कुरियर – करुणा मालिक  : Moral Stories in Hindi

आज फिर से शालिनी ने बहू के मायके से आया सूट नौकरानी मीना को देते हुए कहा—

ले , दीवाली के नाम का सूट दे रही हूँ ….. कहाँ सँभालती फिरूँगी ? 

वाह आँटी जी, सूट तो बहुत ही बढ़िया है….पर अभी तो दीवाली में तीन महीने पड़े हैं….. इतनी जल्दी क्यों दे रही हो ? ख़ैर मेरे लिए तो बढ़िया है, करवा- चौथ पर पहन लूँगी । वैसे आँटी जी भाभी के मायके से आई एक-एक चीज़ लाजवाब होती है । 

बहुत बोलना सीख गई है तू ….. ज़्यादा हिमायती बनने की ज़रूरत नहीं है मीना , चुपचाप पकड़ ले वरना किसी ओर को पकड़ा दूँगी । 

शालिनी जी के इतना कहते ही मीना ने सूट का पैकेट पकड़ा और  उसे अपने बैग में रख लिया । शालिनी जी मन ही मन सोचने लगी—

बड़ी चालाक है मीना ….. इसको कैसे पता चला कि  मैं बहू के मायके से आया सामान इसको देती हूँ , कहीं स्वाति के सामने ज़िक्र तो नहीं कर देंगी । बिना मतलब घर में झगड़ा हो जाएगा अगर कार्तिक या उसके पापा के कानों में भनक भी पड़ गई, तो …… आज के बाद इसे कुछ नहीं दूँगी चाहे पालीथिन में बाँधकर कहीं फेंकना पड़े । पता नहीं, मना करने के बाद भी वे लोग क्यों भेजते हैं जब मैंने कह दिया था कि मेरा कोई भी सामान ना दें तो क्यों पीछे पड़े हैं? 

शालिनी जी पूरा दिन अनमनी सी काम में लगी रही । तरह-तरह की आशंकाओं से घिरे  उनके मन ने फ़ैसला किया कि चलो कार्तिक के पापा को तो घुमा- फिरा कर बता ही दूँगी क्योंकि अगर कल को बहू- बेटे के सामने बात पहुँच गई तो कम से कम ये साथ तो देंगे । वैसे भी पति के रिटायरमेंट में एक महीना  बचा हैं और कार्तिक कह रहा था कि वो और स्वाति उस समय एक महीने की छुट्टी लेकर बैंगलोर से आएँगे ।

उसी दिन शाम को उन्होंने चाय पीते हुए अपने पति से कहा—

सावन की कोथली के नाम का जो पैंट- शर्ट आपके समधियाने से आया है वो सिलवाओगे या …..

पत्नी की बात बीच में ही काटते हुए नरेंद्र जी बोले—

अरे भई , एक महीने में रिटायर हो जाऊँगा । मेरे पास बहुत कपड़े है अभी रख दो सँभाल कर , बाद में काम आ जाएँगे ।

हाँ… ये तो सही कह रहे हो , चला दूँगी कहीं लेने- देने में…

क्या कह रही हो , क्यों चला दोगी । बहू के मायकेवाले बहुत प्यार से भेजते हैं शालिनी….. कद्र करनी चाहिए हमेशा दूसरों की ।

कहाँ तो शालिनी जी सोच रही थी कि भूमिका बनाकर अपनी बात उनके कानों में डाल दूँगी और कहाँ ये समधियाने के गुणगान करने लगे । वे चुप होकर वहाँ से चली गई । इस बात की वजह का तो उन्हें भी नहीं पता था कि आख़िर स्वाति  और उसके मायके वालों से उनको क्या चिढ़ है….. शायद यही थी कि कार्तिक ने अपनी पसंद को माँ की पसंद के ऊपर रखा था । 

देखते ही देखते शालिनी जी के पति के रिटायरमेंट के दिन नज़दीक आ गए । कार्तिक भी दो दिन बाद अपने बच्चों के साथ पहुँचने वाला था । इस बार न जाने क्यों शालिनी जी के मन में धुकधुकी सी लगी थी—-

अगर कहीं स्वाति ने मीना के पहने किसी सूट को पहचान लिया? …. नहीं- नहीं मेरे मन का वहम है, कैसे पहचानेगी ? मेरा सामान तो अलग कुरिअर से आता है । 

कहते हैं ना कि चोर अपने पीछे कोई न कोई निशानी ज़रूर छोड़कर जाता है । रिटायरमेंट की पार्टी वाले दिन मीना बहुत सुंदर साड़ी पहन कर आई । जिस समय मीना किसी बुजुर्ग के लिए रसोई में दो सूखी रोटी सेंक रही थी तभी स्वाति रसोई में अपने लिए पीने का पानी गर्म करने आई । अचानक उसने रोटी सेंकती मीना से कहा —-

ये साड़ी तो मेरी भाभी ने मम्मी जी के लिए ख़रीदी थी लखनऊ से…. पिछले साल होली पर ही तो भेजी थी । तुम्हें मम्मी जी ने दी है ना ? 

एकदम से ऐसा प्रश्न सुनकर मीना हड़बड़ा गई और बोली —

हाँ भाभी, आँटी जी ने ही दी थी ….. पुरानी हो गई थी ।

मीना ने स्वाति की बात पर ध्यान दिए बिना जल्दबाज़ी में कहा। इसके बाद ना तो मीना ने शालिनी जी को यह बात बताई क्योंकि उसे डाँट पड़ने का डर था और ना ही स्वाति ने उनसे कुछ पूछा । दो चार दिन के बाद मीना को तसल्ली हो गई कि मामला रफ़ा दफ़ा हो चुका है । इस बार कार्तिक दीवाली तक यहीं रहने वाला था और  वे त्योहार के बाद माँ- पापा को अपने साथ बैंगलोर ले जाने वाले थे । 

शालिनी जी सोच रही थी कि बहू करवा- चौथ पर यही रहेंगी तो शायद उनकी पसंद का सूट दिलवाने बाज़ार ले जाएगी । ऊँह…. मुझे ना लेना इसके पैसों का कुछ भी । कार्तिक से पैसे दिलवाऊँगी । 

एक दिन शालिनी जी के पति  ने सुबह ही कहा —

शालिनी, बहू  स्वाति को करवा- चौथ के नाम का सूट दिलवा लाओ ….. त्योहार के बिल्कुल नज़दीक बहुत भीड़ हो जाती है।

औरतों के काम में ज़्यादा दिलचस्पी मत लिया करो . मैं क्या दिलवा लाऊँ ? दे दो पैसे कार्तिक को …. चली जाएगी उसके साथ ।

इसमें इतना चिढ़ने की क्या बात है? मैं तो इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि फिर तुम हाय- तौबा मचाती हो । 

शालिनी जी सोचती ही रह गई पर स्वाति ने तो उनकी साड़ी- सूट का ज़िक्र तक नहीं किया । शालिनी जी ने सोचा कि शायद बैंगलोर से लाई होगी , वही पूजेंगी मेरे लिए । पर करवा चौथ वाले दिन स्वाति ने खाने के थाल के साथ एक लिफ़ाफ़ा रखकर देते हुए कहा —-

आप अपनी पसंद से जो चाहोगी, ले लेना । 

बहू की बात सुनकर शालिनी जी के पति का माथा ठनका । उन्होंने सोचा कि जो लड़की हर साल बैंगलोर से सूट या साड़ी के साथ सुहाग का सारा सामान कुरिअर से भेजती थी , आज पास होने पर केवल सूखा लिफ़ाफ़ा….. कुछ न कुछ तो कारण ज़रूर है । उन्होंने कार्तिक से इसका कारण पूछा पर उसे तो यह भी नहीं पता था कि स्वाति हर साल मम्मी के लिए सामान भेजती थी । अब शालिनी जी के पति ने एक दिन शालिनी जी की अनुपस्थिति में कहा—-

स्वाति! अगर तुमने अपने पापा का स्थान मुझे दिया है तो बेटा , सच- सच बताओ………

इतना कहकर उन्होंने पूरी बात स्वाति से पूछी और स्वाति ने भी ईमानदारी से बात बताते हुए कहा——

पापा , सच बात तो यह है कि मैंने इतने सालों में ना तो अपना दिया कोई उपहार और ना ही मम्मी- पापा के द्वारा दिया उपहार प्रयोग करते देखा है ।

उसके बाद उन्होंने मीना से भी सख्ताई से पूछा तो उसने यह बात स्वीकार कर ली कि आँटी जी ने बहू के मायके से आया कोई भी सामान आज तक नहीं छुआ …. उसे दिया है ।

इसके बाद दीवाली से दो दिन पहले स्वाति के मायके से बड़ा सा कुरियर आया , दीवाली की मिठाई और भाई- दूज की कोथली का सामान ….. पूरे परिवार के लिए कोई न कोई गिफ़्ट पर शालिनी जी के लिए कुछ भी नहीं । उनका मुँह उतर गया । जिन गिफ्टस को वो इधर-उधर फेंकती फिरती थी आज उन्हें ना पाकर वे खुद को अपमानित महसूस कर रही थी । 

सबके सामने तो वे कुछ नहीं बोली पर रात को अपने कमरे में पहुँचते ही सारी भड़ास पति पर निकालते हुए बोली —-

देख लिया ….. जिन समधियों के गुण गाते हो । अरे , देवर ना जेठ ना ननद । एक सास- ससुर हैं , उन्हें भी मान देना नहीं आता । मेरा तो मान छोड़ दिया , अगले त्योहार पर तुम्हें भी भूल जाएँगे । 

पर तुम तो ख़ुद ही नहीं चाहती कि वहाँ से तुम्हारे लिए कुछ आए ….. 

इतना कहकर शालिनी जी के पति ने वे सारी बातें बता दी जो उन्होंने मीना से और स्वाति से पूछी थी । 

तुम जैसी सास होती हैं जो बहू और उसके मायके वालों की कमियाँ निकालती हैं और बाद में बहू को आरोपी ठहराते हुए कहती हैं कि बहू ने ना कहना सीख लिया है । मुझे खुद स्वाति को कहना पड़ा था कि बेटा , अपने मम्मी पापा को शालिनी के लिए उपहार भेजने की मना कर देना , पर.. मेरे कहने पर भी वह इसके लिए नहीं मानी ।

 आख़िर तुम उससे इतना क्यों चिढ़ती हो ….. वो ज़बरदस्ती तो इस घर में नहीं आई , तुम्हारे बेटे की पसंद है ना । अपने बेटे पर तो तुम्हारा ज़ोर  चला नहीं , वो तो शुक्र है कि स्वाति – कार्तिक और बहू के मायके वाले बहुत समझदार है, नहीं तो तुम्हें कोई पूछेगा भी नहीं । और बहू के द्वारा करवा  चौथ पर दिया लिफ़ाफ़ा भी आज तक पूजा- घर में ही पड़ा है । 

और हाँ, कोथली में तुम्हारे लिए भी साड़ी आई है वो तो मैंने ही कुरियर खोलकर निकाल ली थी ताकि तुम्हें कुछ तो अहसास हो । 

पति की बात सुनकर शालिनी जी उस समय चुप रही । अगले दिन पूजा के बाद लिफ़ाफ़ा हाथ में पकड़े वे स्वाति के पास गई और बोली—

स्वाति, ज़रा दिखा तो सही तेरी मम्मी ने कैसी साड़ी भेजी है मेरे लिए…. और हाँ, दोपहर बाद मेरे साथ बाज़ार चलना , नई साड़ी का फ़ॉल ख़रीदना है और इस लिफ़ाफ़े के पैसों का सूट खरीदवा देना । 

जैसे ही  अख़बार पढ़ते शालिनी जी के पति के कानों में शालिनी जी की आवाज़ पड़ी तो उन्होंने ज़ोर से  हँसते हुए कहा —

हाँ हाँ बेटा , दो – चार सूट सिलवा दो अपनी सास के, पता नहीं फिर बैंगलोर में इसकी पसंद का टेलर मिलेगा या नहीं । 

करुणा मालिक 

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