“अम्मा, मैं जा रही हूं पीछे से खाना खा लेना। मेरी चिंता मत करना मैं दोपहर में समय से आ जाऊंगी।” सुधा ने अम्मा से कहा
“बिटिया, तुमने नाश्ता कर लिया?” अम्मा ने विद्यालय जाती सुधा से पूछा
“अम्मा, इंटरवल में कैंटीन से कुछ मंगा लूंगी। अभी देर हो जाएगी फिर प्रिंसिपल सर की डांट से कोई बचा नहीं पाएगा।” सुधा ने स्कूटी की चाभी उठाकर अम्मा के चरण स्पर्श किए
“ठीक है बिटिया लेकिन खा जरूर लेना।” अम्मा ने आशीर्वाद का हाथ सिर पर रखा
सुधा की स्कूटी की आवाज़ दूर तक जाते हुए अम्मा को सुनाई पड़ी।
अम्मा ऑ॑खें बंद करके कहीं खो गईं…
दो साल पहले इस घर में कितनी चहल पहल हुआ करती थी परन्तु फिर वो स्याही काली सुबह आई जो उनके जीवन में घना काला अंधेरा ले आई।
जाने कब ज़िन्दगी में कौन सा मोड़ आ जाए ये कोई नहीं जानता…देखते देखते पर भर में ज़िन्दगी बदल जाती है… ज़िन्दगी के क्या क्या रूप देखने बाकी हैं किसे पता!
वो काली सुबह…
“सोहन बेटा, चलो वरना हम पांच बजे वाली बस मिस कर देंगे।” रमाशंकर जी ने बेटे से कहा
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“आया पिताजी।” सोहन ने एडमिट कार्ड रखते हुए कहा
“बेटा, खूब बढ़िया से पेपर करना।” अम्मा ने दही शक्कर खिलाते हुए आशीर्वाद दिया
“चलो बेटा, रिक्शा आ गया है।”
“चलता हूॅ॑ अम्मा। दीदी मैं जा रहा हूॅ॑।”
“सोहन ऑल द बेस्ट फोर योर एंट्रेंस एग्जाम! ध्यान से और एकाग्र होकर पेपर साल्व करना, हड़बड़ी मत करना लेकिन समय सीमा का ख्याल जरूर रखना।” सुधा ने छोटे भाई से कहा जो इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम देने जा रहा है
सोहन ने इसी वर्ष बारहवीं की परीक्षा दी है और अब वह पिताजी के साथ एंट्रेंस एग्जाम देने एक घंटे की दूरी पर स्थित दूसरे शहर गया है।
सुधा ने इसी वर्ष बीएड पूरा किया है उसने एम एस सी रसायन विज्ञान से किया है और उसी शहर के सरकारी इंटर कॉलेज में रसायन विज्ञान की प्रवक्ता के पद पर नियुक्ति हो गई है।
उस दिन वो बस चली तो अपने निर्धारित समय पर कभी अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पाई…
सुधा अन्य दिनों की भांति विद्यालय पहुंची तो प्रिंसिपल से लेकर सभी अध्यापक व अध्यापिकाओं की जुबान पर एक ही बात थी। विद्यालय में आज का अवकाश घोषित हो गया था, सभी विद्यार्थियों को वापस जाते देख सुधा ने साथी अध्यापक मनोज से पूछा,” क्या हुआ ऐसे कैसे छुट्टी हो गई आज? आप सभी लोग दुखी क्यों लग रहें हैं?”
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” सुधा मैडम , शायद आपको मालूम नहीं है आज के दर्दनाक हादसे के बारे मे! “
“क्या हुआ मनोज सर?” सुधा का दिल घबरा गया
“सुधा मैडम, आज सुबह पांच बजे मानपुर जाने वाली बस पर आतंकवादी हमला हो गया और उन्होंने बस में मौजूद सभी यात्रियों को भून डाला। बस में बहुत से बच्चे अपने माता- पिता के साथ इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम देने जा रहे थे। कोई नहीं बचा, आतंकवादी संगठन ने जिम्मेदारी लें ली है कि इसी तरह देश के नौनिहालों को मारते रहेंगे यदि उनकी मांगे ना मानी गई। कुछ आतंकवादियों को जो जेल में कैद हैं उनको छुड़ाए जाने में नाकाम रहने पर यह मारकाट गुस्से में अंजाम दी है ताकी लोगों में दहशत फैला सके।”
“अरे! सुधा मैडम क्या हुआ आपको?” सुधा को चक्कर खाते जमीन पर गिरते देख साथ की सुशीला मैडम ने उसे सम्भाल कर बेंच पर बैठाया। पानी छिड़क कर होश में लाई परंतु सुधा,”पिताजी सोहन…” कहकर पुन: बेहोश हो गई
वो सुबह बहुत भारी पड़ी सुधा और अम्मा पर , रमाशंकर जी और सोहन भी उन्हीं लोगों में से एक थे जो उस बस में बैठे थे। बस में कपड़े पहचान कर सभी अपने अपनों को अंतिम यात्रा के लिए घर और फिर वहां से श्मशान ले गए। उस दिन एक साथ जाने कितनी चिताएं जली थीं जाने कितने लोगों ने अपनों को खोया था…सुधा ही जानती है उसने कैसे दिल कड़ा कर अम्मा को सम्हाला था।
सुधा की अम्मा उस पल में ही मानो कितनी बुढ़ा गईं। महीनों तक सुधा ने छोटे बच्चे की तरह अम्मा को अपने हाथ से खाना खिलाया। बरसी के वक्त ऐसा लगा अम्मा का भी साथ ना छूट जाए।
सुधा रात रातभर ऑ॑सू बहाती थी परन्तु अम्मा के सामने अपने को कमजोर नहीं दिखाती। ऐसे ही पिताजी और सोहन को गए दो साल हो चुके हैं। अम्मा अब कभी कभी चिंता जताती हैं, सुधा से कहती हैं कि अब तुम और मनोज विवाह कर लो जिस पर सुधा हूं-हां करके टाल देती।
सुधा और मनोज की शादी रमाशंकर जी के सामने तय हो चुकी थी। मनोज रमाशंकर जी के मित्र मोहनलाल जी का सुपुत्र है। मोहनलाल जी की पत्नी माला जी भी सरकारी नौकरी में दोनों के साथ होने से बेहद खुश थीं।
रमाशंकर जी और सोहन की अकस्मात मृत्यु हो जाने पर मोहनलाल जी बहुत व्यथित हुए। दो चार बार सपरिवार आए भी फिर आना कम होता गया। मनोज सुधा विद्यालय में रोजाना मिलते हैं। मनोज काफी समझदार है जानता है पिता और भाई को अचानक खोने के बाद सुधा का हाल बुरा है। वह सुधा को हौंसला देता रहता है कि मैं हूॅ॑ ना तुम्हारे साथ…
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सोचते सोचते अम्मा सो गई। नौ बजे शांताबाई के बेल बजाने से नींद खुली तो दरवाजा खोला।
शांताबाई ने आकर बर्तन मांजने के बाद झाड़ू पोंछा किया। अम्मा और सुधा के वाशिंग मशीन में धुले कपड़े फैलाकर अम्मा को चाय नाश्ता कराया। इसके बाद चाय पानी के बर्तन मांजकर , दाल सब्जी बनाकर और चावल भिगोकर शांताबाई चली गई।
दोपहर दो बजे सुधा के आने तक शांताबाई बाकी घरों का काम कर रोटी सेंकने आ गई। अम्मा ने इस बीच भीगे चावलों को बना लिया था।
दोनों को खाना खिलाकर शांताबाई बर्तन करके अपने घर चली गई। शाम को सुधा खाना बना लेती है।
अगले दिन सुधा विद्यालय से कुछ देर से आई तो कुछ अनमनी परेशान थी। खाना खाने के बाद अम्मा ने उसकी परेशानी का कारण पूछा तो पहले तो उसने टालमटोल किया पर फिर अम्मा के बहुत जोर देने पर उसने बताया “अम्मा, आज मनोज की माताजी माला जी विद्यालय आईं थीं।”
“अरे बिटिया तुम उन्हें घर ले आती।”
“अम्मा, आज वो शादी के लिए कह रहीं थीं तो मैंने कहा आपसे बात कर लीजिए।”
“ठीक किया बेटी तो कब आ रही हैं बहनजी?”
“अम्मा, वो बोली कि शादी के लिए उनकी दो शर्तें हैं पहली वो ये चाहती हैं कि शादी के बाद मैं अपनी पूरी तनख्वाह उन्हें दूं और दूसरी शर्त ज्यादा मायके का मोह ना रखूं। एक शहर में रहने का मतलब ये नहीं कि मैं आपसे हर दिन मिलूं।
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मैंने बोल दिया कि रोजाना मिलने की बात तो होगी ही नहीं क्योंकि मेरी अम्मा को शादी के बाद मैं अपने साथ ही रखूंगी और जहां तक बात है तनख्वाह की तो मैं अपनी अम्मा का ख्याल उसी से रखूंगी बस अम्मा मेरी यह बात उनको इतनी बुरी लगी कि वो गुस्से में रिश्ता तोड़ने की बात करने लगी और आपको बेटी का पैसे पर पलने का आरोप लगाने लगी।”
“बिटिया,ये क्या कर दिया तुमने? हमारी चिंता छोड़ो तुम समधन जी से माफी मांग लो। तुम्हारे पिताजी का कुछ फंड है जिससे हम तुम्हारी शादी कर देंगे और हमारा क्या है चार दिन की ज़िंदगी है गुजर जाएगी बचे पैसों से।” अम्मा बेचारगी से बोली
“अम्मा, ये नहीं हो सकता, आप मेरे साथ ही शादी के बाद रहेंगी। मनोज से मैं बात कर चुकी हूॅ॑ वह जानते हैं कि मैं क्या चाहती हूॅ॑।
थोड़ा रुककर सुधा ने दृढ़तापूर्वक आगे कहा,”अम्मा, यदि वह अपनी माताजी को मना पाते हैं तो ठीक है नहीं तो शादी ही मेरी आखिरी मंज़िल नहीं है! मेरी चाहत आपका ख्याल रखना है अम्मा, आपको अपने साथ रखना है।
जब मनोज अपने माता-पिता का ध्यान रख सकते हैं, अपने माता-पिता को साथ रख सकते हैं तो मैं क्यों नहीं? और मैंने कहा है कि मैं सबको साथ लेकर चलूंगी मनोज के माता-पिता को मुझसे कभी कोई शिक़ायत नहीं होगी परंतु मैं अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हट सकती हूॅ॑।”
“बिटिया, ये बात वो मानेंगे मुझे संदेह है तुम हमारी चिंता ना करो। ज़िंदगी में यूं कभी धूप तो कभी छाॅ॑व आता रहता है, तुम परेशान ना हों और हमारी फिक्र करना छोड़ दो।हमारी उम्र ही कितनी बची है बिटिया अब!”अम्मा ने अपनी चिर स्वाभिमानी बिटिया को पुनः समझना चाहा
“आंटी जी , क्यों नहीं मानेंगे हम लोग भला सुधा की बस इतनी ही तो चाह है कि वो आपकी देखभाल करे और आप भी साथ रहें।” तभी मनोज ने घर में प्रवेश करते हुए कहा
साथ में मनोज के माता जी-पिता जी भी आए थे जिन्हें देखकर अम्मा ने आगे बढ़कर अभिवादन किया।
“ऐसे नहीं समधन जी, गले मिलो हमसे। मिठाई खाइए जल्दी ही इन दोनों की शादी कर देते हैं और उसके बाद हम और आप एक घर में समधन से ज्यादा सहेली बनकर रहेंगी।” मालाजी ने अम्मा को गले लगा लिया।
सुधा से मुखातिब होकर बोली,” सुधा बेटी, लड़के वाले के झूठे अहम् का चोगा उतार दिया मैंने। मनोज और मनोज के पिताजी ने मुझे समझाया कि तुम्हारी बात सही है। भाभी जी हमारे साथ ही रहेंगी। सुधा, अब तो मेरी बहू बनोगी? मैं तुम्हारा और समधन जी का बेसब्री से इंतज़ार कर रही हूॅ॑।”
अम्मा ने इशारा किया सुधा ने मनोज के माता पिता के पैर छू लिए। माला जी ने सुधा को गले लगा लिया।
अम्मा की ऑ॑खें बिटिया के सुखद भविष्य की खुशी में भर आईं, सुधा अम्मा से ” अम्मा, अब रोएंगे नहीं हम लोग।”
“बिटिया बहुत दिनों बाद खुशी से ऑ॑खें भर आईं हैं, इन्हें ना रोको।”
सुधा माॅ॑ के पैर छूकर उनकी बाहों में सिमट गई।
दोस्तों, ज़िंदगी की धूप छाॅ॑व का सामना करती सुधा अपनी बात पर अडिग रही, हिली नहीं तो उसकी बात को तवज्जो मिली, उसकी इच्छा मान ली गई। बेटी का फर्ज़ निभाने चली सुधा से आप कितना सहमत हैं? आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा। आप अपनी राय कमेंट सेक्शन में साझा कीजिएगा और यदि ब्लाॅग पसंद आया है तो कृपया लाइक और शेयर कीजिएगा।
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धन्यवाद।
-प्रियंका सक्सेना
(मौलिक व स्वरचित)
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