कॉफ़ी-कैफ़े ‘… डॉ कविता माथुर

“मॉम, कॉफ़ी !”

अचानक ये सुनकर सुमि जैसे गहरी तंद्रा से जागी हो। ,’ये लड़का सरप्राइज़ देना कभी नहीं छोड़ेगा!’ सुमि ये सोचने ही लगी थी कि रोहन ने पास आकर अपना सिर मॉं की गोद में रख दिया ।

कैप्टन रोहन आमतौर पर अपनी ज़िम्मेदारी समझने वाला संजीदा अफ़सर था । बचपन में ही युद्ध में शहीद हुए अपने मेजर पिता को असमय ही खो देने का दु:ख जैसे उसने अपने ज़ेहन की गहराइयों में ही दफ़्न कर लिया था । दस वर्षीय रोहन ने उनके शव को तिरंगे से लिपटा देखा था

और बुत बनी हुई अपनी माँ को सैल्यूट करते हुए भी । अपने इकलौते पुत्र के समक्ष सुमि कभी कमज़ोर नहीं पड़ी थी । लेकिन रोहन ने उसे कई बार छुप छुप कर रोते हुए देखा था। तब ही जैसे नन्हा सा रोहन एक ज़िम्मेदार बेटा बन गया था ।क्लास में हमेशा अव्वल आता। 

शिक्षकों की आँख का तारा बना रोहन घर के कामों में भी माँ का हाथ बँटाता  था। अब दोनों माँ बेटे ही एक दूसरे का सहारा थे और दोनों ने ही एक दूसरे को बख़ूबी संभाल रखा था ।ऐसी बचपने वाली हरकत और काफ़ी की डिमांड वो तभी रखता था जब वो बेइंतिहा ख़ुश होता था ।

“गोद से उठोगे तब तो बनाऊँगी ना तुम्हारी कॉफ़ी बेटू जी !”

किचन में कॉफ़ी बीट करते हुए सुमि  फिर से पूर्व में पहुँच गई । उस दिन स्कूल से लौटी तो उसका सिर भारी था ।लंच की जगह बेवक़्त ही कॉफी पीने की तलब लगी । उसने कॉफ़ी बनाकर मेज़ पर रखी ही थी कि रोहन भी स्कूल से आ गया ।

“मॉम , आज लंच नहीं करना क्या ? ये  बेवक़्त कॉफ़ी क्यों बना ली ?”

अनुशासित सुमि कैप्टन पति की मृत्यु के बाद अब ये सब नहीं देखती थी । जब पति ही बेवक्त छोड़कर अलविदा कह गये तो अब क्या वक़्त और क्या बेवक़्त !

“ बस यूँ ही आज कॉफी पीने का मन हो रहा था बेटू।”

“ठीक है मॉम , तो मैं भी आज आपके साथ कॉफ़ी पियूँगा ।”

और सोलह वर्षीय रोहन ने पहली बार अपनी मॉम के साथ उन्हीं के हाथ की काफ़ी शेयर की थी ।

“मॉम ,कितनी यम्मी कॉफ़ी बनाती हैं आप! मेरी टैलेंटेड मॉम तो कॉफ़ी-कैफ़े खोलना चाहिए ।”

जीवन में ये छोटी छोटी बातें कितनी अमूल्य होती हैं ! बेटे को ज़रा सी कॉफी के कारण आज इतना ख़ुश देखकर सुमी की आँख में आँसू आ गए थे । और देखते ही देखते आर्मी स्कूल की टीचर सुमि , अपनी कॉफ़ी स्वयं नापसंद होते हुए भी रोहन और फ़ौज के अन्य मित्रों के मार्गदर्शन और मदद से कॉफ़ी-कैफ़े स्टार्ट-अप करके आज एक प्रसिद्ध व्यवसायी बन गई थी ।



उस दिन कॉफी पीते हुए ही रोहन ने ट्वैल्व्थ के बाद एनडीए जाने का निर्णय भी ले लिया था।

“मैं भी पापा की तरह खुद को देश के नाम लिखने जा रहा हूँ मॉम।”। सेकंड लेफ़्टिनेंट बनने जा रहा रोहन बिल्कुल अपने पापा के नक़्शेक़दम पर चल रहा था।

फ़ौज ज्वाइन  करने के बाद पहली छुट्टियों में जब वो घर आया तो एक अरसे से सुमि के अंत:स्थल में उपजे मुझे स्वाभाविक सपने की छाया अनायास ही आँखों के ज़रिये बेटे के ज़हन को छू गई ।

“मॉम,  मैंने फ़ैसला किया है कि मैं शादी नहीं करूँगा ।”

एक बार फिर सुमि प्रारब्ध के समक्ष नतमस्तक थी। जानती थी कि उसका गौरव, उसके बेटे के इस फ़ैसले के पीछे भी कोई ठोस कारण अवश्य रहा होगा।

                                ***

“कॉफ़ी इज़ रेडी बेटू ।”

मॉम की आवाज़ पर दौड़ कर ड्राइंगरूम का फ़र्रनीचर लांघता हुआ कैप्टन रोहन जब डाइनिंग टेबल तक पहुँचा तो माँ के सिक्स्थ सेंस पूरी तरह से चौकस हो गए । आम तौर पर गांभीर्य ओढ़े रहने वाला चायप्रेमी बेटा एक तो कॉफी की डिमांड तब ही रखता था जब वो बहुत खुश होता था ।ऊपर से ये अजीब व्यवहार!

“ ओके मॉम, थैंक्स फ़ॉर दिस यमी ट्रीट ! आज डिनर में ज़ीरा आलू खाऊँगा । अब मैं चला टेनिस खेलने !”

“क्या!” और ये तीसरा आश्चर्य एक घंटे में  सुमि को मिला था । रोहन ने आज तक कभी खाने में अपनी इच्छा ज़ाहिर नहीं की थी ।‘रोहन बताए या ना बताए , मगर ये तय है कि सुमि की ज़िंदगी अब खुशियों भरी करवट लेने वाली है ‘, ये सोचते हुए सुमि गार्डन में जाकर कैक्टस के काँटों के साथ प्यार से यूँ खेलने लगी ,

मानो कह रही हो कि आज तुम भी मुझे चुभन नहीं सौम्य सा स्पर्श दे रहे हो । आख़िर अब तक सुमि  की ज़िंदगी भी तो इन कैक्टाई की तरह ही रही थी !

आज कितने बरसों बाद रोहन ने उसके हाथ की कॉफ़ी पीने की इच्छा दिखाई थी । बेटे को बच्चों सा किलकता-चहकता देख सुमि का मन  तृप्ति  से भर  उठा था ।

“मॉम एक कप कॉफ़ी और बनाकर तैयार रखिये, तब तक मैं नहाकर आता हूँ ।”



सुमि के  हाथ एक बार फिर से एक्सप्रेस ट्रेन की तरह ‘एक्सप्रेसो-काफ़ी’ बनाने में जुट गए । ‘पता नहीं आज तक कार्गो शिप की तरह शनै शनै बहती ज़िंदगी में कौनसा तूफ़ान मेल आने वाला है ।’

“ मॉम,  बैठिये , कॉफ़ी का पहला सिप आप लीजिए और बहू लाने की तैयारियां शुरू कर दीजिए ।”

“क्या कहा ,एक बार फिर से तो कहना ।“

“वही जो आपने सुना मॉम। “

“हाँ , पर किसकी बहू ?कौन है ,कहाँ मिली तुझे ?कैसी है? क्या नाम है ? , मुझे सब बता ।”

सुमी हँसते हुए जल्दी जल्दी सवाल पर सवाल दागे जा रही थी ।रोहन  बिना पलकें झपकाये माँ को देखता ही रहा जब तक कि उसकी हँसी ख़ुद बा ख़ुद ही थम कर आँसुओं में तब्दील न हो गई।ख़ुशी के आँसू !माँ ने तो आज तक रोहन से कोई सवाल किया ही नहीं था ।’कहाँ छुपा रखी थी ये हँसी आपने मॉम ‘ सोच रहा था रोहन ।

“सुनिये मॉम!”

                    ***

कैप्टन बनने के बाद रोहन की पोस्टिंग जहॉं थी, तब वो वहॉं से उन्नीस हज़ार फ़ीट पर तैनात था और वहाँ तक पहुँचने से पहले दो तीन जगह एक्लिमिटाइज़ेशन के लिए रुकना बेहद ज़रूरी होता था, क्योंकि ऊँचाई बढ़ने के साथ ही ऑक्सीजन सांद्रता कम होती जाती है

लेकिन उस दिन रिनी , एक दिलेर और ज़हीन पत्रकार अपने दो साथियों के साथ बिना किसी नियम को पालन करते हुए सीधे बेस-कैंप से यहॉं पहुँच गई थी और रोहन के लाख कहने के बाद भी जाबॉंज फ़ौजी का साक्षात्कार करने के बाद ही लौटने की ज़िद पर अड़ी थी।

जल्दी ही इस गलती के कारण वो बेहोश अवस्था में आने लगी ।तब सी. पी. आर. के दौरान रोहन और रिनी की नज़रें मिलीं और दोनों के मन में परस्पर प्रेम के बीज अंकुरित हो गये थे। होनी तो होकर ही रहती है । दोनों ने आँखों ही आँखों में एक-दूसरे को आश्वस्त कर लिया । रिनी ने अपना परिचय कार्ड न देकर अपने माता पिता का नाम व फ़ोन नंबर पास पड़ी डायरी पर लिख दिया और वापस लौटने के लिए तैयार हो गई ।

सुमि दम साधे सब सुन रही थी । सुनते सुनते कहीं खो गई कि रोहन की आवाज़ ने चौंकाया  ,

“मॉम, रिनी के पेरेंट्स का फ़ोन नंबर !”

सुमि ने तत्काल उन्हें फ़ोन मिलाया । वो तो जैसे प्रतीक्षा ही कर रही हों । अगले ही मिनट रोहन माँ को हँसते हुए सुन रहा था और इस हँसी में वो देख पा रहा था ढेरों प्यार और सम्मान । फ़ोन कट चुका था । सुमि की आँखों से दो आँसू कॉफ़ी में टपक गए । सुमि को आज पहली बार अपने हाथ की कॉफी में स्वाद का अनुभव हुआ।

—-डॉ कविता माथुर

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