चुटकी भर सिंदूर – डा उर्मिला सिन्हा

 

   आम के पत्तों का बंदनवार, झालरें, रंग बिरंगी रोशनी… शादी का मण्डप, सादगी और सुरूचिपूर्ण। कोई ताम-झाम नहीं। बिल्कुल परम्परागत और उच्च कोटि की व्यवस्था।

      गर्मी का दिन। शादी विवाह का मौसम।बराती,सराती दोनों पक्षों के निमंत्रित अतिथि विवाह मण्डप के दोनों ओर कुर्सियों पर विराजमान हैं। खूबसूरत,लकदक परिधानों, सुरूचिपूर्ण रूप सज्जा देखते ही बन रहा है।

    विवाह की शुभ घड़ी भी आ गई। कन्या को लेकर उसकी बहनें , सहेलियां मण्डप की ओर  हौले हौले क़दम बढ़ा रही हैं।सजीले भाई दुल्हन के उपर गोटेदार चादर ताने हुए सजग प्रहरी की तरह चल रहे हैं। मानों कीमती खजाना रूपी बहन को ला रहे हों।

     लोगों की उत्सुक निगाहें दुल्हन की एक झलक पाने के लिए बेताब है।

       उधर रम्भा मौसी ने माइक संभाल रखा है।उनकी सुरीली आवाज गूंजती है,”जब हो बेटी के बाबा काढेले रे पुतरिया, साजन लोगवा ए बाबा गिरेला मुरु रे छ‌ईयां।”

    लोगों का ध्यान कभी दुल्हन और कभी गीत के बोल पर।सच में कन्या का ऐसा सात्विक और लावण्यम‌यी रूप है कि वरपक्ष मुर्छित हो ही तो रहे हैं।

       दादी कहती थी,”विवाह के समय कन्या गौरी का रुप धारण कर लेती है इसलिए कोई भी दुल्हन अतिसुंदरी प्रतीत होती है।जिनका रूप देख बाराती पक्ष को मूर्छा सी आने लगती है…..”




          रम्भा मौसी की सुरीली आवाज गूंजी,”का हो साजन हो लोगवा गिरेल मुरू रे छ‌ईयां,हमर दुलारी हो बेटी चांद के रे टुकड़िया, चांद के टुकड़िया ए समधी ,आंख के रे पुतरिया।”

         कन्या के पिता के साथ अन्य पिताओं की आंखें भी भर आईं। यह निर्विवाद सत्य है कि बिटिया अपने पिता के लिए चांद का टुकड़ा है, आंखों की पुतली है। पिता किसी उच्चतम पद पर कार्यरत हो या खेतिहर मजदूर अपनी बिटिया से उतना ही प्यार करता है।

“दिनवा हरेली हो बेटी भूखिया रे पियसिया , रतिया हरेली हो बेटी बाबा आंखी रे निंदीया।”

रम्भा मौसी की मर्मस्पर्शी, अर्थ पूर्ण ,दर्दीला बेटी विवाह का गीत।

   क्या यह सच नहीं है कि चाहे लाडली को कितना भी पढ़ा लिखा लो किंतु विवाह योग्य होते ही उपर्युक्त घर वर की तलाश शुरू हो जाती है। इस चिंता में कन्या का पिता दिन का भूख प्यास और रात्रि की नींद तक गंवा देता है। पिता संसार के किसी कोने में हो बेटी का दर्द उसका दिल ही जानता है।

      “कहां व्याहूं अपनी लाडली को? कौन उठाएगा इसका नाज नखरा, नहीं, नहीं ऐसे वैसे कैसे किसी को दे दूं?”




कुछ हकीकत, कुछ फसाना। भविष्य की चिंता सभी को होती है।

         इधर रम्भा मौसी का पारम्परिक बेटी विवाह का गीत समां बांधे हुए था उधर विवाह की रस्में निभाई जा रही थी।

     मंत्र मुग्ध बराती सराती चाय,शरवत का आनन्द ले रहे थे। सुदर्शन दुल्हा , रूप वान , संस्कारी दुल्हन। अद्भुत संयोग,स्वर्गिक आनन्द नुभूति।

          “अधिया , अधिया मत कर बेटी ,सब धन तोहार।चुटकी सेन्दुरवे हो बेटी भ‌ईलु विरान……”।

            ओह फेरों के साथ सिंदूर दान भी हो गया। चिरंजीवी वर ने वधू का मांग भरा।भखरा पीला सिंदूर। कुमारी कन्या का चंद्र मुख चुटकी भर सिंदूर से जगमगा उठा। पिता के हृदय में हूक उठी “बेटी बिराना यानि परायी नहीं हुई बल्कि अपने जीवन साथी के साथ संसार सागर में प्रवेश की है।नया इतिहास रचने।”

          बिदाई का बेला आ पहुंचा।नम आंखों,भरे ह्रदय, रूंधे कंठ से बिटिया की बिदाई…..

             पंडित जी का मंत्रोच्चार गूंज उठा,”मंगलम भगवान विष्णु, मंगलम गरूड़ ध्वज।

 मंगलम पुण्डरी काक्ष,मंगलाय तनोहरि।।”

सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना ,–डा उर्मिला सिन्हा©®

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!