Moral stories in hindi : ” आखिर क्यों नहीं हो सकती है शादी मामी। मैं अच्छा कमाता हूँ।कोई गलत आदत भी नहीं है मुझमें,आप तो मुझे बचपन से जानती हैं।फिर क्यों….?” मानसी का हाथ पकड़कर अंकित आवेश में आ गया। मानसी बोली, ” मुझे तुम पर पूरा विश्वास है लेकिन…।”
” लेकिन क्या मामी ? क्या धरा मुझे पसंद नहीं करती? बताइये ना, ऐसी क्या बात है जिसके लिए आप शादी के लिए इंकार कर रहीं हैं।”
” वो क्… या…है… कि….।” कहते हुए मानसी की ज़बान लड़खड़ाने लगी।
धरा मानसी के छोटे भाई अनंत की बेटी थी।वह देखने में जितनी सुंदर और पढ़ाई में होशियार थी उतनी ही स्वभाव की चंचल भी थी।
मानसी जब भी अनंत से मिलने आती तो धरा कहती,” बुआ,आप तो हमेशा पापा-मम्मी से मिलने आती हैं, मेरे से मिलने कब आएंगी?” उसकी इन भोली बातों से मानसी का मन प्रफुल्लित हो जाता था।
एक दिन अनंत के ऑफ़िस में तीन आपराधिक किस्म के लोग आये।वे उससे गैरकानूनी काम करवाना चाहते थें।अनंत ने उनका काम करने से मना कर दिया और पुलिस को बुला लिया।पुलिस उन्हें पकड़कर तो ले गई लेकिन अगले ही दिन वे तीनों जमानत पर रिहा हो गये और अनंत से अपने अपमान का बदला लेने की योजना बनाने लगे।
तब धरा नौवीं कक्षा में पढ़ रही थी।परीक्षाएँ नज़दीक थीं, एकस्ट्रा क्लासेज़ और ट्युशन की वजह से घर लौटने में अक्सर ही उसे देर हो जाती थी।एक दिन वह स्कूल से घर वापस नहीं आई।रात के दस बज गये लेकिन धरा का कुछ पता नहीं चला।
अनंत ने उसकी सहेलियों-दोस्तों के घर फ़ोन करके भी पूछा लेकिन निराशा ही हाथ लगी।पुलिस के पास भी नहीं जा सकते क्योंकि वो भी चौबीस घंटे के बाद ही रिपोर्ट दर्ज़ करती है।सो अनंत और उसकी पत्नी दरवाज़े पर आँख लगाये सुबह होने का इंतज़ार करने लगे।
नौ फ़टते ही एक जीप उसके घर के सामने आकर रुकी, एक आदमी ने धरा को हाथ पकड़कर नीचे उतार दिया और जीप में बैठकर चला गया।बेटी को देखकर दोनों दौड़े और उसके फटे कपड़े तथा रक्त-रंजित काया देखकर बेटी के साथ हुई अनहोनी का एक-एक अक्षर उनकी आँखों ने पढ़ लिया था।
धरा कई दिनों तक तो मौन रही,फिर एक दिन अपनी माँ के सीने से लगकर खूब रोई।अनंत ने उसके स्कूल में बीमारी की अर्ज़ी दे दी,पिछली परीक्षाओं के अंक के आधार पर स्कूल ने उसे दसवीं में कर दिया।
डाॅक्टरी चिकित्सा से उसके शरीर के घाव तो भर गये थें लेकिन मन की चोट…, मन के चोट की टीस जब उभरती तो उसकी आँखों के सामने वह खौफ़नाक दृश्य आ जाता और वह सिहर उठती।
अनंत उन अपराधियों को सज़ा दिलाना चाहता था लेकिन पत्नी ने कहा,” एक बार उन्हें पुलिस के हवाले करके अंजाम तो देख ही चुके हो, अब जो बचा है, बस वो सलामत रहे।” फिर उन्होंने भी चुप्पी साध ली।
अनंत ने अपना घर और धरा का स्कूल बदल दिया।नये परिवेश में धरा स्वयं को ढ़ालने का प्रयास करने लगी।बीए करने के बाद वह बीएड करके अध्यापन में स्वयं को व्यस्त रखना चाहती थी।
इसी बीच मानसी ने अपने बेटे रितेश की शादी तय कर दी और अपनी मदद के लिये वह धरा को अपने साथ ले आई।
रितेश की बुआ का बेटा अंकित भी वहाँ आया हुआ था।अंकित ने पहली बार धरा को देखा तो देखता ही रह गया।शादी के व्यस्त माहौल में भी वह धरा से मिलने के बहाने ढूँढ़ ही लेता था।
कुछ दिनों के बाद धरा वापस अपने घर चली आई और अंकित भी धरा को अपने दिल में बसाकर अपने घर चला गया।धरा अपने अतीत के कारण अपना प्यार अंकित पर प्रकट करने से कतरा रही थी, यही वजह थी कि वह अंकित का फ़ोन रिजेक्ट कर देती।
कभी बात भी करती तो नपे-तुले शब्दों में।अंकित ने तय कर लिया कि वह धरा से ही विवाह करेगा।इसीलिये जब घर में उसके विवाह की चर्चा होने लगी तो उसने अपनी माँ को बताया कि वह रितेश की ममेरी बहन धरा से विवाह करना चाहता था।
अंकित की माँ सुषमा को भी धरा पसंद थी।लेकिन जब उसने मानसी से अंकित के साथ धरा के विवाह की बात छेड़ी तो मानसी ने पढ़ाई का बहाना बनाकर टाल दिया।अंकित से रहा नहीं गया और मानसी से विवाह न होने का कारण पूछने आ गया।
” बताइये न मामी, धरा के साथ मेरी शादी क्यों नहीं …”
” क्योंकि वह तुम्हारे लायक नहीं है” मानसी के मुँह से निकल पड़ा।
” लायक नहीं है…से क्या मतलब?”
और तब मानसी ने अंकित के सामने धरा के जीवन का एक-एक पन्ना खोलकर रख दिया।सच्चाई जानकर अंकित बोला,” मामी, इसमें धरा का क्या कसूर है? बचपन में हुए एक हादसे की वजह से उससे जीने का अधिकार छीन लेना तो उसके साथ अन्याय करना होगा।”
मानसी बोली,” न्याय- अन्याय तो मैं नहीं जानती पर हमारा समाज तो इसे एक कलंक मानता है बेटा।फिर तुम्हारे मम्मी-पापा भी तो धरा की इस सच्चाई को स्वीकार नहीं करेंगे।”
” मैं उन्हें मना लूँगा ” कहकर अंकित वहाँ से चला गया। डिनर के बाद उसने अपने मम्मी-पापा को धरा के बारे में बताया तो सुषमा जी गुस्से-से भड़क उठी,”एक कलंकित लड़की मेरे घर की बहू कभी नहीं बन सकती।”अंकित ने फिर भी अपना इरादा नहीं बदला।
उसने अपनी बड़ी बहन निष्ठा को सारी बातें बताई तो उसे अपने छोटे भाई पर बहुत गर्व हुआ और उसने अपनी माँ को समझाने का प्रयास किया कि माँ, जब राम के स्पर्श से शिला बनी अहिल्या पुनः स्त्री बन सकती है तो धरा के जीवन पर लगा हुआ दाग क्यों नहीं धुल सकता है।
सुषमा जी के पति ने भी उनसे यही कहा कि हम बहुत भाग्यशाली हैं जो हमें अंकित जैसा बेटा मिला है।वह एक नेक काम कर रहा है, हमें तो उसका साथ देकर उसका हौंसला बढ़ाना चाहिए।
अंततः सुषमा जी ने अपनी ज़िद छोड़ दी और बेटे का रिश्ता लेकर सपरिवार अनंत के घर चली गईं।सादगीपूर्ण तरीके से विवाह सम्पन्न हुआ और धरा अंकित की जीवन-संगिनी बन गई।
अंकित के साथ-साथ उसे ननद और ससुर का भी भरपूर स्नेह व सहयोग मिला लेकिन सुषमा जी अभी भी धरा को बहू रूप में स्वीकार नहीं कर पा रही थीं।
कुछ महीनों के बाद जब अंकित ने अपनी माँ को बताया कि धरा माँ बनने वाली है और उसी समय निष्ठा ने भी उन्हें बताया कि दस वर्षों के बाद वह भी माँ बनने वाली है तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा।धरा के प्रवेश करते ही उनके घर में खुशियों की बरसात होने लगी थी।
आशीर्वाद लेने के लिए धरा जब अपनी सास के चरण- स्पर्श करने लगी तो सुषमा जी ने उसे अपने हृदय से लगा लिया और मुस्कुराते हुए उसका माथा चूमकर बोली,” तुम तो साक्षात् लक्ष्मी हो।” और तब धरा की आँखें खुशी-से छलछला उठी।
विभा गुप्ता
#दाग स्वरचित
धरा के साथ हुआ हादसा तो किसी के साथ भी घटित हो सकता है मगर उसे एक दाग अथवा कलंक समझना मूर्खता है।परिवार और समाज का यह दायित्व है कि वे उसे भरपूर प्यार व स्नेह देकर फिर से जीने के लिए प्रेरित करें जैसे कि अंकित और उसके परिवार ने धरा को अपनाकर उसका जीवन खुशियों से भर दिया।
V
Very nice and heart touching