छलका सब्र का प्याला – डॉ संगीता अग्रवाल: Moral stories in hindi

मोहित की लव मैरिज हुई थी प्रिया के साथ,संग ही काम करते थे,फिदा हो गया था मोहित प्रिया की खूबसूरती पर।थोड़ी नखरीली जरूर थी लेकिन मोहित को लगता था कि वो दिल की अच्छी है,जल्दी ही उनके घर में एडजस्ट हो जायेगी।

घर में ले दे कर एक मां ही तो थीं मोहित के,और मोहित उनको बहुत प्यार और सम्मान करता था।हालांकि मोहित की मां को प्रिया,पहली नजर में थोड़ी तेज लगी थी पर बेटे की पसंद पर उन्हें भरोसा था।उन्होंने दिल खोल कर आशीर्वाद दिया और उसे स्वीकार कर लिया।

प्रिया को हमेशा ही वो उन दोनो के नए नए वैवाहिक जीवन में  कबाब में हड्डी बनी ही दिखती थीं पर मोहित का उनके प्रति इतना प्यार देखकर वो चुप रहती।उसे तलाश थी किसी मौके की जब वो उन्हें मोहित की नजरों में गिरा सके।

चक्कर ये भी था कि मोहित के सामने वो भली बनी रहती और उसके पीछे सासू मां को खरी खोटी सुनाने से न चूकती।

मोहित की मां वैष्णवी जी उसकी हरकतें ईसमझती,उन्हें नागवार भी गुजरती थीं वो बातें पर वो कोई बखेड़ा खड़ा करना नहीं चाहती थी,उन्हें लगता,जब मैं इसे रिएक्ट नहीं करूंगी,इसका दिल अपने आप मुझसे वैर निकालते थक जाएगा और ये बदल जायेगी।

फिलहाल मोहित मां की पूरी इज्जत करता और मां उससे संतुष्ट थीं।

उस दिन,प्रिया की तबियत खराब थी ,वो ऑफिस से छुट्टी पर थी,शाम को मोहित घर आया तो सीधे मां के कमरे में चला गया और उनसे,उनका हालचाल पूछने लगा।

प्रिया को जब ये आभास हुआ कि मोहित आते ही मां के पास चला गया,उसके पास नहीं आया जबकि उसे बुखार भी है,वो झल्ला उठी और अचानक अपने कमरे से बाहर निकल कर अजीब अजीब आवाजे निकालने लगी।

मोहित और उसकी मां झटपट कमरे से बाहर आए।

क्या हुआ प्रिया?मोहित ने दौड़ के उसे अपनी बाहों में लिया,उसे तेज बुखार था,वो बडबडा रही थी…मैं अपने पापा के पास चली जाऊंगी,वो आ रहे हैं मुझे लेने…पापाजी ! मैं आ रही हूं।

असल में उसके पापा की असामयिक मृत्यु हो चुकी थी और बकौल प्रिया के ,वो उनसे बहुत प्यार करती थी।

मोहित डर गया और प्रिया को कमरे तक लाया,उसे मेडिसिन दी।उस दिन के बाद,वो जब भी ऑफिस से आते,सीधे अपने कमरे में ही चले जाते।

वैष्णवी को लगा था एक बार,ये प्रिया का कोई नाटक था पर वो खामोश रहीं।घर में अशांति नहीं चाहती थीं वो।

लेकिन प्रिया ने अब ये आदत बना ली थी,कोई भी बात उसके मन की न होती वो ऐसे करने लगती जैसे उसके पिता उसे बुला रहे हैं और वो उनके पास जाने को बेचैन हो उठती।

मोहित को भी ये सब बहुत अटपटा लगता,उसे भी लगने लगा था कि ये मुझे,मेरी मां से दूर करना चाहती है।

एक दिन, करवाचौथ के दिन,प्रिया की मां उनके घर आई,उन्होंने आने की कुछ सूचना नहीं दी थी,वो प्रिया के लिए साड़ी और उन सबके लिए कपड़े,फल मिठाई लाई थीं।प्रिया अभी पार्लर गई थी खुद का मेक अप करवाने।

मोहित ने उनसे बातों में पूछा,प्रिया का उसके पापा से कैसा रिश्ता था,क्या वो उनसे बहुत प्यार करती थी?

बेटा!सच कहूं तो उसने अपने  पापा का बहुत दिल दुखाया,उनसे बहुत जबान जोरी की थी तुमसे शादी करने के लिए और शायद उन्हें इतना धक्का लगा कि उन्हें अटैक भी इसी कारण न आया हो।वो दुखी हो गई ये कहते कहते।

मोहित को अचानक प्रिया पर बहुत गुस्सा आया,उसने एक प्लान बनाया और उसकी मां को भी उसमे शामिल कर लिया क्योंकि वो प्रिया को रास्ते पर लाना चाहते थे।

जब प्रिया घर लौटी,उसकी मां,उसके सामने नहीं आई,योजनानुसार।

मोहित ने प्रिया को एक मंहगी सिल्क की साड़ी देते हुए कहा,ये साड़ी आज तुम मां को बायना निकालते दे देना,फल मिठाई,रुपए के साथ।

प्रिया बोली,और मेरी साड़ी कहां है?

लाया तो था पिछले ही हफ्ते…वो इसका गिफ्ट समझ लेना डार्लिंग!

नहीं…मुझे अभी नई चाहिए,प्रिया ने जिद की,सास को दी जाने वाली साड़ी उसकी आंखों में चुभ रही थी।

जल्दी ला दूंगा,इतना लालच ठीक नहीं,पैसे पेड़ों पर नहीं उगते प्रिया,इस महीने बहुत खर्च हो गया।उसने समझाया उसे।

प्रिया,अपनी आदत के मुताबिक फैल गई…पापा!!पापा!मुझे ले जाइए इन जालिमों से बचा के…वो चिल्लाने लगी।

मोहित के सब्र का बांध टूट गया था उस दिन,वो चिल्लाया…अब बंद भी करो ये नाटक!और कितना बेवकूफ बनाओगी हमें?

प्रिया कुछ कहती तभी उसकी मां सामने आ गई।

ये सब क्या हो रहा है प्रिया?उन्होंने कड़क आवाज़ में पूछा,जब वो जिंदा थे,उनसे जुबान लड़ाती रही ,आज वो स्वर्ग में है तब भी चैन से जीने नहीं देगी उन्हें?तू अपनी जिद उनसे प्यार से भी मनवा सकती थी लेकिन नहीं…खबरदार अब दामाद जी और उनकी देवी सी मां को परेशान किया तो।

प्रिया चारों तरफ से घिर चुकी थी,उसने मोहित को देखाजो गुस्से से उसे घूर रहा था,उसकी मां उसे डांट ही रही थीं,फिर उसने अपनी सासू मां से माफी मांगी और वो उसे गले लगाते बोलीं..बेटा!मुझे पराया क्यों समझती है,मैंने अपने दिल का टुकड़ा दिया है तुझे,तुझे अपना न समझती तो क्यों देती,तू मुझे अपना क्यों नहीं मानती?

प्रिया ने मन ही मन निश्चय किया,आज से वो ये सब नाटक बंद कर देगी।

 

 डॉक्टर संगीता अग्रवाल

वैशाली, गाजियाबाद

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