छोटी बहू – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

” विगत का सोचती हूँ तो एक सलाम खुद के लिये बनता है, “पीछे कुछ आवाजें अभी भी कानों में शोर मचाती हैं।

“हमारी ही किस्मत खराब थी जो ऐसी बालिका वधु से पाला पड़ा, माँ ने कुछ सिखाया नहीं, और मुझे इस बहू के आने से भी आराम नहीं, ऊपर से बच्चों की तरह शरारती है, गंभीरता तो है ही नहीं “सासु माँ की खींझ अक्सर ससुरजी पर उतरती।

“छोटी बहू निश्छल है, उसका दिल बहुत साफ है, उसके अंदर बड़ी बहू की तरह छल -कपट नहीं है,काम भी सीख जायेगी धीरे -धीरे, थोड़ा समय दो उसे “ससुर जी सासु माँ को समझाते।

“आप को मुबारक हो छोटी बहू… मुझे तो बिल्कुल पसंद नहीं “सासु माँ ने कटुता से कहा। कमरे में सुन रही बहू की आँखों में आँसू आ गया। कोशिश तो कर रही है नये परिवेश में ढलने में,पर कम उम्र और परिवेश की भिन्नता दोनों ही आड़े आ रही थीं।

 शहर में पली छोटी बहू, पिता की अंतिम जिम्मेदारी थी, सो उन्होंने जिम्मेदारी उतारने पर ध्यान दिया बेटी की उम्र और पढ़ाई पर ध्यान नहीं दिया। ध्यान तो ये भी नहीं दिया कि गांव में उनकी लाड़ली कैसे सामंजस्य बैठाएगी,।

पति को खाने का शौक, पर छोटी बहू खाना बनाने में अनाड़ी, पति से भी वो हौंसला अफजाई उस समय नहीं मिलती थी, हाँ छोटी बहू की निश्छलता ससुर जी को ही नहीं पति को भी जरूर प्रभावित करती।ससुर जी एक बार बेटे की गृहस्थी देखने आये तो बेटे को भी माँ की तरह टोकते और डांटते देख वहाँ तो कुछ नहीं बोले, पर अलग से बेटे को समझाया, वो सब सीख लेगी, उसके अंदर लगन है…,उसे डांट कर नहीं प्यार से समझाया करो।

छोटी बहू की कमजोरी किताबें थी, उन्ही किताबों में रसोई के कालम में मन लगा कर रेसिपीज पढ़नी और बनानी शुरु की, जब जो कुछ मौका मिला, सीखने की कोशिश की…. अब छोटी बहू बहुत चीजों में पारंगत हो गई.., खाने की तारीफ मित्र ही नहीं रिश्तेदार भी करने लगे,जो सासु माँ दिन भर डांटती अब उन्हें छोटी बहू के गुण दिखने लगे। क्योंकि छोटी बहू की बनाई पेंटिंग हो या खाना हो, एक परवाह, अपनापन सबमें दिखता था…।
अल्हड़ से वयस्क तक पहुँचती बहू, अब सबको समझने लगी, और लोग उसे समझने लगे…।

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छोटी बहू जल्दी -जल्दी दो बच्चों की माँ बन गई,अपने बच्चों को परफेक्ट बनाने में कोई कमी नहीं रखी।

छोटी बहू में कुछ अलग सा गुण भी था, कभी महिलाओं की टोली में न बैठती, लाइब्रेरी से किताबें ला उन्हें पढ़ने में ज्यादा रूचि थी। हिन्दी के सुन्दर शब्दों को बोलते देख एक दिन पति ने कहा “तुम लिखना शुरू करो.. अच्छा लिख सकती हो “बस फिर क्या था… पहले पत्रिकाओं में भेजा, फिर ऑनलाइन शुरु हुआ…।

 और एक स्नातक तक ही पढ़ाई की लड़की ने कई मंचों से प्राइज जीतने लगी, कहीं कैश तो कहीं गिफ्ट के रूप में मिले प्रोत्साहन राशि से हौंसला बढ़ता गया …, समय का सदुपयोग कर कुछ पाना उसे आत्मनिर्भर बना गया….. कौन कहता है कि नये आगाज़ के लिये उम्र बाधक है…!!


” उम्र किसी भी चीज के लिये बाधक नहीं है,” बस हौंसला जरूर होना चाहिए…!!शिक्षित कहलाने के लिये सिर्फ डिग्री होना जरुरी नहीं है, क्योंकि जीवन की पाठशाला में आप सीखना चाहेंगे तो बहुत कुछ सीख जायेंगे…। बस ईमानदार रहिये, अपने रिश्तों के प्रति, अपने कर्तव्यों के प्रति…..!!और हाँ जिज्ञासु बने रहे, छोटी बहू की तरह… क्योंकि जिज्ञासु बने रहना ही जीवन है….।

तो दोस्तों, क्या एक सलाम खुद के लिये बनता है या नहीं…..।

—-संगीता त्रिपाठी

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