चुभन जो जलन बन गई- शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : सुवर्णा काफी दिनों से इस कॉलोनी में रह रही थी,।कॉलोनियों में घर बहुत पास -पास बने होतें हैं ।पड़ोस के घर में छींक भी आ जाए तो पूरे मोहल्ले को सर्दी-जुकाम हो जाता है।एक घर में दूध जल जाए तो सारी औरतों की नाक सिकुड़ जाती है।घरों में होने वाले त्योहार,बनने वाले पकवान,आने वाले मेहमान ,कुछ भी छिपाकर रखे नहीं जा सकते थे।अचार के बर्तनों से खुशबू आ -आकर खुद बता देतीं थीं,आम ,नींबू,कटहल,टमाटर,या गोभी मूली हरी मिर्ची का है अचार।

कॉलोनियों में हर समय ऐसा एक जरूर होता है ,जिसे हर घर में पकने वाली खिचड़ी का आभास हो जाता था।उन्हीं कर्तव्य परायण समाजसेविका जी के मुखाग्र बिंदु से पता चला “भाभी ,आपको पता है,सचिन कल रात बहुत झगड़ा किया अपनी मां के साथ। बहुत देर तक लड़ाई चलती रही,मैं गई भी थी बीच बचाव करने,पर उन्होंने भगा दिया मुझे।

“सुवर्णा उनके इस विशिष्ट गुण से भरी भांति परिचित थीं।सचिन तो बहुत अच्छा बच्चा था।बाहर कहीं भी मिले , हमेशा नमस्ते कहता, अपने माता -पिता की सारी बात मानता था वह।मां के हर काम में हाथ बंटाता था वो।इतनी जल्दी कैसे बदल गया। सुवर्णा ने उसकी  मम्मी के मुंह से तारीफ ही सुनी थी अपने बेटे  की।ऐसा क्या हो गया ,जो वह अब लड़ाई करने लगा।कुछ दिनों बाद पता चला सचिन ने पापा की आलमारी से एक लाख की चोरी भी कर ली है। सुवर्ण को कभी अच्छा नहीं लगता था जब लोग दूसरों के बच्चों की बुराई करते रहते हैं ,और‌ सामने झूठा अपनापन।

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अगले ही दिन सचिन की मां आई और कहा”भाभी,आपने तो सुना ही होगा सचिन के बारे में। बिल्कुल बर्बाद हो गया है।आप हमेशा कहती थीं ना कि सचिन बहुत समझदार है।अब देखिए आए दिन लड़ाई करता रहता है अपनी दीदी से और मुझसे।अपने पापा से बहुत अच्छा बर्ताव करता है।मैं ही दुश्मन बन गई उसकी।

जो बच्चा मेरे बगैर ना खाना खाता था ,ना कहीं घूमने जाता था,आज मुझसे दूर भागता है।आपकी तो बहुत इज्जत करता है।भगवान के लिए बात करिए ना एक बार। पूछिए ना उससे क्या चाहता है?हमेशा अपनी दीदी से जलता रहता है।उसके सारे सामान नष्ट कर देता है। हमारे साथ बैठकर तो आजकल खाता भी  नहीं।अपनी दीदी ‌का फोन, लैपटॉप सब पटक कर तोड़ डाला उसने।”

सुवर्णा अवाक हो गई थी।सुनी हुई बातों पर तो सुवर्णा कभी ध्यान ही नहीं देती,आज सचिन की मां ने आकर खुद बताया है।कितना गिड़गिड़ा रही थी मुझे बात करनी पड़ेगी उससे।सौभाग्यव शाम को सैर करने जाते हुए,सचिन मिल गया ।वह भी सैर करने ही निकला था।उसे देखकर तो पहले पहचान ही नहीं पाई सुवर्णा।

अभी दो महीने पहले ही दीवाली में मिलने आया था,मिठाई लेकर।प्रणाज्ञ भी किया था उसने, फिर कैसे मान लें कि संस्कार हीन है। सुवर्णा ने सचिन को घर आने के लिए कहा।अगले ही दिन शाम को सचिन मिठाई लेकर आया मिलने।वह ख़ुद भी आत्मग्लानि से भरा हुआ था।

सुवर्णा ने पूछा”कैसी चल रही है पढ़ाई बेटा? मम्मी ने बताया था तुम्हारे नंबर।”वह बेमन से बोला”ओह! मम्मी ने बताया आपको?तब तो बताया होगा कि दीदी से कम मिले हैं नंबर।”

सुवर्णा ने कहा”नहीं तो! उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा। तुम अपनी मम्मी के बारे में ऐसा क्यों सोचते हो बेटा?”

सचिन ने कहा”आंटी,अब मम्मी बहुत बदल गईं हैं।मुझसे बिल्कुल प्यार नहीं करती।हर समय दीदी से ही बातें करती हैं।उनके साथ ही होती हैं।दिन भर दीदी के आगे पीछे घूमती रहती हैं।मैं कभी अपनी कुछ परेशानी बताने जाता हूं तो,बाद में कह देतीं हैं।उनका हर शौक पापा तो पूरे करतें हैं हैं, मम्मी भी उन्हीं की पसंद का खाना,नाश्ता बनाती रहती हैं।मेरी अब जरूरत नहीं मम्मी को।”

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सचिन की बातों ने सुवर्णा को झकझोर दिया ।आज सचिन ने अपने दुख की आड़ में उस जैसी उम्र के सभी लड़कों की वेदना जाहिर कर दी।ऐसा सभी लड़कों के साथ होता है,और हमें पता भी नहीं चलता।सचिन ने बोलना जारी रखा”आंटी हम लड़कों की क्या ग़लती होती है।बचपन से उनके साथ सोया।मेरी हर बात में उनका सपोर्ट मिलता रहा।

अब जैसे ही बड़ा हुआ , ख़ुद से दूर फेंक दिया।पापा से तो हम पहले भी कम बात करते थे।अब मम्मी के पास भी नहीं।हम क्या करें?अपनी परेशानियां किसे बताएं? हमारे शरीर में जो बदलाव‌ आ रहें हैं ,उनके बारे में किस्से पूछे?दीदी बाहर चली जाएगी तो ,उसकी सारी फरमाइशें पूरी करनी है।हम कुछ भी मांगें तो,बाद में।मम्मी मेरी दोस्त थी बचपन से,अब दीदी की सहेली तो बन गई ,पर मुझे क्यों दूर कर दिया।क्या अब मैं उनका बेटा नहीं?”सचिन रोए जा रहा था।

सुवर्णा ने उसे रोने दिया।एक अरसे से दिल में छिपी हुई सारी पीड़ा पिघल रही थी आज।दिल हल्का हो जाएगा।

अगले दिन ही सुवर्णा ने सचिन की मम्मी को बुलवाया और उन्हें सारी बातों से अवगत करवाया।वो तो अपने बेटे के प्रति अनजाने में किए गए भेदभाव से दुखी हो गईं। सुवर्णा को भी आज एक बहुत बड़ी सीख मिल गई कि बच्चों में भेदभाव करके हम माता -पिता ही उनके कोमल मन में पक्षपात का गरल घोलते हैं।

बेटियां पराई हैं तो उन्हें हमेशा खुश रखने की कोशिश करतें हैं।बेटों को समय से पहले ही हम पुरुष बना देतें हैं।सारे वार्तालाप हम ही ख़त्म कर देतें हैं और फिर कहते हैं”तुम लोगों को तो बाहर दोस्तों से फुर्सत ही नहीं मिलती”।वे किसी से तो कहेंगे ना अपने मन की बात।अपनी जिज्ञासा किसी ना किसी से तो पूछेंगे।

मम्मी अब पास फटकने नहीं देती,पापा सदा से दूरी ही बनाए रखें तो अब लड़कों के पास आखिरी चारा दोस्त ही बचते हैं।जब माता-पिता का ध्यान बेटी पर ज्यादा जाने लगता है तो अटेंशन पाने के लिए वे कुछ भी ग़लत करना शुरू कर देतें हैं। माता-पिता के द्वारा अनजाने में ही सही पक्षपात होता तो है।परिणाम स्वरूप भाई -बहन के बीच प्रतिस्पर्धा शुरू हो जाती है। धीरे-धीरे यह प्रतिस्पर्धा कांटे की तरह हृदय में चुभने लगती है।इसको सही समय पर नहीं निकाला गया तो यही चुभन कब जलन बन जाती है ,पता ही नहीं चलता।यह जलन सारी उम्र भाई -बहन के रिश्तों को जलाती रहती है।

शुभ्रा बैनर्जी

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