क्लासमेट – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

         कहते हैं, सूरत तो चार दिन की चाँदनी है परन्तु सीरत उम्र भर साथ रहती है।इस सत्य को जानते हुए भी कुछ लोगों को अपनी सुंदरता पर इतना गुमान होता है कि खुद को भगवान समझ लेने की भूल कर बैठते हैं।उन्हीं में से एक थी शालू…..।

        शालू को बचपन से ही अपने रूप और पिता के रुतबे पर बहुत गुमान था।एक बार वो नयी फ़्राॅक पहने अपने खिलौनों के साथ खेल रही थी।उसकी मेड की हमउम्र बेटी दूर बैठी उसे देख रही थी।अचानक मेड की बेटी ने उसके फ़्राॅक को छूकर कह दिया ,” अहा…कितना सुंदर है।” बस शालू ने उसे गुस्से-से धक्का दे दिया..बच्ची रोने लगी।तब शालू की माँ नंदा घबराकर आईं…

उन्होंने बच्ची को चुप कराया और शालू से पूछा,” क्या हुआ?” शालू ने आँख दिखाते हुए बच्ची की ओर इशारा किया,” इसने मेरा फ़्राॅक छूकर गंदा कर दिया…।” छोटी-सी शालू के तेवर देखकर नंदा आशंकित हो उठी थी।उसने ये बात अपने पति को बताई तो वो हँसकर बोले,” चिंता मत करो..अभी बच्ची है… बड़े होने पर…।”

       लेकिन जैसे-जैसे शालू बड़ी होती गई,उसका अहंकार भी बढ़ता गया।उसकी क्लास में मीना नाम की लड़की पढ़ती थी जो देखने में बहुत साधारण थी।शालू अक्सर ही उसकी गरीबी और उसके रूप-रंग का मज़ाक उड़ाती..।एक दिन तो उसने यह भी कह दिया कि तुम तो हमारे काॅलेज़ के लिये एक Black spot हो।मीना ने कोई जवाब नहीं दिया लेकिन उसकी सहेलियों को बहुत बुरा लगा।उन्होंने शालू को समझाया कि मीना का अपमान करना ठीक नहीं है..वह भी हमारी तरह इस काॅलेज़ की स्टूडेंट है और यहाँ पढ़ने आई है।we are classmates. लेकिन घमंड में चूर शालू के कानों पर जूँ नहीं रेंगी।

        जब नंदा को पता चला कि अब उसकी बेटी अपने अहंकार में क्लासमेट्स का मज़ाक भी उड़ाने लगी है, तब उसने शालू को समझाया,” देख बेटी…इंसान की असली सुंदरता उसका व्यवहार है।रुपया- पैसा तो हाथ का मैल है..उस पर #इतना गुमान ठीक नहीं…परिस्थियाँ मौसम के तरह जाने कब रंग बदल ले।इसलिये सबके साथ मिलजुल कर रहना सीख…भविष्य में वही तेरे..।” 

    ” मम्मी…आप फिर से शुरु हो गईं..।” शालू चिल्लाई।

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       नंदा ने एक अच्छा घर और वर देखकर बेटी का विवाह कर दिया।शालू का पति नवीन एक बिजनेसमैन था।पैसे की कोई कमी नहीं थी।वह पति के साथ बहुत खुश थी।तीन साल बाद वो बेटे की माँ बन गई।फिर तो उसके पैर ज़मीन पर नहीं पड़ते थे।मायके आती तो अपनी भाभी पर पैसे का खूब रौब झाड़ती।लेकिन जल्दी ही उसकी खुशियों को ग्रहण लग गया।

        नवीन को शराब-जुए की लत पड़ गई और उसका बिजनेस घाटे में चलने लगा।कर्ज़दार उसके घर आने लगे तब एक दिन उसने अपने ही बेडरूम में फाँसी लगा ली।नवीन की मृत्यु के बाद कर्ज़दार शालू को परेशान करने लगे..ससुराल वालों की उसने कभी कद्र नहीं की थी तो अब किस मुँह से उनसे मदद माँगती।तब उसने अपने जेवर बेचे…फिर बंगला बेचकर सबका बकाया चुकाया और बेटे को लेकर अपने मायके में आ गई।

      पिता के देहांत के बाद मायके में भाई-भाभी का राज चलने लगा था।भाभी मुँह से तो नहीं कुछ कहती लेकिन उनका व्यवहार शालू को संकेत दे देता कि तुम अब बोझ हो।इसी घर में कभी वो इतराकर चलती थी और आज..।किसी ने ठीक ही कहा है कि मौसम और परिस्थितियाँ बदलते देर नहीं लगती।अब वो पहले वाली शालू नहीं रही…बेघर..हाथ खाली…।अब तो उसका चेहरा भी कुम्हला गया था और बाल भी बिखरे-बिखरे रहते थे।नंदा जी का स्वास्थ्य भी अब ठीक नहीं रहता था। 

    एक दिन शालू ने नंदा जी से कहा,” मम्मी..मनु चार साल का हो रहा है..कल पास वाले स्कूल जाकर मैं उसका एडमिशन करा देती हूँ और अपने लायक कोई काम भी देख लेती हूँ..यहाँ कब तक..।” कहते हुए उसकी आँखें सजल हो उठी थीं।

      अगले दिन मनु को लेकर शालू स्कूल पहुँची।वहाँ की फ़ीस देखकर उसके होश उड़ गये।उसने सोचा, प्रिसिंपल से बात करती हूँ..शायद कुछ कम…।यही सोचकर उसने प्रिंसिपल के ऑफ़िस का दरवाज़ा खटखटाये,” May i coming?”

 ” Yes..”

    अंदर जाकर उसने प्रिंसिपल की कुर्सी पर अपनी क्लासमेट मीना को बैठे देखा तो वह अचकचा गई।काॅलेज़ के दिनों में उससे कही बात याद करके वो मीना से नज़र नहीं मिला पा रही थी..वह लौटने लगी तब मीना ने कहा,” आओ शालू.., क्या बात है? और ये तुमने अपनी कैसी हालत बना रखी है?” कहते हुए उसने शालू के कंधे पर अपना हाथ रखा।

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     स्नेह-स्पर्श पाकर शालू फूट-फूटकर रोने लगी।उसने रोते हुए अपनी व्यथा बताई और बोली,” मैंने तुम्हारे साथ बहुत बुरा व्यवहार किया था।मम्मी ठीक ही कहतीं थीं कि #इतना गुमान ठीक नहीं..परिस्थियाँ मौसम के तरह जाने कब रंग बदल ले…।मैं अपने अहंकार के अंधेरे में ही भटकती रही जिसके कारण….जबकि तुम अपने ज्ञान के प्रकाश से सबको आलोकित कर रही हो।मुझे माफ़ कर दो…।”

    मीना बोली,” जो हुआ, उसे भूल जाओ..तुम्हारे बेटे का एडमिशन कल हो जायेगा।और हाँ..यहाँ पर छोटे बच्चों की देखरेख के लिये एक महिला की पोस्ट खाली है..अगर तुम इस काम के लिये तैयार होती हो तो तुम्हें अपने मायके पर आश्रित नहीं रहना पड़ेगा और मनु की फ़ीस भी कम हो जायेगी।मेरे घर छोटा है लेकिन एक कमरा खाली है।तुम चाहो तो..।”

      सुनकर शालू की आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे,” मैंने तुम्हारा कितना अपमान किया..तुम्हें अपशब्द कहे, फिर भी तुम मेरे लिये….।”वह अपने दोनों हाथ जोड़ने लगी तो मीना बोली,” हम क्लासमेट हैं डियर…इसलिये no thanks no sorry!” मुस्कुराते हुए उसने शालू को गले लगा लिया।पास खड़ा मनु अचरज से सब देख रहा था।उसे कुछ समझ नहीं आया तो वह मीना से पूछा,” आप मेरी टीचर हैं या आंटी…।” फिर तो दोनों ही हँस पड़ीं।

                       विभा गुप्ता

                   स्वरचित, बैंगलुरु 

# इतना गुमान ठीक नहीं…परिस्थियाँ मौसम के तरह जाने कब रंग बदल ले

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