चुभता सावन –   कविता भड़ाना

सावन की झड़ी लगी हुई है,रह-रहकर भयंकर गर्जना करते काले बादल और मूसलाधार हो रही बारिश से मौसम बहुत ही सुहाना हो रहा है। हरे भरे पेड़ भी झूम-झूम कर अपनी खुशी का इजहार कर रहे हैं और मिट्टी की सौंधी सौंधी खुशबू वातावरण को मादक बना रही है।

60 बसंत देख चुकी कुसुम जी अपने कमरे से निकलकर बालकनी में आकर बैठ गई, कभी उनका पसंदीदा बारिश का मौसम, आज बहुत कष्ट दाई हो चला है। बीते साल अपने पति को खो चुकी कुसुम जी बहुत अकेली रह गई, बे औलाद होने के कारण उनके जीवन में एक कमी हमेशा से रही है। “सुमित जी,”उनके पति बहुत ही सुलझे हुए और नेक इंसान थे,बहुत अच्छे पद पर कार्य कृत होने के साथ वह बहुत सारी संस्थाओं के संचालक भी थे।

 दोनों पति पत्नी अपना बचा हुआ सारा समय अपनी संस्थाओं को देते, जहां पर गरीब बच्चों और बेसहारा लोगों को शिक्षा, भोजन ,आवास और क्षमता अनुसार कार्य उपलब्ध कराए जाते थे। अधिकतर समय साथ व्यतीत करने से कुसुम जी और सुमित जी दोनों का रिश्ता पति पत्नी से ज्यादा दोस्तों वाला बन गया था। नई-नई जगहों पर जाना संस्था की भलाई के लिए नई-नई योजनाएं बनाना और उन पर अमल करना और शाम को इकट्ठे घर आना,आकर मिलकर खाना बनाना और फिर दिनभर की दिनचर्या पर चर्चा करना, यही दुनिया थी दोनों की!! 

बेहद खुश और संतुष्ट।।पर बीते साल ऑफिस में अचानक आए हृदयाघात में सुमित जी की हॉस्पिटल ले जाने से पहले ही मृत्यु हो गई।..कुसुम जी तो बिल्कुल पत्थर  ही बन गई। 

जीवनसाथी के यू जीवन की संध्या बेला में साथ छोड़ देने से उनकी जीने की इच्छा ही खत्म हो गई। कुसुम जी को बारिश का मौसम बेहद पसंद है। यह बात सुमित जी बहुत अच्छे से जानते थे। वर्षा देखकर कुसुम जी बिल्कुल बच्चों की तरह मचलने लगती थी और सुमित जी से कहती कि चलो बारिश में भीग आए।

सुमित जी भी कभी “ना” नहीं कहते पर शर्त इतनी होती कि आकर चाय और गरम पकोड़े के साथ बालकनी में बैठकर बारिश का लुफ्त लेंगे!!और कुसुम जी भी खुशी-खुशी यह सब तैयारी पहले से ही करके रखती थी। आज बारिश के इस मौसम में सारी यादें जैसे चलचित्र की भांति आंखों के सामने चलने लगी थी, पर अब तो साथ में भीगने वाला कोई नही था, ना ही जिद करके चाय पकौड़े की फरमाइश करने वाला जीवनसाथी जो दोस्त से भी बढ़कर था,”अब कहीं नहीं था”शाम का धुंधलापन छाने लगा,कुसुम जी धीरे से उठी और मंदिर में जा कर दिया जलाया! 

मंदिर में तो दिए ने प्रकाश कर दिया, परन्तु ह्रदय में शाम के धुंधले पन की तरह धीरे-धीरे अंधेरा बढ़ता ही जा रहा था। जिसकी रोशनी अब हमेशा के लिए बुझ चुकी थी।

 

बरस रही है बूंदे, पर भर आया दिल मेरा,

यादों का सावन हरा भरा, मन हो रहा बंजर मेरा।

प्यास बुझ रही धरती की, पर तड़प रहा यह मन मेरा,

रिश्ता प्यारा सा था बड़ा, पर छूट गया वह साथ तेरा।।

 

“बरसात की वो यादें”

 

कविता भड़ाना

 

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