छुपे रुस्तम – कंचन श्रीवास्तव

तुम्हें जो पैसे मिलते हैं आखिर  तुम उसे

करती क्या हो,न अपने ऊपर खर्च करती हो न घर गृहस्थी में और न बच्चों पर।

इतना कहकर रवि दूसरे काम में लग जाता।और राधा अपने काम में ।

सभी भाई बहनों में वो सबसे छोटी है इसलिए  सभी उसका ख्याल रखते पर शादी के बाद उसे जैसे अहसान लगने लगा।

वो क्या है ना कि पति छोटी सी दुकान पर काम करते हैं और वो खुद सिलाई कढ़ाई करके गृहस्थी चलाती है।

शादी के कुछ दिन बाद तक तो  सब कुछ ठीक चला पर जैसे ही सांस ससुर खत्म हुए अपनों ने चूल्हा अलग कर दिया।


अब चूल्हा अलग हुआ तो तंगहाली बढ़ गई ।

किसी तरह गृहस्थी की गाड़ी चल रही बच्चे भी पढ़ ही रहे इसलिए कोई सहारा नहीं।

इसी बीच भाई का फोन आया कि आज पच्चीसवीं वर्षगांठ है तुम सब लोगों को आना है।

इसने हंसकर निमंत्रण स्वीकार कर लिया।

पर जैसे ही पति को बताया उनके मांथे की सिकुड़न बढ़ गई क्योंकि अभी दो साल पहले ही उनकी पच्चीसवीं वर्षगांठ पर उन लोगों ने उपहारों से घर भर दिया था।

तो इसने कहा आप परेशान क्यों होते हैं

आप अक्सर पूछते थे ना कि जो लोग पैसे दे जाते हैं उसका हम करते क्या हैं तो देखिए मैं उन्हीं पैसों से उन सबके लिए उपहार लाई हूं।

आखिर आपकी इज्जत का सवाल है।

भला हम उसे कैसे जाने देते ।

चलिए अब आप सब लोग तैयार हो जाइए पार्टी शुरु हो गई होगी।

इतने में भाई का दोबारा फोन आया तो वो बोली आती हूं आती हूं।

धीरज रखो।

फिर सब उपहार लेके भाई के घर पहुंची तो सब देखते रह गए।

सच सबसे ज्यादा उपहार इसका था।

जिसे देख भाभी बोली

अरे वाह ननद रानी आप तो छुपे रुस्तम निकली।

इतना उपहार दिया

जिसे मैंने सपने में भी नहीं सोचा था।

अब उन्हें क्या पता कि उन्होंने उन्हीं पैसों से वो उपहार खरीदें है

जो हर रक्षाबंधन और भाई दूज को उनका भाई या घर आए मेहमान बच्चों को दे जाते है।

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