छोटी ननद – ऋतु गुप्ता : Moral Stories in Hindi

शोभना की आज बारात आ रही थी, हर कोई खुश था, सभी मस्ती में झूम रहे थे, चारों तरफ रंग बिरंगी झल्लरें लटक रही है, तरह-तरह के पकवान लड्डू और मिठाइयों की खुशबू हर किसी को  पारस की ओर खींच रही थी, जहां बारातियों के जीमने के लिए छप्पन भोग बनाए जा रहे थे।

शोभना के पिता परमार्थ जी अपने गांव के सरपंच होने  के साथ साथ बहुत बड़े जमींदार भी थे और आसपास के दस गांवो में उनके बराबर किसी और का ना रुतबा था ना ही ओहदा। गांव का कानून सरकार सब कुछ तो परमार्थ जी थे ,वह जो कह देते वही होता। 

बारात के स्वागत में नाचने गाने वालों से लेकर होली गीत मल्हार गाने वालों को भी खास तौर से वृंदावन से बुलाया गया था।

ढोलक की थाप पर धीरे-धीरे होली की फुहारें ,गीत बधाइयां गाई जा रही थी। राधा कृष्ण बने कलाकार फूलों की होली खेल रहे थे और गा रहे हैं 

मोहे छेड़  गयो रे नंदलाल 

ना आऊं कभी गोकुल में…

मोहे छेड़ गयो रे नंद लाल…

खुशियों का रंग – रश्मि वैभव गर्ग : Moral Stories in Hindi

गीत महके, गुलाल दमके, 

अब ना आऊं तोरे हाथ…

ना आऊं कभी गोकुल में…

वहां सभी कुछ अच्छे से चल रहा था ,शोभना भी अपने भविष्य को लेकर आश्वस्त थी क्योंकि उसके होने वाले पति और ससुराल में सभी आधुनिक विचारों के थे, लेकिन शोभना अपनी भाभी निशा जो उसकी कभी बालसखी भी रही , गांव की ही पाठशाला में दोनों ने दसवीं तक साथ पढ़ाई की, उसके दर्द को लेकर आज बहुत व्यथित थी। इसलिए उसने आज अपनी भाभी के लिए कुछ खास करने का सोचा भी था। 

निशा उसके गांव की सबसे सुंदर सलोनी लड़की रही, जिसे जो कोई भी एक बार देख लेता तो उसके दिल में घर कर जाती। पर निशा बहुत ही गरीब परिवार की लड़की रही, जिसके पिता खुद शोभना के पिता परमार्थ जी के यहां खेती करते थे। निशा शोभना जब दसवीं कक्षा में थी तो उनके साथ उनका एक सहपाठी हुआ करता था श्याम, जो निशा को हमेशा कभी किताब की ओट से तो कभी कुछ देने के बहाने टकटकी लगाकर देखा करता ।

शायद दिल ही दिल में वह उसे प्रेम करता था, धीरे-धीरे निशा को भी वह पसंद आने लगा। लेकिन निशा के पिता बहुत गरीब थे उन्होंने निशा की पढ़ाई दसवीं के बाद छुड़वा दी। निशा के पिता जानकी दास जैसे ना तैसे परमार्थ जी के खेतों में मेहनत मजदूरी करके अपना और अपने तीनो बच्चों का पालन पोषण कर रहे थे।

उधर श्याम भी दूसरे गांव से पढ़ने के लिए आता था। श्याम के पिताजी नहीं थे उसकी मां दूसरों के घर में काम करके श्याम की पढ़ाई लिखाई का खर्चा उठा रही थी। श्याम किसी भी तरह अपने पैरों पर खड़ा होकर निशा से शादी करना चाहता था। 

वचन – माता प्रसाद दुबे

दसवीं कक्षा के बाद शोभना  आगे की पढ़ाई करने शहर चली गई ।

तब से दोनों सहेलियों का नाता जैसे कट सा गया।

उधर निशा के पिता को जैसे-जैसे बेटी  बड़ी हो रही थी उसके विवाह की चिंता सताने लगी थी। शोभना का बड़ा भाई आनंद अपने पिता के पैसे के बल पर बहुत बिगड़ चुका था, शराब की लत उसके अंदर घर कर गई थी। कोई भी भला परिवार उसके साथ अपनी बेटी का ब्याह करने को तैयार नहीं था। 

एक दिन जब निशा अपने पिता के लिए रोटी लेकर परमार्थ जी के खेत पर अपने पिता से मिलने आई तो आनंद ने उसे देख लिया बस फिर क्या था उसने ठान लिया कि वह निशा से ही ब्याह करेगा।

जब उसने अपने पिता से निशा से शादी करने के बारे में बोला तो परमार्थ जी भी सोचने लगे कि शायद शादी के बाद हो सकता है उनका बिगड़ैल बेटा सही रास्ते पर आ जाए। ऐसा सोचकर उन्होंने निशा के पिता को हवेली पर बुलाया और निशा का विवाह अपने बेटे के साथ करने का प्रस्ताव दिया।

यह सुनना था कि जानकीदास का दिल धक से कर गया, कहां उसकी फूल सी बेटी… कहां वह शराबी आनंद…. वह चुप रह गया। तब परमार्थ जी ने जानकी दास से कहा देखो जानकीदास यदि तुम्हारी इस ब्याह के लिए हां है तो तुम्हारी बेटी यहां राज करेगी, और यदि तुम इस ब्याह से इनकार करते हो तो तुम्हारे पर पूरे परिवार के लिए मुसीबत हो सकती है क्योंकि तुम्हारे घर के कागज आज भी मेरे पास गिरवी पड़े हैं।

देख लो सोच लो कल शाम तक मुझे जवाब दे देना और ऐसी भी हमारे लड़के में कौन सी खराबी है, सात जन्म भी यदि वो कमाएगा नहीं तो भी बैठकर खायेगी तुम्हारी बेटी। और फिर मैं भी तो एक बेटी का बाप हूं तुम्हारी  बेटी के सुख-दुख की चिंता मुझे हमेशा रहेगी। 

ब्लैकमेल – नीलिमा सिंघल

परमार्थजी की बात का शोभना और उसकी मां ने थोड़ा विरोध किया, और शोभना ने तो यहां तक भी कहा पापा क्या आप मेरा ब्याह भैया जैसे  किसी लड़के के साथ करना चाहेंगे.. परमार्थ जी ने गरज कर  कहा अभी तुम दुनियादारी नहीं समझती हो, इसलिए बेहतर होगा कि अपने काम से कम रखो ,बड़े लोगों की बातों में मत बोला करो। 

उधर जानकीदास ने जब घर जाकर यह बात अपनी पत्नी को बताई तो उनकी पत्नी केतकी निशा को अपने सीने से लगाकर फफक-फफक कर रोने लगी ,कहने लगी चाहे जो भी हो जाए

मैं उनके बेटे के साथ तो अपनी छोरी को ना ही ब्याहूंगी। पर किस्मत में निशा के साथ अन्याय लिखा था और वह हो गया उधर श्याम भी अपने पैरों पर अभी खड़ा नहीं हुआ था उसके पवित्र प्रेम का अंकुर अंकुरित होने से पहले ही इस बेदर्द दुनिया ने मसल डाला था जो बिना अंकुर फूटे ही दफन हो चुका था। 

निशा की दुल्हन बनाकर आने के बाद हवेली में मानो खुशियां सी बरसने लगी। कुछ दिन तो श्याम भी न‌ई न‌ई दुल्हन के आने के बाद उसी के प्रेम में सही से रहा पर कहते हैं ना कुत्ते की पूंछ कभी सीधी नहीं होती, वही उसका हाल था, निशा तो अब उसके लिए घर की मुर्गी दाल बराबर थी। वह बाहर जाने लगा अय्याशियां करने लगा, देर रात शराब पीकर आता ,ना अपनी मां की सुनता  ना ही पिता की सुनता।

अपने पिता से थोड़ा डरता तो जरूर लेकिन अपनी आदतों से बाज न आता। निशा के साथ जानवरों जैसा व्यवहार करना उसकी दिनचर्या में शामिल हो चुका था। एक दिन उसने जम के शराब पी और उसे  जरा भी होश ना रहा,नशे में बाइक से घर आ रहा था कि उसका एक्सीडेंट एक ट्रक से हो गया,

 सम्मान की मुस्कान – लतिका श्रीवास्तव

और  वही दम तोड़ दिया।बेचारी निशा का क्या कसूर था कि छोटी सी उम्र में विधवा का तमगा भी उस भी पर लग चुका था। इस दुनिया के मुंह नहीं पकड़े जाते, किसी ने कहा की बहू के पांव अच्छे नहीं थे, आते ही घर का चिराग बुझ गया। अरे कोई उसके दिल से भी तो पूछो कि कहीं चिराग ऐसे होते हैं ।वह तो निशा की जिंदगी में लगा एक धब्बा था जो जाने के बाद भी निशा को कसूरबार ठहरा गया।

शोभना निशा की छोटी ननद जरूर थी पर उससे पहले उसकी  बाल सखी भी थी। उसने अपनी मां से कहा कि क्यों ना मां हम भाभी की शादी दोबारा श्याम के साथ कर देते हैं, श्याम भी अब एक सरकारी स्कूल में अध्यापक हो चुका था। पर शोभना की मां ने समाज की दुहाई देते हुए उसे चुप करा दिया।

 पर आज अपनी शादी के दिन शोभना ने  अपने होने वाले पति के साथ निशा की वीरान  हुई जिंदगी को गुलजार करने का पहले से ही तय कर लिया था।

वह यकायक सभी लोगों के बीच खड़ी हुई और उसने हिम्मत करके अपने पिता से कहा कि वह यह विवाह जब करेगी जब निशा का विवाह भी उसके साथ उसी के मंडप में श्याम के साथ कराया जाएगा। परमार्थ जी अपनी बेटी की बात सुनकर सन्न रहे गए ,

वह बोलते इससे पहले ही शोभना का होने वाला पति अंशुल और उसके ससुर भी परमार्थ जी से कहने लगे कि देखो समधी जी हम बहुत खुले विचारों के हैं और शोभना जो बात कर रही है उसका हम भी खुलकर समर्थन करते हैं और  हमें भी खुशी होगी कि निशा की  जिंदगी भी संवर जाए, बेचारी इस बच्ची का क्या कसूर था। 

वहीं बैठे हुए निशा के माता-पिता की आंखों से आंसू झड़ रहे थे । वह परमार्थ जी का चेहरा पढ़ने की कोशिश कर रहे थे कि परमार्थ जी  अब क्या कहेंगे..हां  कि ना। लेकिन परमार्थ जी ने जैसे ही जानकीदास की आंखों में देखा तो उन्हें अपनी कहीं बात याद आ गई कि उन्होंने उसकी की बेटी के सुख-दुख में साथ देने की बात का वादा  जो किया था।

परमार्थ जी ने अपनी बेटी को गर्व  से सीने से लगा लिया और निशा को भी बाहर बुलाते हुए इस विवाह के लिए मंजूरी दे दी।

सुबह का भूला – नीलम सौरभ

रुका हुआ गीत संगीत फिर से शुरू हो चुका था गुलाल संग गुलाब की महक भी चारों तरफ बरस रही थी, निशा और श्याम दूल्हा दुल्हन की जोड़े में राधा कृष्ण से सज रहे थे और आज एक ही आंगन में दो मंडप सजे थे ,अंशुल और शोभना और श्याम और निशा ऐसे लग रहे थे, मानो राधा संग श्याम हो और राम संग सीता।

हर किसी की जुबान पर आज निशा और शोभना की मित्रता का गुणगान था। पर निशा  के पास आज कोई शब्द नहीं थे जिनसे की वह अपनी छोटी ननंद का आभार व्यक्त कर सके। उसकी अंतरात्मा और ह्रदय से मूक आशीर्वाद आज अपनी बाल सखा, छोटी ननद के लिए आकाश भर थे।

गीत महक गुलाल आज भरपूर थे ,जो उनका घर आंगन महका रहे थे।

ऋतु गुप्ता 

खुर्जा बुलन्दशहर 

उत्तर प्रदेश

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