छुईमुई सी लड़की – डॉ. पारुल अग्रवाल : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: आज निवेदिता की सेना की ट्रेनिंग पूरी हो गई थी। आज पासिंग आउट परेड के बाद वो सेना में लेफ्टिनेंट बन जायेगी और देश के लिए अपने फर्ज़ निभायेगी। आज का दिन उसके लिए सपने जैसा था। पासिंग आउट परेड के पूरा होते-होते शाम हो गई। इस परेड का हिस्सा बनने के लिए निवेदिता के मम्मी-पापा भी आए थे।उनका भी सर आज निवेदिता ने ऊंचा कर दिया था। परेड के बाद अपने ट्रेनिंग के साथियों के साथ फोटो खिंचवाने और उनके घरवालों से मिलने में काफ़ी वक्त बीत गया। मम्मी-पापा भी काफ़ी थक गए थे। रात के खाने के बाद वो सोने के लिए चले गए। 

निवेदिता भी अपने कमरे में आ गई क्योंकि उसको भी अपना समान पैक करना था।आज के बाद उसकी पंद्रह दिन की छुट्टी हैं इसलिए वो भी मम्मी- पापा के साथ घर जायेगी। फिर वहां से निकल पड़ेगी अपनी कर्मभूमि पर देश सेवा के लिए। अपने कमरे में पहुंचकर उसने अपना सारा सामान तो  बैग में रख लिया पर अपने विभोर की वर्दी को अभी बाहर ही रहने दिया।

विभोर जो कि उसका सहचर,दोस्त,पति और प्रेरणा सब कुछ था। अब ये समय वो अपने विभोर के साथ उसकी यादों में बिताना चाहती थी। विभोर की वर्दी को सीने से लगाते हुए उसने रूंधे हुए शब्दों में कहा,देखो विभु तुम्हारी छुईमुई कितनी मजबूत हो गई है। आज मैंने तुम्हारी अंतिम यात्रा के समय जो प्रण किया था वो पूरा कर दिखाया।

ये कहते-कहते वो विभोर जिसको वो प्यार से विभु कहती थी,के साथ बिताए हुए अपने स्वर्णिम पलों की यादों में खो गई। विभोर से उसकी पहली मुलाकात सबसे खास सहेली के भाई की शादी में हुई थी। सहेली का भाई और विभोर पक्के मित्र थे। उस समय निवेदिता एमबीए करके एक कंपनी में जॉब कर रही थी।

पक्की सहेली के भाई की शादी में वो बिल्कुल घर के सदस्य की तरह सारे काम कर रही थी। दूसरी तरफ विभोर भी पूरी मस्ती में था।वो अपनी सेना की नौकरी से थोड़े दिन की छुट्टी लेकर अपने दोस्त की शादी में आया था। जहां निवेदिता बहुत ही नाज़ुक सी लड़की थी वहीं विभोर लंबा-चौड़ा बांका जवान था। निवेदिता से परिचय होने के बाद तो विभोर उसकी मासूम सी चितवन में कहीं खो ही गया था।

शादी तो उसके दोस्त की थी पर निवेदिता से मिलने के बाद विभोर ने उसके साथ वक्त गुजारने का एक भी मौका नहीं छोड़ा था। निवेदिता ने पहले-पहले तो विभोर से पीछा छुड़वाने की कोशिश भी की पर विभोर ने जब उसकी सहेली के द्वारा ये संदेश भिजवाया कि वो एक फौजी हूं देश के साथ-साथ दिल की भी हिफाज़त करना जानता है तब वो भी मुस्कराए बिना नहीं रह सकी।

अब तो निवेदिता से हल्की सी हरी झंडी मिलते ही विभोर पूरी शिद्दत से उसे अपना बनाने की कवायत में जुट गया। शादी से पहले दिन संगीत का कार्यक्रम था। विभोर तो वैसे भी कॉलेज के दिनों से ही महफ़िल की शान बढ़ाने के लिए जाना जाता था और आज तो बात वैसे भी उसके खुद के प्यार की थी।

आज उसके सारे नगमें केवल और केवल निवेदिता के लिए थे। संगीत के कार्यक्रम के आखिर में उसने माइक पर कहा कि आज उसको अपना दूसरा और आखिरी प्यार मिल गया है क्योंकि  फौजी हूं इसलिए पहला प्यार तो  उसका वतन है,ये कहकर वो निवेदिता के पास आया और घुटने के बल बैठकर बोला कि अगर तुम्हारी अनुमति हो तो,मैं इस छुईमुई सी लड़की के साथ सात फेरे लेना चाहता हूं। 

निवेदिता की आंखें तो शर्म से झुक गई थी पर जब उसने थोड़ा चहेरा उठाकर विभोर की तरफ देखा तो उसकी आंखों में उसे सिर्फ प्यार और ईमानदारी का उमड़ता सागर ही दिखाई दिया। उसकी आंखों की कशिश में वो भी डूबकर रह गई। वैसे भी उसने कहीं पढ़ा था कि जिसका महबूब वतन हो वो आशिकी भी पूरे दिल से निभाता है।

बस फिर क्या था, निवेदिता ने भी बिना एक पल गवाएं अपने और उसके रिश्ते पर स्वीकृति की मोहर लगा दी। पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। विभोर के दोस्त ने भी उन दोनों की ये कहकर कि शादी मेरी कराने आया था पर लगे हाथ अपनी भी शहनाई बजवाने की तैयारी कर ली बहुत चुटकी ली। 

निवेदिता को तो सब कुछ जैसे परियों की दुनिया के जैसा खूबसूरत लग रहा था। विभोर ने अपने माता-पिता को निवेदिता के बारे में सब कुछ बताया और उनको उसके माता-पिता से मिलने के लिए कहा। विभोर के माता पिता तो वैसे भी कब से इस दिन के इंतज़ार में थे आखिर उनके इकलौते बेटे को बड़ी मुश्किल से कोई लड़की पसंद आईं थी।

दोनों के माता-पिता मिले और दो महीने के अंदर विभोर और निवेदिता शादी के बंधन में बंध गए। सब कुछ बहुत ही जल्दी और खूबसूरती से हो रहा था। विभोर और निवेदिता की शादी के दस महीने बिल्कुल परियों की कथा की तरह बीत गए। विभोर अपनी सेना की पोस्टिंग पर और निवेदिता अपनी जॉब में व्यस्त थी।

दोनों को इंतज़ार था अपनी शादी के एक वर्ष पूरा होने का। विभोर ने निवेदिता से वायदा भी किया था कि वो शादी की पहली वर्षगांठ पर उसके साथ होगा पर भविष्य की गर्त में क्या छुपा है उससे हम सभी ही अनजान होते हैं।जहां निवेदिता अपनी पहली वर्षगांठ के सपने संजोए थी वहीं अचानक से टीवी पर मेजर विभोर के आतंकवादियों से टक्कर लेते हुए शहीद होने की खबर आती है। 

निवेदिता की तो जैसे एक ही पल में दुनिया छिन जाती है। एक बार को तो वो फूट-फूट कर रो पड़ती है पर फिर उसे अपने विभु के वो शब्द याद आते हैं जिसमें उसने कहा था कि तुम दिखने में छुईमुई सी हो सकती हो पर दिल से तुम्हें मजबूत बनना होगा। तुम एक फौजी की पत्नि हो कल को चाहे कुछ भी हो जाए पर तुम अपने आँसू पर नियंत्रण करोगी।

ये याद आते ही निवेदिता ने अपने आँसू पोंछ डाले और दिल पर पत्थर रखकर अपनी ससुराल रवाना हो गई। जहां उसके विभोर का शरीर अंतिम दर्शन के लिए आने वाला था। ससुराल पहुंचकर दिल पर पत्थर रखकर वो अपने सास-ससुर और ननद को भी संभाल रही थी। विभोर के पिताजी भी सेना से ही सेवानिवृत हुए थे। वो एक फौजी का फ़र्ज़ अच्छे से समझते थे।

जब विभोर का शरीर अपने घर पहुंचा तो पूरा शहर जयहिंद की जयकार से गूंज उठा। विभोर के अंतिम दर्शन पर निवेदिता ने उसके चहेरे पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा कि तुम तो हमेशा कहते थे कि सबसे ज्यादा प्यार मुझे करते हो पर तुम सबसे ज्यादा प्यार अपने देश से करते थे।

देश और भारत माता ही तुम्हारा पहला प्यार है पर अब तुम्हारे पहले प्यार के लिए जो तुम्हारे सपने अधूरे रह गए उनको मैं पूरा करूंगी। ये कहकर उसने अपने आंसुओं को तो समेट लिया पर आसमां शायद अपने आँसू ना रोक पाया। बरसते मेघों के बीच मां भारती के वीर सपूत को विदा किया गया। 

उस दिन के बाद निवेदिता की तो दुनिया ही बदल गई,वो बहुत जल्द अपने काम पर लौट आई। वापिस आकर उसने अपने आपको सेना में जाने की तैयारी में झोंक दिया। परीक्षा पास की और पूरे दस महीने की ट्रेनिंग के बाद आज विभोर को किया हुआ अपना वायदा पूरा किया।

वो ये सब सोच ही रही थी कि उसका मोबाइल की घंटी बजी। उसकी सास मतलब विभोर की माताजी का फोन था जो किसी कारणवश पासिंग आउट परेड में तो नहीं आ पाई थी पर वीडियो कॉल के द्वारा उन्होंने सारी परेड देखी थी। उन्होंने निवेदिता को बहुत सारा आर्शीवाद देते हुए कहा कि आज उसके रूप में उनका विभोर वापिस आ गया है।

विभोर के जाने के दो साल बाद आज निवेदिता के दिल को थोड़ा सुकून मिला था। आँसू को अपने दिल के कोने में दफन कर वो अपनी जिंदगी देश के नाम कर चुकी थी।विभोर का पहला प्यार अब निवेदिता का आखिरी प्यार बन चुका था।

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी? अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। नियति ने हमारे लिए क्या सोच रखा है ये कोई नहीं जानता। एक छुईमुई सी लड़की अपने पति को दिए वचन को निभाने के लिए अपने आंसुओं को समेटकर शक्ति का अवतार बन गई। निवेदिता की विभोर संग प्रेम कहानी वास्तव में नई पीढ़ी के लिए अनुकरणीय है।

नोट: उपरोक्त कहानी पुलवामा अटैक में वीरगति को प्राप्त हुए मेजर विभूति मिश्रा और उनकी पत्नि निकिता कौल से प्रेरित है कहानी को काल्पनिक रूप देने के लिए पात्रों के नाम,जगह और विषयवस्तु में यथासंभव परिवर्तन किए हैं।

#आँसू 

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

 

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