सरिता जी की छोटी ननद अपने हाथ में एक सुन्दर सी थैली लेकर धीरे से घर में आई और उन्हें इशारे से अपने पास बुलाकर बोलीं-” भाभी आप पहले इधर आइये … देखिये इसमें कुछ गहने हैं जो मैं अपने पसंद से बदलकर इला के लिए लाई हूँ। इसको जल्दी सम्भाल कर रख दीजिये।फिर हाथ पकड़ कर बोली “भैय्या को मत बताना नहीं तो बेकार में गुस्सा करने लगेंगे।”
“अरे दीदी! क्या जरूरत थी अपने गहनों को बदल कर लेने की । कितने जतन से माँ जी ने इन गहनों को आपके लिए सहेज कर रखा था । पहले भी तो इला को हमलोग इतना सारा दहेज में जोड़कर गहने दे ही रहे हैं न!”
“भाभी एक बात बताओं….मेरी कोई खुशी नहीं है क्या…या इला पर सिर्फ आपलोगों का ही हक है। इकलौती भतीजी है वो मेरी ….मुझे जो दिल करता है वो देने दीजिये बस!”
ननद की बात सुनकर सरिता जी की आंखें भर आईं अपनी भरी नजरें छुपाते हुए बोली-” दीदी सब कुछ आप ही तो कर रही हैं उसके लिए …वर्ना हमारी औकात कहां थी जो इला के लिए ऐसा घर -वर ढूंढ पाते।”
“बस ..बस.. बस भाभी आपने एक झटके में कर दिया न मुझे पराया!” इसका मतलब है कि आप झूठ मूठ का मुझे बेटी .. बेटी कहती रहती हैं। आज मैं जो कुछ भी हूँ वह आप और भैय्या के बल पर हूँ। आप दोनों के बदौलत ही मुझे नई जिंदगी मिली है। मैं आप दोनों के लिए जितना कर पाऊं ना उतना भी कम होगा । मैं कल भी आपकी बेटी थी और आज भी हूँ ….!”
ननद को बुरा न लग जाये इसलिए सरिता जी ने जल्दी से अपने दोनों कान पकड़ कर बोली-” दीदी नाराज़ नहीं होना ।आप तो मेरी बहन -बेटी सब हैं और फिर उन्होंने आगे बढ़के गहनों की थैली ननद के हाथों से ले लिया।”
थैली लेकर वह अपने कमरे में चली गईं। आलमारी खोल ‘गहने’ रखने लगी तो अनायास ही उनकी नजर उसमें चिपकी एक तस्वीर पर पड़ी । लाल चुनरी ओढ़े वह ससुराल में बाकी सदस्यों के साथ खड़ी हैं और सबसे पास में बिल्कुल उससे चिपककर छोटी सी ननद उसका हाथ थामे मुस्करा रही है। सरिता जी को उस समय की विस्मृत क्षणों की याद फिर से हो आई।
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उनकी बेटी ‘इला’ तो उनकी गोद में बहुत बाद में आई थी। उससे पहले ही वह प्यारी सी बारह साल की ननद की चहेती माँ -बहन सब बन गई थीं। ननद पति से दस साल की छोटी थीं जो बेटी जैसी ही तो थी। शादी के दो वर्ष बाद ही उसे पता चल गया था कि सासु माँ किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त थीं जो बाद में स्वर्गवासी हो गईं । शायद बीमारी का कारण सबको पता रहा होगा इसीलिए उनकी इच्छा रखने के लिए बेटे की शादी जल्दी कर दी गई थी। सरिता जैसी भोली भाली बहू को देख सासु माँ निहाल हो गई थीं।
उसे अच्छी तरह याद है कि बेवक्त दुनियां से जाते समय उनकी कातर आंखें सरिता जी को ढूंढ रहीं थी। उन्होंने नई- नवेली बहू को पास बुलाया और बेटी का हाथ उनकी हाथों में थमा कर बोलीं -” बहू आज से तुम इसे अपनी ननद नहीं बेटी ही समझना। उस समय उनकी आँखों से झर झर आंसू बह रहे थे।”
काल की नियति से अनजान उस बच्ची ने पहले माँ को देखा और फिर भाभी को। सरिता जी की नजर ननद की भोली सी निरीह सूरत पर पड़ी तो उनकी आँखों में ममता उमड़ आयी। उन्होंने उसे अपने दोनों हाथों में समेट लिया। एक स्त्री के हृदय में छिपी ‘ममता’ रिश्ते नहीं देखती और उसी ममता ने भाभी – ननद के रिश्ते को माँ- बेटी का रिश्ता बना दिया।उस दिन से सरिता जी भूल ही गईं कि वह भाभी हैं।
उनकी तो कोई इच्छा ही नहीं थी कि वह कोई और औलाद के लिए सोचती । पर पूरे परिवार के दबाव में आकर उन्हें अपनी जिद छोड़नी पड़ी। लगभग पांच साल बाद इला का जन्म हुआ और फिर आयुष का। लेकिन उनकी पहली “संतान” ननद ही थी।
उन्होंने एक माँ की तरह ही ननद का खयाल रखा। पढ़ाया लिखाया फिर एक सुखी संपन्न घर देख विवाह किया पर बेचारी के किस्मत में कुछ और ही लिखा था। शादी के कुछ दिन बाद ही दहेज के लोभी ससुराल वालों ने दहेज में और पैसे लाने के लिए उसे जबरदस्ती मायके भेजा। कुछ दिनों तक तो उसने कुछ नहीं बताया लेकिन बाद में सरिता जी को ससुराल वालों की लालची नियत का पता चल गया। भाई -भाभी ने बहुत कोशिश की पर उन क्रूर लोगों को बहू नहीं सोने की मुर्गी चाहिए थी।
अंत में सरिता जी ने एक बड़ा कदम उठाया खबर मिलते ही वह उसके ससुराल पहुंची। वहां का नज़ारा देख उनका दिल दहल गया। अकेली कमरे में पड़ी भूख प्यास से बिलखती हुई अपनी औलाद जैसी ननद को अपने सीने से लगाया उसके आंसू पोंछ उसे हमेशा के लिए उस नर्क जैसे ससुराल से लेकर अपने साथ चली आईं। बाद में उसके पति और बाकि लोगों ने हजारों कसमें खाई पर उन्होंने ननद को भेजने से साफ इंकार कर दिया। समय बीता उन्होंने ननद की बीच में छुट गई पढ़ाई पूरी कारवाई। उसे कालेज में नौकरी मिली और उसने अब अपने भाई भाभी और उनके बच्चों के साथ एक खुशहाल जीवन जीना सीख लिया।
सरिता जी की ननद ने हर प्रकार से मदद की बेटी इला की शादी में। सब कुछ बहुत बढ़िया से संपन्न हो गया। इला का ससुराल बहुत ही सुखी संपन्न तथा खुले विचारों वाला था। जैसा सरिता जी चाहती थी वैसा ही खुशहाल परिवार मिला था इला को। वह सबसे लाडली और छोटी बहू है अपने ससुराल में।
आज तीन महीने बाद राखी में इला अपने मायके आई है। उसने आते ही पहले बुआ को ढूँढा। वह दौड़ कर उनके कमरे में गई। खाली कमरा देख बाहर आई और माँ से पूछा कि बुआ कहां है?”
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सरिता जी ने एक -एक कर इला से ससुराल के सभी सदस्यों सास- ससुर जेठ- जेठानी के विषय में पूछा। “ननद” का नाम सुनते ही इला का मूंह सुखी लाल मिर्च की तरह लाल होकर ऐंठ गया। माँ के पीछे- पीछे उठ कर रसोईघर में गई और माँ से बोली- “माँ तुम लोगों ने अच्छा नहीं किया !”
सरिता जी डर गईं और बोली- “क्या कहा तुमने बेटा ….क्या अच्छा नहीं किया हमने !”
इला ने अपना भौ सिकोड़कर कहा- “वही मुहल्ले जैसे घर में मेरी शादी और क्या ! पापा को तो अपने लेबल से ऊपर जाकर खानदान ढूंढना था न ..! गाड़ी घोड़ा, महलों जैसा घर, नौकर चाकर सबकुछ लेकिन सब बेकार। ”
“बेकार….. क्या बोले जा रही है तू इला ! नसीब वालों को ऐसा ससुराल मिलता है।”
वही तो … जो कहावत है न ऊंचे दुकान की फीके पकवान बस वैसा ही मिला है ससुराल….. दकियानूसी विचारों वाले लोग हैं उस घर में!”
इला, “तेरी शादी को मुश्किल से छह महीने ही हुए हैं और तू अपने ससुराल और वहां के लोगों की कसीदे निकाल कर रही है।”
“अरे क्या हुआ है! कोई बात है क्या तो बता दे मुझे !”
-माँ की भृकुटी तन गई।
बात क्या रहेगी माँ-” उस घर में मेरी ननदो का वर्चस्व चलता है!”
“क्यों, ऐसा क्या करती हैं वो लोग जिससे तुम्हें तकलीफ होती है ।”
“चौबीस घंटे मेरे ही चक्कर में रहती हैं जैसे मैं कोई दूध पीती बच्ची हूँ ।”
इला…इला….इला…करते उनलोगों का दिन और इला…. इला…. इला करते रात गुजरती है। जैसे मेरे ऊपर नजर रखने के अलावे कोई काम ही नहीं है। देखो ना इतने दिनों के बाद आई हूँ अपने घर यहां भी चैन नहीं लेने दे रहीं…।
सुबह से चार बार पूछ चुकी हैं “इला चाय पी ली? “
इला नाश्ता कर ली , समय पर नाश्ता कर लेना ठीक है न!”
“अरे भाई, मैं अपने घर में आईं हूँ तो खाऊँगी ही उनको चिंता करने की क्या आवश्यकता है बताओं भला!”
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माँ ने बड़े गौर से इला को देखा और बोली अरे बेटा… “तो क्या हुआ रिश्ते में बड़ी है दोनों ननदें अगर तुम्हारे सेहत के लिए सोचती हैं तो इसमें बुराई क्या है। ”
इला माँ के हाथ से चाय लेते हुए बोली-” माँ मेरी सेहत की चिंता करने के लिए तुम हो ना यहां फिर दूसरे को क्या जरूरत है!”
अच्छा वह सब छोड़ो “मेरी प्यारी बुआ कहां है?”
फोन करो और बुला लो उन्हें उनसे कहो कि उनकी लाडली भतीजी आई है ससुराल से ।
बेटा उनके कालेज में कोई परीक्षा चल रही थी। शायद वो उसी में व्यस्त हैं फिर भी मैंने उनको फोन कर दिया है। मौका मिलते ही जरूर आयेंगी।
वैसे भी उनका जीवन तो तुम्हीं लोगों पर न्योछावर है। सुबह- शाम कभी तुम्हारा कुशल -मंगल पूछती रहतीं हैं। सबके लिए फिक्र करने वालीं और सबको साथ लेकर चलने वाली ऐसी बुआ कहां मिलेगी। हमलोगों ने हजार कोशिश की थी कि उनका घर फिर से बस जाता पर उन्होंने ठान लिया है कि पहले इला की शादी हो जाए फिर उन्हें अपने बारे में सोचना है। कैसे हमलोग उनका एहसान चुकाएंगे।
इला ने माँ के मूंह पर अपना उँगली रखते हुए कहा-” ऐसा क्यूँ कह रही हो माँ बुआ कोई हमसे अलग है क्या! वह हमारी बेस्ट बुआ है इस दुनियां की।
सरिता जी ने गहरी साँस लेते हुए कहा -“बात तो सही है बेटा ,तुम्हारे पिताजी की नौकरी छूटने के बाद आज बुआ के बदौलत ही हम इस हाल में हैं कि पूरा परिवार खुशहाल है और तुम दोनों भाई -बहनों की पढ़ाई लिखाई बेहतर तरीके से हो पाई और उन्हीं की कृपा है कि हम तुझे औकात से ऊपर उठकर ससुराल ढूंढ सके हैं।”
इला ने माथे को खुजाते हुए कहा-” वो सब तो ठीक है माँ… पर आपलोगों ने ‘सिरदर्द’ वाली ससुराल क्यूँ ढूंढा मेरे लिए!”
” क्या कहा सिरदर्द !”
“बुआ ने अपना पर्स सामने पड़ी कुर्सी पर रखते हुए कहा किसको सिर दर्द कह रही है इला ?”
इला दौड़ कर बुआ से लिपट गई और धारा प्रवाह बोल गई -” बुआ सिर दर्द मतलब ननद वालीं ससुराल!”
सरिता जी कुछ बोल पाती इससे पहले ही बुआ ने इला की बाहें अपने गले से हटाते हुए कहा-” इला तू मुझे सुना रही है न !”
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उनकी आंखें भींग चली थी। वह बोलीं-” इला भाभी ने मेरे लिए अपने मायके तक को भी छोड़ दिया था। क्योंकि वे लोग इन्हें अकेले बुलाते थे और मेरी भाभी मुझे अकेले छोड़कर मायका जाना ही नहीं चाहती थी। आज तू अपनी ननद के लिए क्या क्या कसीदे निकाल रही है। ”
इला के शरीर में ‘काटो तो खून नहीं ‘ भौचक थी बुआ का दिल अनायास ही दुख गया था।
इला ने भी मुड़कर बुआ को कस कर पकड़ लिया और बोली-” बुआ मुझे माफ कर दो मुझसे भूल हो गई मैंने आपका दिल दुखाया है। अपने ही हाथों से अपना कान खींचते हुए बोली-” बुआ मेरी प्यारी बुआ सभी की ननदे अच्छी होती हैं। ”
बुआ ने प्यार से इला का कान पकड़ते हुए कहा-” जा तुझे माफ किया तू भी तो कभी ननद बनेगी !”
तभी इला की मोबाइल बज उठी- बुआ ने एक आँख मूंदकर कर इला की तरफ इशारा किया जा तेरी ननद का ही होगा….फिर तीनों एक साथ खिलखिला कर हँस पड़ी।
स्वरचित एवं मौलिक
डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा
मुजफ्फरपुर बिहार