छोटी बहन – उमा वर्मा

यह कहानी मेरी  अपनी छोटी बहन को समर्पित है जो पाँच मई को गुजर गयी । मैं उसकी दीदी उसे श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ ।” बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर सुबह सुबह नहा धो कर तैयार हो गई ।मन में था थोड़ा हवन कर लूँ ।बस सारी तैयारी शुरू कर दिया ।बच्चे आफिस जा चुके थे ।घर में अकेले रहने से कोई दिक्कत नहीं हुई ।सब कुछ आसान तरीके से हो गया ।हवन पूजा के बाद नाशता किया ।पर अचानक न जाने मन क्यो  उचाट हो गया ।किसी काम में मन ही नहीं लग रहा था ।थोड़ी बहुत पढ़ाई करती रही ।

जब मन उदास होता तो मै किताबें पढ़ने  लगती ।इससे मन शान्त हो जाता ।पर उस दिन  बहुत बेचैनी सी लगने लगी थी ।फिर मै सो गयी ।शाम को  छः बजे फोन बजने लगा ” हलो,मौसी, मम्मी नहीं रही ” फोन उसके देवर की बेटी का था ।” कौन मम्मी?” क्या हुआ? मेरे लगातार सवाल से वह रोने लगी ।” बड़ी मम्मी ” उसने कहा ।फिर हमारे होश गुम हो गये ।मेरी छोटी बहन की जाने की सूचना दी थी उसने ।मुझसे दस वर्ष छोटी थी वह ।मै बीते हुए कल में चली गई थी ।आठ भाई बहन में मै सब से बड़ी, वह बीच में, और सबसे छोटा भाई ।और माँ, पापा ।बस यही हमारा परिवार था ।कहने को तो बहुत सारे लोग थे परिवार में ।लेकिन खास इतना ही ।बीच के भाई बहन न जाने कैसे और क्यों चले गये ।बहुत छोटी होने के कारण मेरा सारा प्यार, दुलार उसी को मिलता ।भाई का तब जन्म नहीं हुआ था ।मैं ही उसे नहलाती, धुलाती, तैयार करती, खिलाती और सुलाती भी अपने साथ ।




मेरे लिए वह खास थी।अम्मा भी निश्चिन्त हो जाती ।फिर समय पर मेरी शादी हो गई और मैं अपनी घर गृहस्थी संभालती रही ।बीच बीच में आना जाना लगा रहता ।मेरा अपना परिवार बढ़ गया था तो समय कम ही मिल पाता ।पिता का प्यार हमें  भरपूर मिला था ।बड़े हसमुख, मिलनसार और हल्के फुल्के मन वाले थे पापा ।मैं जब भी उनके पास जाती तो बच्चा बन जाती।हालांकि मैं खुद दो बच्चों की माँ भी बन गई थी ।लेकिन उससे क्या ।पापा हमारे साथ छुपा छुपी खेलने लग जाते ।

उनका बचपना देख कर हम खूब हंसते।” हंस लो, हंस लो, जब मै नहीं रहूँगा तो याद करोगे तुम सब ” पापा कहते तो उनके बातों को हम हंसी में उड़ा देते ।और फिर अचानक चाचा जी की चिठ्ठी आई ” तुम्हारे पापा नहीं रहे ” तब फोन का जमाना नहीं था ।और तब मै ऐसा बेहोश हो गई कि उनके अंतिम संस्कार में नहीं जा पाई।आज सोचती हूँ पापा से इतना लगाव था तो क्यो नही गई?

 मेरे हर पल में  पापा थे।पापा ही मुझे बचपन में नहलाते, अपने साथ खिलाते रात में पैरों पर तेल मालिश कर देते ।अम्मा जब जोर जोर से कंघी करने लगती और दर्द से मै रोने लगती तो पापा ही कंघी करने लगते।और पापा नहीं रहे ।मेरे आँसुओ का अंत नहीं था ।फिर सब कुछ खत्म हो गया तो माँ  हमारे पास आ गयी ।अम्मा ने कहा किसी के आगे हाथ नहीं पसारने है ।मेहनत और मजदूरी कर लेंगे ।अम्मा की नौकरी लगवा दी थी ।भाई बहन के देख रेख का जिम्मा मेरे उपर आ गया ।




अम्मा भी तो निश्चिंत रहती थी ।समय बीतता गया ।सबकी शिक्षा पूरी हुई ।बहन की  शादी तय हो गयी ।अच्छे घर का  ,वर मिल गया ।शादी की धूम धाम चल रही थी ।लाउडस्पीकर पर गाना बज रहा था ।” लाली लाली डोलिया में लाली रे दुलहनिया, पिया की प्यारी भोली भाली रे दुलहनिया—-” मेरी बहन दुलहनिया बनकर विदा हो गई ।

अम्मा ने औकात भर सब कुछ ठीक दिया ।पर शिकायत का अंत नहीं था ।परिवार बड़ा था ।अम्मा पलंग नहीं दे पायी तो जमीन में बिस्तर मिला ।घर से बाहर निकलने की मनाही हो गई ।मायके में आना जाना कम हो गया ।वह बहुत सीधी सादी थी ।चुप हो जाती ।फिर देवर की शादी हो गई ।और उसके पाँच बच्चे ।बहन के तो बाल बच्चे नहीं थे।सभी की जिम्मेदारी इसी के उपर ।” 

आपको तो बाल बच्चे हुए ही नहीं तो मेरे बच्चों को देखिये ” सबको पढ़ाना लिखाना,खाना खर्च, शादी ब्याह सबकुछ निबटाया ।जिन्दगी आगे बढ़ने लगी ।सुधा, यही नाम था मेरी बहन का।बिलकुल सीधी सादी ।कभी किसी चीज की फ़रमाइश नहीं, शिकवा शिकायत नहीं ।अगर कोई कह भी देता ” सुधा, कभी अपने लिए भी तो सोचना चाहिए ” पति इतने कमाते हैं कभी कोई जेवर ही बनवा लेती,कभी अच्छा कपड़े ही खरीद लेती “।” छोड़ो न,तुम लोग क्या  बेकार की बात करती हो”। 




न जाने किस मिट्टी की बनी थी वह ।एक दम शान्त, सहनशीलता की मूर्ति थी वह ।परिवार में कभी कभी मन मुटाव चलता ।फिर भी वह शान्त बनी रहती ।उससे छोटे सदस्य दस बात सुना देते ।इसे निपूती का खिताब मिला था ।और बाल बच्चे वाली अभिमान में रहने लगी ।” इनको तो अपना बच्चा नहीं है तो कोई शुभ कार्य भी नहीं कर सकती” मायके के अपने लोग सिखाते ” तुम कुछ कहती क्यों नहीं?” जाने दो ना? किसी बात को इतना तूल नहीं दिया जाता है ”  

कभी कभी बहुत बात बढ़ती तो सब भगवान से प्रार्थना करते ” सुधा ही पहले चली जायेगी तो ठीक था ” किस बात का इतना अभिमान? क्या  सिर्फ बच्चों के होने से ही जीवन की सार्थकता है? अगर पति को कुछ हो जाता है तो इसे कौन पूछता? नहीं ,नहीं, ईश्वर ही न्याय करेंगे ।

और आज ईश्वर ने प्रार्थना सुन ली थी ।वह चली गयी ।चुपके से ।ऐसा हमने क्यों चाहा? वह मेरी छोटी बहन थी ।खबर मिलते ही तो भाई भाभी दौड़ कर गए ।कितनी शान्ति थी चेहरे पर ।वीडियो पर दिखा।परम धाम यात्रा में परम शान्ति मिले उसे यही ईश्वर से मेरी प्रार्थना है ।उसकी याद नहीं भूलती।उसकी सादगी पर हमने उसका नाम गौतम बुद्ध रखा था ।अभी कुछ महीने पहले बेटी के जाने का दर्द सहा  अब बहन चली गयी ।ईश्वर ने ऐसी सजा मुझे क्यों दिया? कयों? भगवान से मै पूछना चाहती हूँ ।” मेरी कहानी शायद अच्छी न लगे, लेकिन यह मेरे मन की भावना है ” क्षमा चाहूंगी पाठकों से ।

#अभिमान 

उमा वर्मा, नोएडा ।स्वरचित, और अप्रकाशित ।

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