नन्ही मासूम पीहू क्या ही जानती थी कि उसे दुआएँ देने की जगह कोसा जा रहा है आज तो उसका जन्मदिन है पर हर साल की भाँति दादी की तरफ से उसे तोहफे में बस बद्दुआएं ही नसीब होने वाली है ।
तीन साल की पीहू ये सब क्या ही जाने कि दादी उसके जन्मदिन पर उसे क्या दे रही है वो तो सोच रही है जन्मदिन पर उसे दादी दुआएँ ही दे रही होगी ।
नन्हे कदमों से चल कर पीहू दादी के पास आई।
तभी उसके पिता नवल बाबू बोले,‘‘ माँ पोती को दुआएँ तो दे दो आज इसका जन्मदिन है।‘‘
“हाँ हाँ जुग जुग जियो !” मुँह बना कर कांता देवी ने कहा
नन्ही पीहू दादी की गोद में चढ़ने को मचल उठी।
पर परे हटकर कांता देवी वहाँ से चली गईं।
पीहू दादी दादी करती उसके पीछे जाने लगी ये देख नवल बाबू ने अपनी बिटिया को उठा कर ढेरो प्यार जता दिया जिससे पीहू खुश हो गई।
कांता देवी पीहू को कभी अपना ही नहीं पाई।
कारण बस यही था कि उसके पैदा होते ही उसकी माँ की हालत गंभीर हो गई थी, डॉक्टर बचा न सके और नवल बाबू की जिन्दगी में पीहू को दे कर वो अंनत यात्रा पर चल दी।
कांता देवी ने बेटे को बहुत जोर दिया कि दूसरी शादी कर ले पर नवल बाबू पीहू के लिए सौतेली माँ लाने को तैयार ही नहीं थे।
कांता देवी को न चाहते हुए भी पीहू की देखभाल करनी पड़ती थी। नवल बाबू हमेशा कोशिश करते बिन माँ की बच्ची को दादी का खूब प्यार मिले पर कांता देवी के मन में पीहू के लिए प्यार कभी ना उपजा।
दादी के बढ़ते तानो के साथ साथ पीहू भी बढ़ने लगी।
पढ़ने में होशियार पीहू कभी किसी को शिकायत का एक मौका ना देती। थोड़ी समझदार होने पर वो घर के साथ साथ पापा और दादी का भी पूरा ध्यान रखने लगी।
पीहू दादी से जितना प्रेम करती दादी उसको उतना ही कोसती “जाने कौन सी घड़ी में पैदा हुई जो माँ को ले गई, मेरा बैटा ऐसे ही रह गया, तेरे चक्कर में दूसरा ब्याह ना किया, कुल का वंश आता तो अच्छा था तू काहे आ गई और भी ना जाने क्या क्या… ।‘
पीहू ये सब सुनती तो बहुत रोती पर कुछ ना कहती जानती थी कि दादी अपने बेटे के लिए ही दुखी होती है और जो भी हो फिर भी उन्होंने ही तो उसे इतना बड़ा किया , इसके लिए चाहे उनका मन हो ना हो जो भी किसी अपने बेटे की खातिर ही सही , उन्होंने इतना तो किया।
‘‘ माँ सोच रहा हूँ अब पीहू के हाथ पीले कर दूँ, बीस की हो गई है ,आस पास के लोगों ने कुछ रिश्ते सुझाएँ तो है एक बार तुम भी देख लो।” नवल बाबू ने एक दिन कांता देवी से कहा
“ जो तेरा मन करे कर, हमसे काहे पूछ रहा! हमरी मर्जी माने हो कभी?” कांता देवी दो टूक शब्दों में बोल कर वहाँ से चल दी
खैर नवल बाबू ने पास के ही शहर में पीहू का ब्याह तय कर दिया , लड़का कचहरी में काम करता था और माँ बाप का इकलौता बेटा था।
शादी के बाद विदा होने से पहले पीहू अपने घर के हर कोने को बड़े गौर से देख रही थी।
‘‘कल को इस घर में दादी और पापा की सेवा करने वाला कोई नही होगा, ऐसा क्या कर सकती हूँ कि दोनों का आराम से ख्याल रख सकूँ…पता नहीं दादी किधर है कही दिखाई भी नहीं दे रही।” सोचती हुई पीहू दादी के कमरे में आ गई
दादी कही नहीं दिखी।
तभी नवल बाबू पीहू के पास आ कर बोले,”बिटिया क्या देख रही? चल दरवाजे पर बारात तेरा इंतज़ार कर रही,तेरी माँ होती तो आज तेरी विदाई पर जाने कितना रोती पर अब तेरी माँ भी मैं और तेरा पापा भी मैं कहकर नवल बाबू बेटी को पकड़ रोने लगे।”
‘‘ पापा क्या दादी मुझे आज भी दुआएँ देने नहीं आएगी? मैं उनके दिल में कभी जगह नहीं बना पाऊँगी ? मुझे भी तो माँ का प्यार नहीं मिला…. मैं दादी को ही माँ समझती रही ….वो मुझे कितना भी कोसती रहती पर मैं उसको अपने हिस्से की दुआ समझ कर कबूल करती गई…आज मैं इस घर से चली जाऊँगी… फिर तो दादी खुश हो जाएगी ना?” रोते रोते पीहू पापा के सीने से चिपक कर बोले जा रही थी
तभी दूर किसी की सिसकियाँ सुनाई दी।
दोनों उस दिशा में बढ़ते गए देखा तो एक कोठरी में दादी सुबक रही थी।
“ मुझे माफ कर दे मेरी बच्ची ..इतने सालों से तुझे कोसती रही हूँ…फिर भी तू कभी अपनी दादी के लिए मन में बैर ना लाई….पीहू तू तो मेरी जान है रे बस कभी जाहिर ना कर सकी ….जब भी तुझे देखती तो अपने बेटे के अकेलेपन का जिम्मेदार तुझे ही मानती रही पर ये नहीं समझ पाई कि तू भी तो माँ के बिना अकेली ही हो गई….आजा मेरी बच्ची सीने से लग जा।‘‘ कहती हुई कांता देवी पीहू को सीने से लगा ली
दादी पोती का मिलन देख नवल बाबू सोच रहे थे ये कैसा प्रेम है जो होकर भी माँ कभी दिखा न सकी।
पीहू को विदा करते वक्त दादी के आँसू थम नहीं रहे थे।
सच कहते हैं लोग प्यार महसूस किया जाता है दिखाई नहीं देता। ऐसा नहीं था कि कांता देवी पीहू से प्यार नहीं करती थी बस वो बेटे के दुःख का जिम्मेदार पीहू को मान कर सदा कोसती रहती थी।
आज जब पीहू ने कहा माँ की कमी उसने दादी में पूरी की तो कांता देवी को एहसास हुआ कि इसमें इस बच्ची का क्या कसूर था।
शादी के बाद पीहू हमेशा के लिए उन दोनों को अपने शहर ले गई ताकि उनके आसपास रख कर उनका ख्याल रख सके। इसमें उसके पति मंयक ने भी उसका पूरा साथ दिया।
कांता देवी पीहू को कभी समझना ही नहीं चाही पर जब समझ आया तो पोती पर दुआएँ बरसाती ना थकी ।
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रश्मि प्रकाश
# बेटियाँ जन्मोत्सव प्रतियोगिता (2)