“छोटू” – नीतिका गुप्ता

मैदान में बच्चों को फुटबॉल खेलते देखकर आज फिर उसके कदम वहीं पर ठिठक गए। रोज ही वह कुछ देर इन बच्चों को हंसते खेलते देखकर फिर आगे बढ़ जाता है। आज का दिन शायद अलग था तभी जब बाॅल उछलती हुई उसकी तरफ आई तो एक जोरदार किक मारकर बाॅल को बच्चों की तरह वापस फेंक दिया। 

 वाह,, तुम तो कितनी अच्छी किक मारते हो,, हमारी टीम में खेलोगे… एक बच्चे ने जब आकर अपने साथ खेलने को कहा तो जैसे दिली ख्वाहिश पूरी हो गई। चमकती आंखें होठों पर मुस्कान … कुछ ही देर में वह उन संभ्रांत परिवार के बच्चों की टीम का एक हिस्सा था। 

 एक के बाद एक बढ़िया बढ़िया किक मार कर उसने अपनी टीम को विजयी बना दिया। 

तुम तो बहुत अच्छा खेलते हो,, नाम क्या है तुम्हारा.. 

एक बच्चे ने जब नाम पूछा तो हिचकते हुए जवाब दिया… “छोटू”

यह कैसा नाम है… चलो कोई बात नहीं आज से तुम हमारे दोस्त हो। मैं अयान हूं, यह सारांश, यह प्रतीक, यह व्योम और वह आरव है..!! 

बेचारे छोटू ने अपने जीवन में कभी ऐसे नाम नहीं सुने थे लेकिन आज इन बच्चों की दोस्ती पाकर उसे बहुत खुशी हो रही थी कि तभी दूसरा सवाल उछला.. 

कौन से स्कूल में पढ़ते हो तुम..?? 

कोई जवाब नहीं था सोच ही रहा था कि एक और बच्चे ने पूछा… 

तुम्हारे घर पर कौन-कौन है..?? 

मां और छोटी बहन… इसी संक्षिप्त परिचय ने छोटू को अपने असली जीवन की याद दिला दी,, जिसे इन खुशियों के क्षण में कुछ पल के लिए वह भूल ही गया था। 

अगले ही पल उसने वहां से दौड़ लगा दी…!! 

अरे क्या हुआ,, कहां जा रहे हो,, कल फिर आओगे ना हमारे साथ खेलने,, हम रोज इसी टाइम पर यहां पर खेलते हैं..!! 


जैसे जैसे वह आगे बढ़ता जा रहा था पीछे बच्चों की आवाजें धुंधली होती जा रही थीं। 

 एक ढाबे पर पहुंचकर रुका और हांफने लगा कि पीठ पर एक जोरदार मुक्के ने उसे जमीन पर गिरा दिया।

खुद को संभालता जो पलटा…

क्यों,, कहां रह गया था अभी तक,, फ्री की तनखा उड़ानी है तुझे तो… सवेरे से अकेले ग्राहकों को संभाल रहा हूं,, बर्तनों का ढेर लग गया है तेरा बाप आएगा धोने…!! 

वो मालिक थोड़ी सी देर हो गई,, मैं अभी फटाफट सारा काम संभालता हूं,, आप बिल्कुल फिक्र मत करो ऐसे चुटकियों में सब हो जाएगा। 

अगले ही पल छोटू दौड़ दौड़ कर हर काम को कर रहा था,, छोटी बहन ने उससे एक चॉकलेट और गुड़िया की मांग की थी रक्षाबंधन के उपहार में… खुद को बार-बार पूछ रहा था क्यों वहां उन बच्चों के साथ रुक गया..?? आज मालिक को नाराज नहीं करना था शाम को बहन के उपहार के लिए कुछ पैसे एडवांस मांगने हैं..!! 



वैसे तो बहुत सारे ग्राहक उससे खुश होकर उसे कुछ ना कुछ बख्शीश भी दे जाते थे लेकिन मालिक अपनी पूरी नजर बख़्शीश पर रखता था और ग्राहकों के जाते ही छीन लेता था। कभी कभार मालिक की नजर से बचा कर कोई सिक्का या नोट वो छुपा दिया करता था और रात को जाते समय चुपके से ले जाता था।

आज कुछ मिनटों की देरी ने सब उलट-पुलट कर के रख दिया था। मालिक की गुस्से से घूरती निगाहें बस उसी पर टिकी थीं और उसकी आंखों के सामने कभी छोटी बहन का उदास चेहरा आता फिर उसके हाथ और तेजी से चलने लगते,, शाम होते होते मालिक का मूड ठीक लग रहा था। आज ईश्वर की अलग ही कृपा थी तभी तो पहली बार मालिक ने बख़्शीश में मिले सारे पैसे उसके हाथ पर रख दिए और कुछ पैसे खुद भी देते हुए कहा… 

 “कल ज्यादा देर मत करना, राखी बंधवा कर जल्दी आ जाना।”

छोटू की आंखों के सामने छोटी बहन का मुस्कुराता हुआ चेहरा दिख रहा था जब कल राखी बांधकर अपना मनपसंद उपहार पाएगी तो कितनी खुश होगी।

आज भी समाज में न जाने कितने ही छोटू ऐसे ही खेलने कूदने की उम्र में अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं। ऐसे बच्चे किसी दया के मोहताज नहीं होते,, अगर हो सके तो किसी की मदद कीजिए ना की सहानुभूति के शब्द बोल दीजिए।

आज रक्षाबंधन जैसे पावन त्योहार पर भी कितने सारे मीम्स बनाए जा रहे हैं। बहन को सिर्फ पैसों और तोहफों की भूखी और भाइयों को औपचारिकता के लिए राखी बनवाते हुए दिखाया जा रहा है। हमें याद करना चाहिए अपने बचपन को जब राखी का त्यौहार किसी दिखावे और औपचारिकता का मोहताज नहीं था। रक्षाबंधन तो भाई बहन के असीम प्रेम और सच्ची भावनाओं का प्रतीक है।

स्वरचित एवं मौलिक रचना

     नीतिका गुप्ता

      गाजियाबाद 

 

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