही हैं ….कभी-कभी मम्मी… होटल के रूम में हम दोनों अपने अपने मोबाइल में व्यस्त रहते हैं तो ऐसा लगता है कि.. इतने पैसे खर्च कर मोबाइल में ही टाइम पास करना था तो… घर क्या बुरा था…. हंसते हुए प्रेक्षा ने अंजिता से कहा….।

फैमिली के साथ भी तो बाहर जाना चाहिए ना मम्मी… चलिए ना… प्लीज चलिए …पिक्चर देखेंगे कुछ शॉपिंग करेंगे बाहर खाना खाएंगे मजा आएगा मम्मी ….मना मत कीजिएगा ….प्रेक्षा ने अपनी पूरी कोशिश लगा दी सास-ससुर के साथ बाहर घूमने फिरने की….।

मन ही मन अंजिता भी तो यही चाहती थी… वो भी तो घूमने फिरने …मौज मस्ती की शौकीन थी …अच्छा खाना …अच्छा पहनना …पार्टी-शार्टी …उसकी पहली पसंद हुआ करती थी…. पर शादी के बाद रत्नेश स्वभाव से शांत शर्मीले ….इन सब चीजों से दूर …उन्हें इन सब चीजों का कोई शौक था ही नहीं …..धीरे-धीरे अंजिता ने भी भाग्य और नियति मानकर… घर परिवार की भलाई और शांति के लिए कभी भी अपनी इच्छा को सर्वोपरि नहीं रखा….।

  वो जब भी अपनी देवरानी और जेठानी को अपने-अपने पतियों के साथ घूमते फिरते देखती तो मन मसोस कर रह जाती …शायद मेरा किस्मत या भाग्य ही नहीं है …जिंदगी में खूबसूरत लम्हों को बिताने का… जिंदगी के कुछ मामलों में मैं  “अभागन ” हूं ऐसा सोचकर अंजिता खामोश हो जाती…!

    अब बच्चे बड़े हो गए …बाहर चले गए… वर्षों से पति पत्नी अकेले…. टी वी …मोबाइल …टहलना …आस पड़ोस तक ही जिंदगी सिमट कर रह गई थी…।

अभी महीने भर पहले ही तो बेटे तुषार की शादी हुई थी …अब घर में एकदम चहल-पहल… एक अलग ही खुशनुमा माहौल…!

   मम्मी चाय बना दूं ….? प्रेक्षा के पूछते ही अंजिता ने मुस्कुराकर स्वीकृति में सिर हिला दिया ….वो इन सब चीजों को दिल से एंजॉय कर रही थी… इससे पहले कोई एक गिलास पानी भी पूछने वाला नहीं था…

      हालांकि रत्नेश अंजिता का काफी ध्यान रखते थे….! रत्नेश भी मुस्कुरा कर कहते ….वाह….अब तो तुम्हारा चांदी है तुम्हारी पदोन्नति जो हो गई है….।

अंजिता स्वयं ये चाहती थी कि …मेरे रहने से बहू को कुछ आराम मिले ….सासू माँ का रहने के सुख से बहू भी तो परिचित हो….।

मम्मी 3:00 से 6:00 वाले शो की टिकट मैंने बुक करा दिया है….. आप लोग तैयार हो जाइएगा ….तुषार ने कहा…. अब तो रत्नेश को मना करने जैसा कोई मौका ही नहीं मिला…।

मन ही मन अंजिता खुश हो रही थी …कितने दिनों बाद आज फिर से पिक्चर हॉल में पिक्चर देखने का मौका मिला है…. पिछली दफे बेटी दामाद आए थे तब उनके साथ गई थी ….रत्नेश तो अकेले कभी ले जाने से रहे…।

बड़े उत्साह से शाम को तैयार हो सभी निकल पड़े… पूरे उत्साह के साथ अंजिता तो थी ही…रत्नेश भी कुछ कम नहीं थे…. पहले तो जाने में आनाकानी करेंगे ..पर जाने के बाद पूरा एंजॉय कर रहे थे. …आज रत्नेश भी तो तुषार से कम नजर नहीं आ रहे थे…।

पिक्चर में समय-समय पर हंसना ..ताली बजाना रत्नेश का एक बदला रूप दिखाई दे रहा था…। काफी दिनों के बाद अपने परिवार के साथ और वो भी ….बहू के कहने या जिद करके ले जाने पर ….वो खुशी रत्नेश और अंजिता बयां नहीं कर पा रहे थे…।

घर आकर अंजिता अपना व्हाट्सएप स्टेटस अपडेट की… हंसते खेलते मुस्कुराते फैमिली फोटो डालकर…।

अरे वाह मम्मी…. स्टेटस देखते ही बिटिया का पहला फोन ….. मम्मी …भाभी के आने से अब मेरी चिंता कम हो गई है …. आप लोगों का ध्यान और खुश रखने के लिए अब सिर्फ मैं ही नहीं ….मेरी एक बहन के रूप में समझदार प्यारी भाभी भी आ गई है …..। बगल में बैठी प्रेक्षा , ननंद के मुख से अपनी तारीफ सुनकर खुश हो गई…।

ससुराल के लोगों से अपनी प्रशंसा सुनकर …प्रेक्षा का सास ससुर और ससुराल के लिए कुछ और अच्छा करने का हौसला दुगना बढ़ गया….।

खुद को अभागन समझने वाली अंजिता आज ऐसी बहू बेटा पाकर अपनी किस्मत को दाद देते नहीं थक रही थी और भगवान का लाख-लाख शुक्रिया अदा कर रही थी ..!

दोस्तों… इस उम्र में माता-पिता को क्या चाहिए… थोड़ा सा प्यार और परवाह ….यदि आपसी समझ से थोड़ा बड़ों को अहमियत दे दिया जाए ….तो फिर देखिए उनका प्यार और उनके द्वारा मिली प्रशंसा ….।

आज की पीढ़ी बहुत समझदार और पढ़ी लिखी है… और अब समाज में रिश्तों के बदलते मायने भी दिखाई दे रहे हैं… ! नई पीढ़ी की विवेक बुद्धि.. समझदारी …और बुजुर्गों का धैर्य संतोष और शांति बनाए रखना… एक सकारात्मक परिवर्तन लाने में सफल होता दिखाई दे रहा है…।

पाठको…मेरे विचार पर आपके प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा …!

( स्वरचित मौलिक एवं सर्वाधिकार  सुरक्षित  रचना )

साप्ताहिक विषय #  अभागन

संध्या त्रिपाठी

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