छोटी खुशियां – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi

हवा में उड़ती गेंद आई और छत पर एक कोने में रखी… अचार की बरनी में इस तरह टकराई की बरनी दीवार से जा लगी… देखते-देखते उसमें से ताजा अचार की खुशबू के साथ-साथ सरसों का तेल बह निकला… 

अम्मा अभी-अभी अचार को डब्बे में डालकर हाथ ही सुखा रही थी… आवाज सुन भागी आई… तेल की बहती धार देख… उनका गुस्सा उबल पड़ा… जोर से चीखी…” कौन है… कौन है रे… किसने गेंद फेंकी… रुक जा… आज… आज नहीं बचेगा मेरे हाथों से….”

 अम्मा की ललकारने की आवाज नीचे पहुंचते ही… सभी बच्चे जो अभी तक गेंद मांगने की हिम्मत जुटाकर दरवाजे तक पहुंचे थे… जान बचाकर भाग खड़े हुए… 

नीमा भी अंदर से भागी चली आई… आज छुट्टी का दिन था इसलिए नीमा और राकेश दोनों ही घर पर थे… मां की गरजती आवाज सुन दोनों छत पर हो लिए… मां गुस्से से उबल रही थी… अभी-अभी तो इतने प्यार से… अपने हाथों से… अम्मा ने अचार बरनी में डाला था… मसाले की खुशबू हाथों से गई भी नहीं थी… कि यह कांड हो गया…

 नीमा भाग कर दूसरी बरनी ले आई…संभाल कर टूटे डब्बे को सीधा किया और धीरे-धीरे अचार दूसरे डब्बे में डालने लगी…

 अम्मा तो जो उबल रही थी कि शांत होने का नाम ही नहीं ले रही थी… ऐसे ही उबलते अचार की तेल की धार पर पैर फिसला और धम्म से गिर पड़ी…” हाय राम……!”

 राकेश ने जैसे तैसे उठाया… उठाकर बिठाया… अब तो दूसरा ही रोना शुरू हो गया…” टूट गई मेरी कमर… मेरे पैर… घुटने…!”

 नीमा के हाथ अचार से सने थे… उठने को हुई तो अम्मा ने इशारे से कहा…” तू रहने दे… पहले उठा ले…!”

 “क्या हुआ मां… कहां लगी… ज्यादा तो नहीं लगी…!”

 अम्मा कभी अपने पैर पकड़ रही थी… कभी कमर… तो कभी घुटना…

 राकेश मां की पीठ सहलाता… पैर सहलाता बोला… “कहीं मोच तो नहीं आई मां… अस्पताल जाना होगा क्या…?”

 “अरे तो पूछता क्या है… पक्का कोई ना कोई हड्डी टूट गई… इस उम्र में दिन भर घर में एक तो ऐसे ही अकेली फिरती हूं… अब उसमें भी हड्डी टूट गई… यह क्या हो गया…!”

” अरे मां… कौन सी हड्डी टूट गई… कहां ज्यादा दर्द हो रहा है…?” नीमा ने पूछा.…

” कौन सी टूटी… यह मैं क्या जानूं… यह तो डॉक्टर ही बताएगा… मुझे तो बड़ा दर्द हो रहा है…!”

” कहां दर्द हो रहा है… यह तो बताएंगी ना आप…!”

” मेरे तो पूरे बदन में दर्द हो रहा है… राकेश अब ना बचूंगी… लगता है सारी हड्डियां टूट गई… जल्दी अस्पताल ले चल…!”

 नीमा और राकेश दोनों ही दिन भर बाहर कामकाज में व्यस्त रहते थे…अम्मा अकेली घर पर रह जाती… बच्चे भी स्कूल चले जाते… घर में बैठी दिन भर उटपटांग बोलती रहती… सोचती रहती… उन्हें लगता कि उनकी सेवा करने वाला कोई नहीं… इस उम्र में उनके साथ बैठने वाला तो होना चाहिए… कोई काम नहीं… कोई साथ नहीं… आदमी करे तो क्या…

 अम्मा को व्यस्त रखने के लिए ही… राकेश पिछले हफ्ते कच्चे आम ले आया था… बड़े प्यार से मां को कहा था अचार डालने…” मां तेरे हाथ के अचार जैसे तो मार्केट में मिलने से रहे… इस बार तू ही बना ना अपने हाथों से…!”

 सच में पूरे हफ्ते से मां ने कोई इधर-उधर की बात नहीं की थी… जतन से लगी थी अपने अचार के पीछे…

 अम्मा का कराहना बंद ही नहीं हो रहा था… नीमा फिर उठने को हुई तो अम्मा ने कहा…” नहीं बहू… पहले अचार अच्छे से साफ कर ले… तभी उठना…!”

 सब साफ कर नीमा मां के पास आई… यहां वहां पैर हाथ सहला रही थी… जहां छूती अम्मा कराह उठती…” नहीं नहीं… अरे वहां नहीं…!”

नीमा ने राकेश से कहा…” चलो अस्पताल ही चलते हैं… ऐसे तो पता लगने से रहा… चोट कहां लगी है…!”

” हां बहू… अस्पताल ही जाना पड़ेगा…!”

राकेश अम्मा को जानता था… उसने अम्मा के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा… “मां थोड़ा इंतजार कर लेते हैं… अभी-अभी तो गिरी हो इसलिए पूरा शरीर दर्द कर रहा है… हो सकता है शाम तक कम हो जाए… या फिर ठीक ही हो जाए… या नहीं तो पता ही चल जाएगा कि दर्द कहां अधिक हो रहा है… ठीक है ना…!” राकेश बोलकर अम्मा को सहारा देकर सीढ़ियों से उतारने लगा… 

अम्मा अब चुप हो गई थी… अपने कमरे में जाकर लेट गई… पर थोड़ी-थोड़ी देर में कराहने की आवाज बाहर तक आ रही थी…

 शाम हो गई अम्मा का दर्द यूं तो कम हो गया था… पर बच्चों का बार-बार पूछना… परवाह करना… उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था…इसलिए कुछ अधिक बोल नहीं रही थीं…

  छुट्टी का दिन था.… शाम को बच्चों का सबके साथ बाहर घूमने का प्लान भी था… पर दादी को तो चोट लग गई थी… नीमा ने कहा.…” आज कैंसिल करते हैं… पर बच्चे जिद पर अड़ गए तो राकेश बोला… “चलो ना अस्पताल होते चलेंगे.…!”

 सबके साथ जाने के नाम पर तो अम्मा का आधा दर्द यूं ही गायब हो गया… रास्ते में एक बढ़िया समोसे चाट की दुकान थी… अम्मा की फेवरेट… मिंटू बोला… “चलिए दादी… बाद में डॉक्टर दिखाना… पहले चाट खाते हैं…!”

 नीमा ने फटकार लगाई…” दादी से नहीं उठा जाएगा… अभी रहने दो…!”

 दादी बोल पड़ी… “अरे नहीं नहीं… चली जाऊंगी… चलो ना… बच्चों का मन है…!”

 घूमने… साथ निकलने… चाट खाने के नाम पर आधी… और चाट खाते-खाते तो दादी की पूरी दर्द ठीक हो गई… वहां से बिना सहारे के बाहर आते देख राकेश बोला…” मां अब कहां जाओगी… अस्पताल या घूमने चलें…!” 

मां ने पैर बढ़ाते हुए कहा…” चलो जहां चलना है… पर अस्पताल अभी रहने दो… थोड़ी दर्द की दवा बस ले लेना… अभी तो सब ठीक लग रहा है…!”

राकेश ने मां के कंधे पर हाथ रखकर कहा…” मेरी मां छोटी-छोटी बातों में अपनी खुशियां तलाश करना जानती है… क्यों मां…!” 

 दोनों बच्चे साथ ही बोल पड़े…” दादी रात का खाना खाते-खाते तक पूरा ठीक हो जाएगा…!” सब हंस पड़े और दादी सबको साथ में हंसता देख खुद भी हंस पड़ी…” चलो शैतान… सब मेरा मजाक बना रहे हैं…!”

 सब घूमने निकल पड़े… गनीमत थी अम्मा को अधिक चोट नहीं आई… अपनों के साथ खुशियों के चार पल बिताने को मिले तो अम्मा रोज ऐसे चोट खाने को तैयार थी…

स्वलिखित 

रश्मि झा मिश्रा 

#छोटी-छोटी बातों में खुशियों को तलाश करना सीखो…

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