चीख – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

   रुक जा रानी बिटिया….. मत  रो पापा आते ही होंगे…..पापा की गोद में जाना है …..अभी पापा को दिखाती हूं….. कहकर अनुष्का ने फोन लगाया वीडियो कॉल …….

     कितनी देर में पहुंच रहे हैं अविरल…..?  देखो आपकी प्यारी बिटिया रानी आपके लिए रो रही है….. बस 10 मिनट में पहुंचने वाला हूं बेटा….. मम्मी को परेशान कर रही है , अभी आया…… कहकर एक प्यारी सी पप्पी ले लिया था अविरल ने …..और फोन रख दिया…!

    भाभी ….भाभी… जल्दी चलिए हॉस्पिटल जाना है…. हॉस्पिटल….? पर क्यों….?  इसे मम्मी जी के पास छोड़कर……?  बिटिया की ओर इशारा करते हुए अनुष्का ने पूछा ……नहीं भाभी मम्मी भी चलेगी ……पर हुआ क्या….?

   एक्सीडेंट…… एक्सीडेंट …..?

हां भाभी अविरल भैया का एक्सीडेंट हो गया है….!

नहीं……. जोर से चीखी थी अनुष्का…… आप झूठ बोल रहे हैं अर्पण ….. अभी दस मिनट पहले मेरी बात हुई थी अविरल से……. ये कैसा मजाक है….. शर्म नहीं आती अपने भाई के बारे में ऐसा बोलते हुए …..?आगे अनुष्का अपना आपा खोती….. अर्पण ने बड़े धैर्य से कहा…. प्लीज भाभी , जल्दी चलिए …..और छोटी सी बच्ची को खुद ही गोदी में उठा लिया….।

   रोते-धोते सारा परिवार अस्पताल पहुंच गया …..डॉक्टर ऑपरेशन रूप में उपचार कर रहे थे …..काफी देर बाद सबसे पहले अनुष्का को अनुमति मिली अविरल से मिलने की…… अविरल ने अच्छे से बात की ….कुछ महीने अब बिस्तर पर गुजरना पड़ेगा… ऐसा कहा…. उसके बाद मालती जी अपने बेटे को देखने पहुंची ……..मां को देखते ही अविरल के आंसू निकल गए….!

 फिर अचानक सुबह खबर मिली अविरल नहीं रहे….।

    इतने बड़े घर में सिर्फ चीखे ही सुनाई दे रही थी …..उम्रदराज मालती जी खुद को बेबस , लाचार महसूस कर रही थी …..अनुष्का बार-बार बेहोश हो जाती ….जब भी होश आता बस कहती …..नहीं… ये नहीं हो सकता, दस मिनट पहले ही तो मेरी बात हुई थी…. फिर सिर्फ दस मिनट में इतना बड़ा हादसा…?

    दरअसल…. अविरल ऑफिस से लौटते वक्त अपनी गाड़ी की चाबी अपने एक सहकर्मी को पकड़ाते हुए बोले ……ले यार , आज गाड़ी तू चला…. मैं काफी थक गया हूं….और बगल वाली सीट में बैठ गए ….घर पहुंचने ही वाले थे….. तभी सामने से आ रही एक गाड़ी से टक्कर हो गई….. टक्कर इतनी भयानक थी कि चोटे गंभीर लग गई थी…।

   चीखों , चिल्लाहटों  के बीच किसी तरह तेरह दिनों तक रीति-रिवाज के मध्य क्रिया कर्म किए गए ……धीरे-धीरे मेहमान भी जाने लगे ….सब कुछ सामान्य हो रहा था… वही घर , वही दरवाजा ….सब कुछ वही …..बस कमी थी तो अविरल की……. उस दूधमुंहे बच्ची का क्या कसूर….. जिसे अपने बाप की शक्ल भी याद नहीं रहेगी …..।

       ना चाहते हुए भी… शाम को दफ्तर से लौटने के वक्त मालती की नजर दरवाजे पर टिक ही जाती थी…. हालांकि उन्हें पता था अब उस दरवाजे से अविरल कभी अंदर नहीं आएगा…..

    अनुष्का बिटिया की देखरेख में व्यस्त रहना तो चाहती थी पर व्यस्त रह नहीं पाती थी….. ना जाने क्यों , बार-बार मोबाइल उठाती….. व्हाट्सएप पर अविरल के प्यार भरे मैसेजेस पढ़ती…. मैसेज पढ़कर होठों पर मुस्कान , आंखों में आंसू रहते …… मालती जी बहू के इस रूप को देखकर विह्वल हो जाती….।

     मालती जी को खुद भी अपनी मांग में सिंदूर भरते समय हाथ कांप जाते….. सामने जवान बहू की सुनी मांग दिखाई देती थी…… अर्पण जितना बन पड़ता भतीजी को प्यार के साथ अपनी गोद में खिलाता…..पहले भी ….भाभी से बहुत अच्छी जमती थी अर्पण की …..अब तो इज्जत के साथ-साथ सहानुभूति भी बढ़ गई थी अविरल के जाने से……

     अविरल के पापा मनोहर जी यकायक बूढ़े व कमजोर से हो गए थे….

एक बाप का बेटे को कंधा देना शायद दुनिया का सबसे दुखद क्षण है…!

   उस दिन तो गजब ही हो गया….. नन्ही बिटिया रोए जा रही थी और अनुष्का किसी को फोन लगा रही थी… बार-बार लगा रही थी….

दौड़ी दौड़ी मालती जी आई और बोली अरे कहां फोन लगा रही है बहू…… तुझे इसका रोना भी सुनाई नहीं दे रहा…..? पीछे से अर्पण भी कमरे में आ चुका था , मनोहर जी भी वहां पहुंच गए …पोती जो इतनी जोर से रो रही थी….।

  अचानक जैसे सपने से जागी हो अनुष्का…..बोली वो मम्मी जी …..

मैं …..मैं ….. अटकते अटकते बोली …..मैं अविरल को फोन लगा रही थी …….रोज दस से पंद्रह बार लगती हूं….. शायद एकाद बार उठा ही ले…..!

     मालती जी ने आज थोड़ा मजबूत बनने की असफल कोशिश करती हुई बोली ……कब तक इस भ्रम में रहेगी कभी नहीं उठाएगा वो तेरा फोन…..

अरे तेरा क्या …हम में से किसी का भी नहीं उठाएगा……छोड़ गया हम सबको… हमेशा के लिए…… मान ले मेरी बच्ची….. इस सच को मान ले…..

 और अनुष्का को गले लगा लिया…. जितना जल्दी मान लेगी , उतना ही आसान हो जाएगा….. मम्मी जी….. कहकर अनुष्का ने भी जोर से सासू मां के गले से लग गई….!

अर्पण अपने आंसू छुपाता कमरे से बाहर निकल गया…।

   इस हादसे के बाद से अनुष्का डरी  सहमी सी रहने लगी थी…. एक अनजाना सा डर……अभी तक सभी अपने ही तो थे इस घर में ……फिर  सिर्फ अविरल के न रहने से…. अपने प्रति , अपने ही घर के लोगों के व्यवहार के प्रति…… और भी न जाने कितने प्रकार की असुरक्षा का डर….।

    समय बीतता गया …..कहते हैं ना , समय खुद में बहुत बड़ा मरहम होता है…. धीरे-धीरे अनुष्का  की भी दिनचर्या सामान्य होती गई …..मालती जी अपनी जवान बहू के दुख को बखूबी समझती थी …..एक दिन समय और अनुकूल परिस्थिति  देख मालती जी ने अनुष्का से कहा …..

     बेटा , तू भी जिंदगी में आगे बढ़ जा….. एक नई जिंदगी की शुरुआत कर ले …..मालती जी की मंशा समझते देर ना लगी अनुष्का को …..उसने बीच में ही बात काट कर कहा …..अरे कैसी बातें कर रही है मम्मी जी …..अब तो अविरल के हिस्से की भी जिम्मेदारी आप लोगों की  , इस घर की …मुझे ही करनी है ……और फिर जो मेरी किस्मत में है ही नहीं …. वो मैं कितना भी कोशिश करूंगी …नहीं ही होगा , मम्मी जी…।

     ऐसा नहीं है बेटा ……मेरी मान तो तू अर्पण से……. 

  नहीं….. नहीं….. मम्मी जी …..जोर से चीखी थी अनुष्का….. बहुत जोर से ……बिल्कुल नहीं ….. 

    चीख  सुनकर… तब तक अर्पण भी वहां पहुंच चुका था ….अर्पण ने भाभी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा…..

         आज से आप मेरी बड़ी बहन है भाभी …….बड़ी बहन …… वो बहन जिसकी इस घर में सबसे ज्यादा अहमियत है …….आज अविरल के जाने के बाद पहली बार अनुष्का को इस घर की जिम्मेदारी लेने में और महत्वपूर्ण दायित्व निभाने में खुशी महसूस हो रही थी …….।

अविरल के जाने के बाद से ….कहीं कोई गलती ना होते हुए भी… न जाने खुद को अनुष्का क्यों दोषी समझती थी …..लोगों से सामना करने में अनुष्का को हिचक महसूस होती थी……. बिना किसी के द्वारा अपमान किए ही वह स्वयं को अपमानित महसूस करती थी…।

पर अर्पण के एक फैसले ने…. बड़ी बहन बनाने का फैसला…… इस घर में सर्वोच्च स्थान देने का फैसला ……सम्मान देने का फैसला ….ने अनुष्का को जैसे कोई मुंह मांगा वरदान ही दे दिया हो …..न जाने कब अपमान वरदान बन गया…..!

     सच में बड़ी बहन बनकर अनुष्का बड़ी बहन होने का बखूबी फर्ज निभा रही थी….!

जब जब मालती जी इस घर और अनुष्का की तरफ देखती हैं….. गर्व से उनका सिर ऊंचा हो जाता …..अपनी सोच पर उन्हें पश्चाताप था….. एक ऐसी सोच जो……. सिर्फ एक लड़की की पूरी जिंदगी एक मर्द के बिना अधूरी है ….हर लड़की का अंतिम लक्ष्य उसका पति ही हो …आवश्यक नहीं ……ऐसी संकीर्ण सोच ….पर मालती ने भी विजय पा ली थी…!

(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षितऔर अप्रकाशित रचना )

साप्ताहिक विषय: # अपमान बना वरदान 

   संध्या त्रिपाठी

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