चूड़ियों की खनक – गीतू महाजन :  Moral Stories in Hindi

उसके जाते ही सब कुछ खामोश हो गया था.. पूरे घर- परिवार के साथ साथ ऐसे लग रहा था जैसे पूरा कस्बा ही चुप्पी साध गया हो।घर की दीवारें भी मूक हो चुकी थी।हवा भी बहुत धीमी गति से चल रही थी जैसे उसकी आवाज़ से कहीं शोर उत्पन्न ना हो जाए।आज मालिनी को गए हुए लगभग 15 दिन हो गए थे और चंद्रकांत बाबू बिल्कुल खामोश से अपने कमरे में अपनी आराम कुर्सी पर आंखें मूंदकर बैठे थे।ऐसा लग रहा था जैसे मालिनी के जाने के बाद उनका अस्तित्व भी आधा रह गया था।

गंभीर से रहने वाले चंद्रकांत बाबू अपनी संगिनी के साथ इतना प्रेम करते थे कभी कोई जान नहीं पाया.. ना ही परिवार वाले..ना बच्चे और ना ही उनके मित्रगण पर आज..आज उनकी स्थिति ऐसी थी जैसे उनकी सारी दुनिया ही खत्म हो गई हो। 

आज से लगभग 40 वर्ष पहले चंद्रकांत बाबू की शादी अल्हड़ सी किशोरी मालिनी से तय हो गई थी।जहां चंद्रकांत बाबू अभी अपनी पढ़ाई कर रहे थे वहां मालिनी ने सिर्फ दसवीं कक्षा ही पास की थी।अपने इस बेमेल विवाह से चंद्रकांत बाबू ज़्यादा खुश नज़र नहीं आते थे पर पारिवारिक दबाव के कारण शायद चुप्पी लगा गए थे। 

अक्सर वह अपनी पढ़ाई में ही लीन रहते और मालिनी से बहुत कम बात करते.. सिर्फ ज़रूरत भर की पर वहीं मालिनी पूरे घर में इधर-उधर बच्चों की तरह फुदकती रहती।अपनी छोटी ननद और चाचा ससुर के दोनों बेटों के साथ अच्छी जोड़ी जमा ली थी उसने। सास- ससुर और यहां तक की दादी सास के साथ भी उसकी अच्छी पटती थी।दादी सास के घुटनों की मालिश करती उनकी ढेरों दुआएं पाती पर अपने पति के साथ ज़्यादा बोलचाल नहीं था उसका। 

सास सब समझती थी..फिर चंद्रकांत बाबू पढ़ाई पूरी कर पास वाले शहर के कॉलेज में लेक्चरर हो गए।सास उन्हें कभी इकट्ठे सिनेमा देखने भेजती तो मालिनी का हीरो हीरोइन को देखकर रोमांचित हो जाना चंद्रकांत बाबू के मुख पर हंसी ला देता।वो ज़्यादा तो अपनी पत्नी को समझ नहीं पाए पर उसकी चूड़ियों की खनक से उसका गुस्सा.. उसका प्यार सब समझ जाते।

कभी मालिनी बोलती कि पास वाले गांव में मेला लगा है तो उनके मना करने पर अपना गुस्सा अपनी चूड़ियों की खनक से दिखा देती।सारा दिन ज़ोर-ज़ोर से खनकती उसकी चूड़ियां अगले दिन शाम को उनके साथ मेले जाने पर ही शांत होती।तब चंद्रकांत बाबू मन ही मन अपनी पत्नी की सादगी पर रीझ जाते पर प्रत्यक्ष रूप से कभी जता नहीं पाते। 

मालिनी की सास उसे गुस्सा देखकर उसे समझाती,” अरे बहुरिया, गुस्सा मत हुआ कर.. आदमी कह नहीं पाता पर अंदर से अपनी बीवी का साथ हमेशा चाहता है “और मां के समझाते ही मालिनी गुस्सा छोड़ उनके आसपास घूमती रहती।उस समय उसकी चूड़ियों की खनक उनकी तरफ उसके प्यार को दर्शा देती और चंद्रकांत बाबू सब समझ जाते। 

समय की गति के साथ ज़िम्मेदारियां बढ़ती गई और चंद्रकांत बाबू और मालिनी दो बेटों के माता-पिता बन गए।मालिनी का सारा दिन बच्चों और परिवार की ज़िम्मेदारियों में ही बीत जाता पर इस बीच वह अपने पति की हर ज़रूरत का पूरा ध्यान रखती।मज़ाल है कभी उन्हें किसी चीज़ के लिए फिक्रमंद होना पड़े। 

परिवार वाले भी कहते,” अनोखा प्यार है इन दोनों का ना तो आपस में ज़्यादा बातचीत करते हैं पर फिर भी पूरी तरह से एक दूसरे को समर्पित हैं “और यही बातें मालिनी के चेहरे पर लालिमा ले आती। 

समय के साथ मालिनी सास बन चुकी थी पर अभी भी 

चूड़ियों का उसका शौक खत्म नहीं हुआ था।चंद्रकांत बाबू अब एक किताब लिख रहे थे।मालिनी ने दोनों हाथों में सिर्फ दो-दो चूड़ियां पहनी थी।उनके पूछने पर वह बोली,” इनकी खनक से आपका ध्यान बंटेगा इसलिए चूड़ियां कम कर दी हैं “।

“नहीं.. ऐसा मत करो इनकी खनक से तुम्हारे होने का एहसास रहता है और मैं सुकून से लिख पाता हूं” उनके ऐसा कहने पर मालिनी ने झट से अपनी दोनों कलाइयों में चूड़ियां भर ली थी पर अचानक एक दिन मालिनी मंदिर से आते ही घबराहट महसूस करने लगी और कुछ ही देर बाद देखते देखते गहरी नींद में सो गई।पूरे परिवार के लिए यह बहुत दुखदाई घड़ी थी।चंद्रकांत बाबू की हालत किसी से छुपी नहीं थी।उन्हें लग रहा था जब साथी की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है उस समय वह उन्हें छोड़कर चली गई है। 

संध्या के समय दिया जलाकर वह अपने कमरे में आए और अपनी आराम कुर्सी पर निढाल हो गए।तभी मालिनी की तस्वीर के सामने रखी चूड़ियां खनक उठी.. जैसे कह रही हों,” मैं अभी भी तुम्हारे आसपास हूं.. कहीं नहीं गई..कैसे जा सकती हूं..तुम्हारा ही तो हिस्सा थी..तुम्हें छोड़कर कहां जाऊंगी.. तुम मुझे हर पल अपने पास महसूस कर सकते हो”। 

चंद्रकांत बाबू की आंखों से आंसू बह कर गालों पर आ गए और मालिनी की चूड़ियां एक बार फिर से खनक उठी।

#स्वरचितएवंमौलिक

गीतू महाजन, 

नई दिल्ली।

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