” पुरूष! पुरूष हो तुम! पुरुष होने का दंभ भरते हो ? मेरी जिंदगी को बर्बाद करके क्या मिला तुम्हें? क्या फर्ज किया पति होने का, बताओ तो सही? पत्नी हूं तुम्हारी!! क्या समझ रखा है मुझे, अबला! अबला जरूर हूं लेकिन तबला नहीं जिसे जैसे चाहो ,जब चाहो, बजा दो।
मैं चुप नहीं रहूंगी । क्या बिगाड़ा था मैंने तुम्हारा, जो मेरी जिंदगी को यूं बर्बाद करके रखा। मैं तुम्हारे बाहुपाश के लिए तो दूर, प्रेम भरे शब्दों के स्पर्श के लिए तरसती रही, लेकिन नहीं, मेरी जरूरत ही नहीं तुझे।
तुम्हें तो बस काम से मतलब है, सिर्फ काम से। मैं तुम्हारी खिदमत करती रहूं बस…..। मैं हर एक भावना, हर एक पल सब कुछ तो छोड़ आई अपने मायके की दहलीज पर…..। एक नई उमंग, एक नई सोच, एक नई भावना के साथ तुम्हारे घर में कदम रखा लेकिन आज तक इन सारी चीजों से वंचित रही।
क्यों, क्यों किया तुमने मेरी भावनाओं के साथ खिलवाड़। बोलो, बोलो आदित्य बोलो….. मैं सुनना चाहती हूं। क्यों चुप हो? चुप्पी तोड़ोगे अपनी? नहीं तो, अब मैं चुप नहीं रहूंगी। चिल्ला चिल्ला कर तुम्हारे घर के सारे सुख- चैन छीन लूंगी। मुझे विवश मत करो……।
” जोर जोर से रोने लगी थी गरिमा। पति रूप खड़ूस पुरुष पर कोई असर नहीं हुआ इसका । वह कमरे से निकल पड़ा था। गनीमत था कि उस समय घर के सारे लोग कहीं गए हुए थे। नहीं तो, पता नहीं क्या होता।
वह धम्म से सोफे पे बैठ गई। वह सोचने लगी,”आदित्य आखिर कुछ बोलता क्यों नहीं! मैंने इतना कुछ बोल दिया लेकिन उसके कान में जूं तक नहीं रेंगा! इसने शादी की ही क्यों?”बहुत सारे प्रश्नों में उल्झी गरिमा शून्य में देखे जा रही थी।
“मैं क्या करूं? किससे अपनी परेशानियों को कहूं? मां से। नहीं-नहीं मां से नहीं कहूंगी। कितनी परेशान हो जाएगी मां! सासू मां से भी अभी नहीं पूछूंगी।
मुझे मेरे प्रश्नों का जवाब आदित्य को ही देना होगा….।”गरिमा ने अपने रिश्ते के बारे में ससुराल या मायके कहीं भी किसी को कुछ भी नहीं बताया था।वह अपने आप से बातें कर रही थी –
“मैं तो इस घर में अपनी हर जवाबदेही को पूरा करती हूं। एक अच्छी बहू के रूप में, जो सास ससुर की हर जरूरतों का ख्याल करे। भाभी, जो ननंद -देवर के लिए तत्पर खड़ी रहे। पत्नी के रूप में सिर्फ कामवाली! क्या वजूद है मेरा?
क्यों आई हूं इस घर में मैं? मुझे किसी से कोई नाराजगी नहीं। मेरा तो सवाल उससे है जो मुझे ब्याह कर इस घर में पत्नी के रूप में ले आया। आज तक पत्नी का दर्जा नहीं दिया। आखिर क्यों? हम कमरे में एक साथ रह कर भी नहीं थे क्योंकि हमारे बीच मन का फासला, शब्दों का फासला और तन का फासला….।
फासला ही तो था हम दोनों के बीच! कोई नज़दीकियां नहीं थी। मन होता था चिल्ला चिल्ला कर पूछूं, क्यों शादी के बंधन में बंधे और बंध कर भी तो हम बंधे नहीं। क्या मायने इस शादी का? शादी के बंधन के बाद पति पत्नी एक दूसरे को बांधते नहीं स्वत: बन जाते है।
“आदित्य के बारे कुछ भी पता नहीं चल पा रहा था। गरिमा सोच रही थी कि “कहीं ऐसा ना हो किसी लड़की से चक्कर हो आदित्य की! शादी तो नहीं कर ली है इसने, जहां यह नौकरी करता है?” ढेरों प्रश्नों के साथ गरिमा घिरी हुई थी। वह स्वयं इन प्रश्नों के तह तक जाना चाहती थी।
एक दिन मौका मिलते ही गरिमा ने आदित्य के कमरे की अलमारियों को, बक्सों को एक-एक कर देखना शुरू किया। कहीं कोई सुराग नहीं मिल पाया।वह सच्चाई जानने के लिए बेचैन थी।न दिन को चैन न रात को नींद।
एक दिन उसे एक छोटी सी डायरी हाथ लग गई जो उसकी शादी के बाद लिखी गई थी। शादी के तीसरे दिन वह जॉब पर चला गया था। जाने के दूसरे दिन ऑफिस में उसे चक्कर आया और जब उसे होश आया तो वह एक हॉस्पिटल में बेड पर था।
ऑफिस का दोस्त सामने खड़ा मिला। आदित्य के पूछने पर उसने बताया कि वह बेहोश हो गया था।उसी ने आदित्य को एडमिट कराया था। डॉक्टर ने इलाज शुरू कर दिया है, उसने कहा।
क्या बताया डाक्टर ने? आदित्य ने पूछा।
उसके दोस्त ने कहा,”ब्रेन में ट्यूमर हो गया है। ऑपरेशन कराना पड़ेगा। हो सकता है याददाश्त चली जाए या आंखों की रोशनी। जैसा कि डॉक्टर ने बताया है। परेशान ना हो दोस्त , सब ठीक होगा। उसने ढांढस बंधाया।
आगे आदित्य ने डायरी में लिखी थी,”मैं घर आया लेकिन किसी को कुछ भी नहीं बताया। दवा छुपा कर खा लेता था। मैंने मां -पापा , गरिमा या किसी को भी अपनी बीमारी के बारे में नहीं बताया।”
उसने लिखा था,”मैं तुम्हें कैसे बताऊं गरिमा कि जिंदगी कौन सा रंग दिखायेगी। मैं तुमसे दूर – दूर रहने लगा हूं जिससे कि तुम मुझसे नफरत करने लगो। मैं नहीं चाहता कि तुम्हें प्यार करके बाद में तड़पने के लिए छोड़ दूं। मुझे माफ़ कर देना गरिमा!
तुम्हें प्यार न दे सका। मैं आपरेशन कराना नहीं चाहता। यदि आंखों की रोशनी चली गई तो कैसे देख पाऊंगा तुम्हें। मैं बहुत चाहता हूं तुम्हें।” पढ़कर गरिमा खूब रोई। स्वयं को संभालने के बाद गरिमा ने आदित्य से उसकी डायरी चोरी से पढ़ने की बात बताई और अपने हाथों में उसका हाथ लेती हुई बोली ,”मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगी। यदि आंखों की रोशनी चली भी गई तो मै अपनी आंखों से सारी दुनियां दिखाऊंगी।
ऑपरेशन हुआ। भगवान का करिश्मा आंखें सही सलामत थीं। गरिमा आदित्य के सामने खड़ी हो डबडबाई आंखों से पूछा,”अब तो प्यार करोगे?”
इतना कहना था कि आदित्य उसे गले लगा लिया और दोनों की आंखों से प्यार की रिमझिम बरसात होने लगी थी …….।
संगीता श्रीवास्तव
लखनऊ
स्वरचित, अप्रकाशित।
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