छोटी मां – सांची शर्मा : Moral Stories in Hindi

अंशु, संजू और राजू अपनी मां समान बड़ी बहन रानी जी के घर नम आंखें लिए बैठे थे जब उनके भांजे आशू ने कहा मामा, मां को अंतिम विदाई देने का समय आ गया है, आ जाओ अपनी बहन के अंतिम दर्शन कर लो। तीनों भाइयों ने भरे मन से अपनी बहन को विदाई दी और अपना बचपन याद करने लगे। 

रमेश जी और श्यामा जी के चार बच्चे थे सबसे बड़ी रानी फिर अंशु उससे छोटा संजू और गोद का राजू। रमेश जी एक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत थे और काम के सिलसिले में अक्सर उनको घर से बाहर रहना पड़ता था। श्यामा जी अपने चारों बच्चों की परवरिश में व्यस्त रहती थी। रमेश जी के छोटे भाई सुरेश जी अपनी पत्नी राधा जी

और अपने तीनों बच्चों के साथ उसी घर में रहते थे। सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था कि अचानक ही श्यामा जी को कुछ इन्फेक्शन हो गया और डॉक्टर द्वारा गलत इंजेक्शन लगाने की वजह से वह अपने हंसते खेलते परिवार को अलविदा कह इस दुनिया से हमेशा के लिए चली गई।

उन सब पर तो जैसे दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा। रमेश जी यही सोचने लगे कि इतने छोटे बच्चे कैसे संभालूंगा ऊपर से नौकरी भी ऐसी के घर पर कम ही रहना होता था। उस समय रानी ने अपना बड़प्पन दिखाते हुए कहा कि पिताजी आप चिंता मत करो मैं अपने तीनों भाइयों का ध्यान रखूंगी। रानी की उम्र भी मात्र 15 साल तो

थी जब उस पर घर की सारी जिम्मेदारी आ गयी। घर के काम में निपुण रानी पढ़ने लिखने की बहुत शौकीन थी पर अपने घर के हालात देखते हुए अपने भाइयों के लिए उसने अपनी पढ़ाई त्याग दी और उनकी जिम्मेदारी संभाल ली। रानी अपने तीनों छोटे भाइयों का मां की तरह ध्यान रखती, उनकी पसंद ना पसंद, उनकी पढ़ाई लिखाई हर बात का ध्यान रखा करती थी और गोद का राजू तो रानी को ही अपनी मां समझता था।

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उनकी चाची राधा जी अक्सर बिन मां के बच्चों को बहुत परेशान करती थी। उनसे घर के सारे काम करने को कहती थी पर रानी जी अपने भाइयों को पीछे कर सारे काम खुद करती और अपने भाइयों को भी संभाले रखती। वें घर और बाहर की सारी जिम्मेदारी एक मां की तरह संभालती और तीनों भाइयों को उनकी मां की कमी कभी महसूस नहीं होने देती थी।

समय तो अपनी गति से चलता रहता है। रानी के लिए एक अच्छे घर से रिश्ता आया। रमेश जी को भी रानी की शादी तो करनी ही थी, सो कर दी पर उनको अपने तीनों बेटों की चिंता सताती थी। रानी ने ससुराल जाकर वहां सब संभाल लिया और अपने तीनों भाइयों का भी उतना ही ध्यान रखा जैसे वह पहले रखा करती थी।

वह अपने सबसे छोटे भाई राजू को तो अपने साथ ससुराल ही ले गई और अंशु व संजू को भी रोज स्कूल से अपने घर बुला लिया करती थी। उनको खाना खिला कर, पढ़ाई करा कर शाम को वापस भेजा करती थी। रानी के पति या ससुराल वालों को इस बात से कोई एतराज नहीं था,

हां कभी-कभी उनकी नंद उनके भाइयों को भला बुरा कुछ कह देती तो रानी को बहुत बुरा लगता लेकिन परस्थिति को समझते हुए वह अपने भाइयों को ही समझा देती और खुद भी अपने आंसू पी जाती। 

उनके भाई जब बड़े हुए तो रानी जी ने उनके लिए अच्छी लड़की देखकर उनकी शादी कर दी। अब उनकी थोड़ा सुकून था कि उनके भाइयों का घर भी बस गया। भाई आज भी अपनी बहन को मां का ही दर्जा देते थे और हर काम उनसे पूछ कर ही करते थे। रानी जी भी दोनों घर की जिम्मेदारियां संभालती रही। उनकी गोद में अब उनके अपने भी बच्चे थे। चारों भाई बहन एक ही शहर में होने से अक्सर मिलते रहते थे।

अब सबकी अपनी अपनी गृहस्थी थी। रानी जी भी दादी नानी बन गई थी, अंशु और संजू ने भी अपने बच्चों की शादी कर दी थी पर बहन का दर्जा आज तक वही था। उन तीनों के बच्चे और पत्नी भी रानी जी को वही सम्मान और प्यार देते थे जिसकी वह हकदार थी। जैसे रानी जी ने अपने भाइयों को मां बनकर पाला उनके लिए इतने त्याग करें, उनके भाई भी हमेशा उन पर जान छिड़कते थे।

दिसंबर की कड़कड़ाती ठंड थी जब रानी जी ने रात 10:00 बजे करीब अपने भाइयों को फोन मिलाया और कहने लगी की एक सप्ताह हो गया तुमसे मिले हुए, तुम्हारी बहुत याद आ रही है। कल सुबह तीनों मेरे से मिलने आ जाना। तीनों भाइयों ने कहा, जीजी आप चिंता मत करो कल सुबह आपकी पसंद की खस्ता कचौरी का नाश्ता हम सब साथ करेंगे। 

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पर किसे पता था कि वह उन चारों की आखिरी बात होगी।  तीनों भाई सुबह तैयार होते हुए मन में विचार ही कर रहे थे कि जीजी के घर जाना है, तभी उनके भांजे आशु का फोन आया कि मामा, मम्मी नहीं रही। उसने बताया कि मम्मी सुबह पूजा करने की तैयारी ही कर रही थी कि अचानक उनकी शुगर लो हुई और साइलेंट अटैक आने से वह हम सब को छोड़कर चली गई।

तीनों भाइयों की तो जैसे दुनिया ही खत्म हो गई थी। 

आज अपनी छोटी मां (अपनी बड़ी बहन)  को अपने घर का अंतिम जोड़ा पहनाते हुए उन्हें लग रहा था कि आज वो तीनों अनाथ हो गए।

सभी पाठकों को मेरा प्रणाम। मेरी यह कहानी मेरे कुछ अपनों के जीवन से प्रेरित है। आप सभी मेरी कहानी पढ़ कर अपने अनमोल विचार दें और मेरा मार्गदर्शन करें।

#बहन

सांची शर्मा 

हरिद्वार 

स्वरचित एवं अप्रकाशित

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