“चलो यार जल्दी! हाथ-वाथ धोओ, कैंटीन चलते हैं….भूख से जान निकल रही है!” लंचब्रेक होते ही उमंग ने अपनी जगह साफ की और पहना हुआ सफेद एप्रन उतारते हुए साथ में प्रैक्टिकल कर रहे देवांग और सागर से कहा।
___”हाँ हाँ चलो! आज तो लैब के केमिकल्स की स्मेल से तो मेरा सर ही घूमने लग गया है। कब ये सॉल्ट एनालिसिस ख़त्म होगा और राहत मिलेगी यार।”
सल्फ्यूरिक एसिड की बॉटल का डार्ट कस कर बन्द करते देवांग भी बोला और अन्य कई छात्र-छात्राओं के साथ केमिस्ट्री प्रैक्टिकल लैब से बाहर निकल आया।
सभी हाथ-मुँह धोकर थोड़ी देर बाद ताज़ा महसूस कर रहे थे। कुछ कॉलेज की कैंटीन तो कुछ रोड किनारे लगे फास्टफूड वगैरह के ठेलों की ओर बढ़ गये थे।
कुछ लड़के-लड़कियाँ ऐसे भी थे जो टिफिनबॉक्स लेकर आते थे, वे अपने क्लास रूम की तरफ चल पड़े।
____”ये सागर कहाँ रह गया? 30 मिनट के ब्रेक में 10 मिनट तो यूँ ही..!” आधे रास्ते में उमंग पीछे पलट कर इधर-उधर नज़र दौड़ाता हुआ परेशान होकर बोला। जब सागर कहीं दिखाई नहीं दिया तो वे दोनों खिसियाते हुए उसे आवाज़ें लगाते वापस लैब की ओर लौटे।
और सामने ही दिख गया वह। दोनों ने देखा, वह लैब से हाथों में कुछ लिये हुए निकल रहा था। उमंग एकदम से चिड़चिड़ा उठा।
____”कुछ भूल आया था क्या जो आया ही नहीं अभी तक हमारे साथ…क्या करता रहता है?…थोड़ा जल्दी करा कर न!”
____”अरे सागर…ये कॉटन में थिनर लेकर क्या कर रहा भाई? क्या करेगा इसका?” तभी देवांग उसके हाथों में कुछ देख हैरान होकर पूछने लगा।
“कुछ नहीं! चलो न तुमलोग, मैं थोड़ा वॉशरूम होकर आता हूँ…मिलता हूँ कैंटीन में।”
“यार अभी जस्ट तो आया वहाँ से… क्या बाकी रह गया?…पेट तो ठीक है न तेरा…कहीं कुछ..!”
“तुम लोग जाओ न, खाते रहो कुछ तब तक…आ रहा हूँ न मैं भी…!”____ बोलता हुआ सागर उन्हें दुविधा में छोड़ आगे बढ़ गया था।
____”कुछ तो गड़बड़ है इसके साथ यार…मुझे डाउट हो रहा है…मैंने कल ही उड़ती खबर सुनी है…ड्रग्स और नशे वाले रैकेट के स्कूल-कॉलेजों में एक्टिव होने से रिलेटेड…कहीं ये भी तो नहीं…!”
____”ठीक बोल रहा तू… चल चलकर देखते हैं अपन भी…!”
मन में सन्देह उठते ही असल माज़रा जानने के लिए वे दोनों भी चुपचाप उसके पीछे हो लिये।
यूनिवर्सिटी से रसायन विज्ञान में डिग्री कोर्स कर रहे ये तीनों सहपाठी छात्र, यूनिवर्सिटी के होस्टल में रूम पार्टनर्स भी हैं। सागर किसी छोटे कस्बे से इस शहर में इसी साल आया है क्योंकि वन-विभाग में सेवारत उसके पिता का स्थानांतरण कस्बे से दूर किसी सुविधा-विहीन गाँव में हो गया है, जहाँ स्कूल से आगे की पढ़ाई की सुविधा नहीं है। उमंग और देवांग चचेरे भाई हैं जो पिछले साल से यहाँ रह रहे हैं। ग्रामीण पृष्ठभूमि से आया सीधे-सादे स्वभाव का सागर अपने रूम पार्टनर के रूप में इन्हें पहले अच्छा नहीं लगा था लेकिन हफ्ते भर में ही उसके अच्छे व्यवहार से प्रभावित होकर दोनों अनायास ही उससे दोस्ती कर बैठे। सागर कभी अपने पहाड़ी इलाके वाले कस्बे की बहुत सारी अनोखी बातें बता कर तो कभी बाँसुरी की मधुर तान छेड़ कर छात्रावास के साथियों का स्वस्थ मनोरंजन करता रहता है। उसके हुनर से प्रभावित अब तो छात्रों के संग-संग वार्डन शेषनारायण सर भी सागर से बहुत खुश रहते हैं।
ये दोनों भाई तथा सागर रोज क्लास आना-जाना साथ ही करते हैं और कॉलेज के ब्रेक टाइम में खाना आदि भी अक्सर साथ ही होता है तीनों का।
उमंग और देवांग ने देखा, लम्बा गलियारा पार करके कॉलेज के शौचालय वाले हिस्से में पहुँच कर सागर ने थिनर से भीगे रुई से वहाँ के दरवाजों और वॉश-बेसिन के ऊपर दीवारों पर कहीं-कहीं घिसना शुरू कर दिया था। यह दृश्य देख कर दोनों के कदम जड़ हो गये थे मानों। कहाँ तो ये सागर पर किसी ग़लत काम का शक़ करके उसके पीछे आये थे और ये तो…!
वे रोज वहाँ लिखे कॉलेज की लड़कियों के जिन नामों और अनर्गल वाक्यों को देखकर भी अनदेखा कर जाते थे सागर उन्हें ही मिटा रहा था। गतवर्ष जब ये दोनों भी नये-नये आये थे कॉलेज में तो शौचालयों के विभिन्न स्थानों में लिखे लड़के-लड़कियों के नाम और साथ में लिखे अश्लील शब्दों, वाक्यों को पढ़कर पहले-पहल ख़ूब हँसा करते थे पर अब तो सब पुराना हो गया है और अब उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता। साथ पढ़ने वाले कुछ लड़के तो ऐसी बातों को कॉलेज लाइफ का शुद्ध मनोरंजन और ज़िंदगी का असली मज़ा बताते रहते हैं और उन्हें भी यह आनन्द-दायक ही लगता रहा है आजतक, लेकिन अभी? सागर का कृत्य देखकर न जाने क्यों उन्हें लज्जा का अनुभव हो रहा है। सागर से नज़र मिलाना मुश्किल लग रहा है इस समय।
शीघ्र ही सागर ने अपने हाथ धोये और चुपचाप बाहर आ गया। वे दोनों भी बोझिल कदमों से पीछे-पीछे आ गये। कैंटीन में खाना खाते तीनों चुप थे जबकि बाक़ी छात्र-छात्राओं ने शोरगुल सा मचा रखा था।
उनके चेहरे पर तैर रहे प्रश्नों को पढ़कर नम हो आयी आँखों के साथ सागर बिना पूछे ही उन्हें अपनी चचेरी बहन विद्या के असमय दुःखद अन्त के बारे में बताने लगा कि कैसे किसी का नासमझी भरा मस्ती-मज़ाक एक निर्दोष की आत्महत्या का कारण बन गया था।
कस्बे के हाईस्कूल में कुछ बिगड़ैल शैतान लड़कों ने ऐसे ही विद्या का नाम किसी सहपाठी लड़के के साथ जोड़कर लिख दिया था शौचालय की दीवारों पर… जगह-जगह। साथ ही कुछ गन्दी बातें भी। विद्या को जब पहली बार उसकी किसी सहेली ने बताया था कि गर्ल्स वॉशरूम की दीवारों पर किसी ने उसका नाम लिख दिया है तब वह भागती हुई पहुँची थी वहाँ और उन गंदे वाक्यों के साथ अपना नाम पढ़कर अति संवेदनशील होने के कारण उसे जबरदस्त मानसिक आघात लग गया था। बदहवासी में उसने लिखे हुए को अपने रुमाल से मिटाने का बार-बार असफल प्रयास किया था। अगले दिन उसे कई नये स्थानों पर और लिखा हुआ मिला था। पता नहीं कौन था, न जाने क्यों हाथ धोकर पीछे पड़ गया था उस सीधी-सादी लड़की के। जब बहुत परेशान होकर विद्या ने अपनी एक मैडम से शिक़ायत की थी तब मैडम ने स्कूल के प्रिंसिपल सर तक बात पहुँचायी थी। फिर प्रिंसिपल सर द्वारा नोटिस जारी करवाने के बाद कि ऐसी घटिया हरक़त करने वाले का पकड़े जाने पर निष्कासन तय है, कुछ हफ़्तों तक यह सब बंद हो गया था लेकिन मामला शान्त होते ही दोबारा फिर से वही सब शुरू हो गया था।
“मेरी बहन जितनी प्रतिभाशाली थी उतनी ही भावुक और संवेदनशील भी। उसके नाम के साथ कुछ भी बकवास लिखने वालों के लिए यह छोटी बात रही होगी…खाली मनोरंजन, मज़ाक-मस्ती का साधन रहा होगा…पर मेरी मासूम बहन के लिए बहुत बड़ी बात थी। वह भयानक तनाव से घिर कर बीमार सी हो गयी थी…घर से बाहर निकलती तो उसे लगता सब मुझे देख कर बातें बना रहे हैं…आसपास के लोगों को सामान्य रूप से भी हँसते या मुस्कुराते देखती तो उसे लगता मुझ पर ही हँस रहे हैं…उसका आत्मविश्वास चूर-चूर हो गया था। वह स्कूल जाने के नाम पर बहाने करने लगी थी जबकि बचपन से अपनी हर कक्षा की टॉपर रहती आयी थी…पढ़ने-लिखने से उसका मन एकदम से उचट गया था। डॉक्टर्स के अनुसार उसमें भारी डिप्रेशन के लक्षण दिखने लगे थे।”
“…और एक दिन…सूर्योदय से पहले उठ जाने वाली विद्या देर तक सोती रही। चाची जगाने गयीं तो लिहाफ़ हटाते ही बिस्तर से नीचे खून की धार बहती दिखी…ब्लेड से कलाई की नस काट ली थी उसने!” सागर ने इतना बताने के बाद अपनी आँखों पर हाथ रख कर उन्हें मींच लिया था। रुलाई रोकने की कोशिश में उसका चेहरा बिगड़ कर अज़ीब हो आया था।
उमंग और देवांग अपनी जगह से उठ खड़े हुए थे। वे दोनों सागर के कन्धों पर हाथ रख कर उसे सांत्वना देने का प्रयास करने लगे। इसी बीच कुछ असामान्य होने की भनक पाकर कई और लड़के-लड़कियाँ वहाँ आकर उन तीनों को घेर कर खड़े हो गये थे। बार-बार मामला पूछने पर सागर अपने आँसू छुपाता उठा और ‘एक बहन को तो नहीं बचा सका था मैं, पर चाहता हूँ किसी और बहन के साथ ऐसा कभी न हो’ बोलता हुआ कैंटीन से बाहर चला गया।
सबके पूछने पर उमंग और देवांग द्वारा सारी बात का खुलासा किये जाने के बाद उस भीड़ में से अधिकतर के चेहरों पर क्रोध, दुःख और सहानुभूति के भाव उभर आये थे लेकिन, कुछेक चेहरे ऐसे भी थे जिन पर शर्मिन्दगी और अपराधबोध झलक उठा था। इतनी छोटी सी बात का इतना भयानक परिणाम हो सकता है, कभी सोचा नहीं था उनमें से किसी ने अब तक। उनके भी अन्तस् में शायद आत्मग्लानि की भावना जाग रही थी कि वे लोग मन ही मन कुछ गलतियाँ दोबारा कभी न दोहराने का संकल्प ले रहे थे। सागर द्वारा साझा की गयी दुर्घटना ने उन्हें अच्छी तरह से समझा जो दिया था कि हर छोटी सी बात, हमेशा ही छोटी नहीं होती।
कहानी न. 5————°°°°°°°°°°समाप्त°°°°°°°°°°°————
(स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित)
नीलम सौरभ
रायपुर, छत्तीसगढ़