आख़िर क्यों कोई मुझे नहीं समझता , क्या मैं इस घर के लिए सिर्फ कमाई का एक साधन मात्र हूँ ???
क्या मेरे अपनी कोई इच्छा कोई चाहत नहीं है ??? यहां हर कोई मुझसे ही क्यों हर तरह की उम्मीद लगाए बैठा है ???
अपनी कुछ ज़िम्मेदारी ये सब ख़ुद क्यों नहीं उठा सकते ??? क्या मैं सबके लिए मात्र एक कठपुतली हूँ जो बस नाचे जा रही हूँ सबके इशारों पर???
उसके बाद भी मुझ पर दोष क्यों लगाए जा रहे हैं??? मैं कहाँ गलत हूँ???
ऐसे ही न जाने कितने सवाल आज सुनिधि के दिल में सुनामी की तरह उछाल मार रहे थे , वो इन सभी सवालों के जवाब पाना चाहती थी ,लेकिन उसे जवाब देने वाला कोई न था , अपने मन के इन सवालों से उलझती हुई सुनिधि आज करवट बदल रही थी। नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी।
आज शाम जो हुआ उसके बाद सुनिधि को कही चैन नहीं आ रहा था , इसी उधेड़बुन में वो कमरे से बाहर बालकनी में आकर बैठ गई। वहां बैठे बैठे उसके सामने वो सभी मंज़र आ गए जिन्हें उसने जिया और अपने ऊपर झेला।
सुनिधि अपने परिवार में सबसे बड़ी बेटी थी , सुन्दर, समझदार, पढ़ाई में होशियार। सुनिधि के माँ पिता और उससे छोटी एक बहन नीलिमा और एक भाई समीर था। कुल 5 लोगों का ये परिवार हँसता खेलता परिवार था लेकिन एक दिन इस परिवार को न जाने किसकी नज़र लग गई। सुनिधि के पिता का रोड एक्सीडेंट में देहांत हो गया। परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। अच्छे वक़्त के नाते रिश्तेदार बुरे वक़्त में सांत्वना देने के बाद
कही नज़र नहीं आये। ऐसे में घर की बड़ी बेटी होने के नाते सुनिधि के ऊपर परिवार की पूरी ज़िम्मेदारी आ गई। सुनिधि ने बी.एड किया था इसलिए सुनिधि को एक स्कूल में टीचर की नौकरी मिल गई और साथ ही वो घर पर बच्चों को ट्यूशन देने लगी। उसके पढ़ाने के तरीक़े से प्रभावित होकर उसकी ट्यूशन क्लास में बच्चे बढ़ने लगे। स्कूल से मिली सैलरी और ट्युशन फीस से घर अच्छे से चलने लगा।
सुनिधि अपने घर अपने भाई बहनों की पढ़ाई शॉपिंग आदि में अपनी सारी रकम लगा देती और कुछ रकम बुरे वक़्त के लिए जोड़ने के लिए माँ को दे देती , हालाँकि उसके भी कुछ अरमान थे लेकिन वो उन अरमानों को दबाकर माँ और भाई बहनों की इच्छाएं पूरी करती रहती।
उसे ये सब करके एक ख़ुशी मिलती थी कि चलो वो अपनी ज़िम्मेदारी तो अच्छे से निभा ही रही है और सब उससे खुश हैं लेकिन आज शाम जो हुआ उसके बाद सुनिधि की ये गलतफहमी दूर हो गई कि परिवार में सब उससे खुश है।
आज दोपहर जैसे ही सुनिधि स्कूल से घर आई मां ने उससे कहा की ” सुनिधि , आज नीलिमा को देखने कुछ लड़के वाले आ रहे हैं , तुम्हें ही सारी तैयारियां करनी है , आज ट्यूशन न रखना , जाकर रसोई में अच्छे से सब इंतेज़ाम कर लो , लड़के वालों की आव भगत में कुछ कमी नहीं रहनी चाहिए ,तब तक मैं नीलिमा को लेकर पार्लर जा रही हूँ “।
लेकिन माँ अभी से रिश्ता करने की क्या ज़रूरत है , अभी तो नीलिमा की पढाई भी पूरी नहीं हुई और अभी उसकी उम्र ही क्या है , सुनिधि चिंता में माँ से बोली।
यही उम्र शादी की सही उम्र होती है , लड़कियों की शादी वक़्त पर कर देनी चाहिए , बेवक़्त शादी के बाद औरत को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है और फिर रिश्ता लेकर मेरी बहन आ रही है तो उसका बताया रिश्ता अच्छा ही होगा। अब जाओ रसोई में इंतेज़ाम देखो और घर भी संवार देना , इतना कह कर माँ नीलिमा के साथ पार्लर के लिए निकल गई।
सुनिधि कुछ देर उन्हें जाते देखती रही और उसके कानों में माँ के अलफ़ाज़ काफी देर तक गूंजते रहे कि “यही उम्र शादी की सही उम्र होती है , लड़कियों की शादी वक़्त पर कर देनी चाहिए , बेवक़्त शादी के बाद औरत को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है’. . क्या वाक़ई माँ ऐसा सोचती है , फिर जब पिछले साल मेरे लिए रिश्ता आया था तब माँ ने क्यों कहा था कि अभी सुनिधि में बहुत गुंजाइश है , अभी शादी का सोच भी नहीं
सकते। आज नीलिमा 21 साल की है उस वक़्त मैं तो 22 साल भी पुरे कर चुकी थी।
एकदम से इन ख्यालों को झटकते हुए सुनिधि रसोई की तरफ बढ़ गई।
तय वक़्त पर लड़के वाले आ गए तब तक नीलिमा और उसकी माँ भी पार्लर से आ चुके थे। सुनिधि ने अपनी तरफ़ से लड़के वालों की आवभगत में कोई कमी नहीं छोड़ी , वो भाग भाग कर सबके ख़ातिर में लगी रही। कुछ देर बाद नीलिमा को सामने लाया गया। लेकिन लड़के आकाश को नीलिमा की जगह सुनिधि पसंद आ गई , उसे सुनिधि का सादा रूप , अपनी ज़िम्मेदारी को समझने और उसे हंस कर पूरा करने का अहसास , उसका
सौम्य स्वभाव आकाश को मोहित कर गया। उसने अपने माता पिता से सुनिधि से शादी करने की इच्छा जताई। ये सुनकर आकाश के माता पिता ने सुनिधि की माँ से सुनिधि का रिश्ता मांग लिया , कुछ देर घर में सन्नाटा छा गया , नीलिमा उठकर अपने कमरे में चली गई और सुनिधि रसोई में।
सुनिधि की माँ ने किसी तरह लड़के वालों से सोचकर जवाब देने की बात कहकर उनसे विदा ली.
दीदी आप चाहती क्या हैं कि मेरी शादी न हो , मुझे आकाश जैसा हमसफ़र ही चाहिए था , सामने से मेरे सपनों का राजकुमार चलकर आया था , मेरा सपना पूरा होने ही जा रहा था कि आप बीच में आ गई। क्या ज़रूरत थी आपको सबके सामने अच्छा बनने का ढोंग करने की , भाग भाग कर काम करके ये दिखाने की कि आप कितनी ज़िम्मेदार इंसान हैं , जब माँ बात करने के लिए वहाँ मौजूद थी तो आप बड़ी बनकर वहां क्यों बैठी रही
,,आपका काम रसोई तक सीमित था , लेकिन आपको तो उनके सामने महान बनकर दिखाना था , आप तो दोपहर ही कह चुकी थी कि अभी नीलिमा की शादी की क्या ज़रूरत है , आपने मेरा रिश्ता तुड़वाने के लिए ही उन सबके सामने ख़ुद को बेहतर दिखाने के लिए ये सारा संवाग रचा , नीलिमा के मुंह में जो आ रहा था, वो बोले जा रही थी और सुनिधि उसे अवाक् देखती रह गई।
इससे पहले सुनिधि अपनी तरफ़ से कुछ कहती उसका छोटा भाई बोल पड़ा , अरे नीलिमा , तुझे पता तो है दीदी को महान बन कर दिखाने का शौक़ है , तूने तो देखा ही है कि वैसे तो दीदी सारा दिन मुझे डांटे जाती है लेकिन जैसे ही मेरे दोस्त घर आते हैं तो ऐसे प्यार दिखाती हैं उनके सामने जैसे कोई इतना प्यार कर ही नहीं सकता।
चुप करो तुम दोनों , सुनिधि के सब्र का बाँध टूट चूका था। ज़ार ज़ार रोते हुए वो माँ की तरफ़ बढ़ी कि शायद माँ उसे संभालेगी लेकिन माँ ने भी उसका साथ न देकर उसे ही सुनाना शुरू कर दिया “देखो , सुनिधि आज जो हुआ वो सही नहीं हुआ , नीलिमा के लिए लाखों में एक रिश्ता आया था , अगर आज ये रिश्ता हो जाता तो मैं गंगा नहा लेती। आज अगर तुम्हारे पिता जी होते तो रिश्ते के लिए मुझे भागमदौड़ी न करनी पड़ती लेकिन उनके अचानक चले जाने से सब बिखर गया।
लेकिन माँ पिता जी के जाने के बाद से मैं उनकी हर ज़िम्मेदारी उठा रही हूँ , सुनिधि ने रुंधे हुए गले से माँ से कहा।
सुनिधि ये तुम भी जानती हो कि तुम्हारे पिता जी का रोड एक्सीडेंट तुम्हारी वजह से हुआ था , न तुम उन्हें ख़ुद को पिक करने के लिए अपने कॉलेज बुलाती न वो घर में बैठे बिठाये स्कूटर लेकर तुझे लेने जाते ,,भारी बारिश की वजह से हर जगह पानी भरा हुआ था , तुम्हारे पिता जी को गड्ढा दिखाई नहीं दिया और उनके साथ दुर्घटना हो गई।
लेकिन माँ, उस दिन मुझे कही से कोई ऑटो या बस नहीं मिल रही थी , इसलिए पिता जी को बुलाया था, अगर मुझे उनके साथ इस दुर्घटना का ज़रा भी अंदेशा होता तो क्या मैं उन्हें बुलाती।
अब जो हो गया सो हो गया सुनिधि, अब तुम इतना सुन लो कि निलिमा की शादी की चिंता है मुझे और अब कोई दूसरा रिश्ता देखना पड़ेगा, आगे से तुम लड़के वालों के सामने ना ही आओ तो अच्छा रहेगा।
आज सुनिधि अपनी सगी माँ में एक सौतेलापन का अहसास कर रही थी , शायद माँ अपने पति के अचानक चले जाने की वजह सुनिधि को मानती थी।
सुनिधि रोते हुए कमरे में आ गई और इस वक़्त वो बालकनी में बैठे यही सब सोचे जा रही थी ,अचानक से उसने एक मज़बूत फ़ैसला किया और कमरे में आकर सुबह का इंतज़ार करने लगी।
सुबह होते ही सुनिधि ने माँ और भाई बहन को अपने कमरे में बुलाया , तीनो अनमने मन से कमरे में गए तो सुनिधि ने बोलना शुरू किया , कि कल आप लोग मुझ पर सवाल उठा रहे थे कि मैं चाहती क्या हूँ तो आज आपके इस सवाल का जवाब आपको देती हूँ कि मैं चाहती क्या हूँ ???
उसने सबसे पहले अपने भाई से की और देखते हुए कहा कि “हाँ , मैं तुझे डांटती हूँ लेकिन तेरी बेपरवाही और पढाई को लेकर , मैंने तुझे शहर के सबसे बड़े कॉलेज में दाखिला दिलाया , ख़ुद बच्चों के एक्स्ट्रा ट्यूशन लिए और शहर के नामी कोचिंग सेंटर में तेरा नाम लिखवाया, पैसों की परवाह नहीं की , सिर्फ इस बात की परवाह की, कि मेरा भाई एक दिन एक सफ़ल डॉक्टर बन कर मेरे सामने आये “. ये चाहती हूँ मैं। ….
और हाँ तेरे दोस्तों के सामने तुझपर प्यार बरसाती हूँ ताकी उन्हें पता रहे कि मेरा भाई कितने प्यार के क़ाबिल है और वो एक अच्छा लड़का है इसलिए उसकी दीदी उसे इतना प्यार करती हैं। तेरे दोस्तों में तेरी एक पॉजिटिव इमेज बनी रहे।
इसके बाद सुनिधि ने नीलिमा से कहना शुरू किया, “नीलू , मेरी बहन जिस दिन तेरी शादी होगी उस दिन सबसे ज़्यादा ख़ुशी मुझे होगी और तेरी शादी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी मैं, लेकिन अभी तेरी भी पढाई की उम्र है , तुझे अभी अपना लॉ कम्पलीट करना है , एक बेहतरीन वकील बनना है , क्या भरोसा शादी के बाद ससुराल वाले पढ़ाई पूरी करने दे या न दे , तेरा ही तो सपना वकील बनने का है , तेरे ही सपने को मैं जी रही हूँ ,
और मैं लड़के वालों के सामने कोई महान बनने का नाटक नहीं कर रही थी, मैं सिर्फ घर पर आये मेहमानों की आवभगत में कमी नहीं करना चाह रही थी और उनके बीच सिर्फ इसलिए बैठी थी क्योंकि कई बार माँ को सुनने में दिक्कत होती है तो बड़ी बहन होने के नाते मैं उनकी बात का जवाब दे सकूं “. तू वक़ालत की पढ़ाई पूरी करले, एक बेहतरीन वकील बन जाये ,और तेरी शादी भी तेरे जैसे ही पढ़े लिखे लड़के से हो , ये चाहती हूँ मैं।
इतना कहकर सुनिधि माँ की तरफ़ मुड़ी , और बोली कि माँ आपने मुझे जन्म दिया है , मैं तो क्या माँ का ये क़र्ज़ कोई कभी नहीं उतार सकता , लेकिन आप पापा की मौत का ज़िम्मेदार मुझे मान बैठी हैं , आप अपने दिल से पूछिए कि उस अनहोनी का अगर मुझे अंदेशा होता तो क्या पापा को बुलाती। मैं ख़ुद मर जाती माँ लेकिन पापा को आंच नहीं आने देती।
पिछले साल जब मेरा बहुत अच्छा रिश्ता आया तो आपने “अभी बच्ची है , गुंजाईश है,कहकर रिश्ते को न करदी, क्या मैंने आपसे कोई सवाल किया, क्या मैं अपनी ज़िम्मेदारियों से भागी , आप का मानना है कि मैंने पापा को मारा है लेकिन सच तो ये है कि मैंने अपने सपनों को मारा है , अपनी इच्छाओं को मारा है , अपने अंदर की औरत को मारा है ताकि आप तीनों को एक अच्छी और सभी सुख सुविधाओं वाली ज़िंदगी दे सकूँ, मेरी माँ , मेरी बहन मेरा भाई किसी चीज़ को न तरसे , उन्हें पापा की कमी महसूस न हो , वो एक बेफिक्र ज़िन्दगी जियें, ये चाहती हूँ मैं और उसके लिए मैंने ख़ुद से ख़ुद का बलिदान करवा दिया। “
इतना कहकर सुनिधि कुछ देर रुकी और फिर बोली कि आज मैंने एक फ़ैसला किया है , मेरे ही स्कूल के वाईस प्रिंसिपल मिस्टर संजय दीवान मुझसे शादी करना चाहते हैं लेकिन मैं उन्हें हाँ नहीं कर रही थी क्योंकि मुझे इस घर की ज़िम्मेदारियाँ उठानी थी लेकिन आज मैं उनसे हां करने जा रही हूँ ,,,आप लोगों को अगर मेरी शादी की ख़ुशी न भी हो लेकिन इस बात की ख़ुशी तो होगी कि अब नीलिमा के लिए जो रिश्ता आएगा वो नीलिमा को
ही पसंद करेंगे , उसकी शादीशुदा बहन को नहीं, दूसरा फ़ायदा आप लोगों को ये होगा कि मेरा भाई अब सारा दिन मेरी डांट से बचा रहेगा और उसे अब अपनी ज़िम्मेदारी उठाना भी सीखना होगा, आख़िर वो इस घर का इकलौता बेटा है और उस का फ़र्ज़ बनता है घर संभालना ,तो वो अपनी पढ़ाई के बाद कुछ एक्स्ट्रा काम करके कुछ ज़िमेदारी तो उठा ही सकता है।
तीसरा सबसे बड़ा फ़ायदा तो माँ आपको होगा कि आपको अपने पति की मौत की वजह यानी कि मुझे इस घर में देखना नहीं पड़ेगा , आपकी दोनों आँखे आपके ये दोनों बच्चे आपके सामने रहेंगे। आज मैं संजय को शादी के लिए हाँ करने जा रही हूँ लेकिन जब तक आपके ये दोनों बच्चे अपने पैरों पर खड़े नहीं हो जाते मैं तब तक इस घर की बड़ी बेटी होने का फ़र्ज़ निभाती रहूंगी , आप लोगों को पैसे की तंगी नहीं आएगी लेकिन अब मेरा
शादी करके अपने घर जाने का फ़ैसला अडिग है।
इतना कहकर सुनिधि ने अपना पर्स उठाया और स्कूल के लिए निकल गई , आज उसके क़दम पहले से तेज़ चल रहे थे क्योंकि आज उसे संजय को शादी के लिए हाँ कहना था।
सुनिधि की माँ और भाई बहन उसे जाते देखते रह गए , उनके पास सुनिधि की किसी बात का जवाब नहीं था लेकिन उन सबके मन को पता था कि सुनिधि ने न सिर्फ एक बेटी और एक बहन होने का ही बल्कि पिता के जाने के बाद पिता होने के फ़र्ज़ भी बखूबी निभाए हैं। और उसे भी जीने का हक़ है अपने सपनों को पूरा करने का हक़ है। आख़िर वो कठपुतली नहीं है जो अकेली सारी ज़िमींदारियों का बोझ उठाकर नाचती रहे।
Writer : Shanaya Ahem
NICE STORY
Absolutely