“आइए बैठिए शोभा जी!.लगता है आज सूरज पश्चिम से निकला है!”
यह कहते हुए अंजना ने पड़ोस में रहने वाली अपनी सहेली शोभा को बैठने के लिए वही रखी कुर्सी खिसका दिया। कुर्सी पर बैठते हुए शोभा धीरे से बोली..
“जरा वकील साहब से मिलने आई थी!”
“वकील साहब से!”
अंजना को हैरानी हुई। असल में अंजना के पति कोर्ट में वकील थे लेकिन आज अचानक शोभा उनसे मिलने आई है यह सुनकर उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा..
“घर में सब ठीक है ना!”
“कुछ ठीक नहीं है बहन जी!”
“क्यों?.क्या हुआ?”
“आप तो जानती ही हैं!.मैंने अपनी बेटी रश्मि के विवाह में कितना खर्चा किया!.कपड़े-गहने, बरात का स्वागत सब मिलाकर लाखों का सामान दिया,.लेकिन मेरी बेटी को ससुराल में कोई सुख नहीं मिला।”
“आखिर हुआ क्या है?.यह तो बताइए!”
अंजना पूरी बात जानने को आतुर हो उठी और शोभा बताने लगी..
“विवाह के दूसरे दिन ही रश्मि की सास ने पूरे घर की जिम्मेदारी मेरी फूल सी बच्ची पर लाद दी थी।”
“यह क्या कह रही हैं आप!”
“अब क्या बताऊं बहन जी!.रसोई से लेकर घर के हर सदस्य की हर छोटी-बड़ी फरमाइश और जरूरत का ध्यान मेरी बेटी को ही रखना पड़ता है!.ऊपर से उसके ससुर लकवा के मरीज हैं,. उनका खाना-पीना भी बिना मिर्च-मसाला का अलग से बनाओ!.पूरे दिन नौकरानी की तरह रसोई में खटते हुए बिताना पड़ता है रश्मि को।”
इतना कहते-कहते शोभा का गला भर आया। शोभा के दिल के हालात समझती अंजना ने उसे सांत्वना देना चाहा..
“लेकिन इसमें वकील साहब भला क्या कर सकते हैं?”
“वकील साहब से राय मशवरा लेकर मैं अपनी बेटी को दामाद जी को साथ लेकर उसके सास-ससुर से अलग रहने का उपाय बताना चाहती हूंँ!”
“इससे क्या होगा?” अंजना को हैरानी हुई लेकिन शोभा ने अपनी बात पूरी की..
“सास-ससुर से अलग होकर मेरी बेटी को कुछ तो सुख मिलेगा!”
“जिंदगी में सुख-दुख सब किस्मत की बात है बहन जी!.अब मेरी बेटी को ही देख लीजिए,.अपने ससुराल में राज करती है!. वहां तिनका उठा कर भी कोई काम मेरी बेटी से नहीं करवाता।”
यह कहते हुए अंजना के चेहरे की मुस्कान देखने लायक थी। अंजना की बातों को गौर से सुनती शोभा का ध्यान अचानक भंग हुआ जब सामने मेज पर अंजना की बहू रितु चाय का ट्रे रखने आई। लेकिन रितु को देखते ही अंजना ने उसे टोका..
“खाली चाय देने चली आई!.यह ना हुआ कि थोड़े पकोड़े भी तल लें!.कितना सिखाना पड़ता है तुम्हें!”
“अभी कर देती हूंँ मम्मी जी।”
अपनी सास की डांट सुनने के बावजूद रितु मुस्कुराई।
“अब रहने दो!.जल्दी से दोपहर के भोजन की तैयारी कर लो!. तुम्हारे ससुर जी को लेकर रितेश कोर्ट से आता ही होगा।”
रितु वापस रसोई की ओर जाने को मुड़ गई तभी अंजना ने उसे फिर से टोका..
“और सुनो!.कच्चे आम की चटनी सिलबट्टे पर पीस कर बनाना,.मिक्सर ग्राइंडर में पिसी चटनी अच्छी नहीं लगती!”
“जी मम्मी जी!”
सहमति में सर हिलाती रितु झटपट रसोई के भीतर चली गई।
अब तक सास बहू के बीच हो रही बातचीत को गौर से सुनती शोभा ने अंजना की ओर देखा..
“क्या बताऊं बहन जी!.मेरी बहू का भी यही हाल है,. बिना टोके कोई काम उससे होता ही नहीं!.हर काम के लिए टोकना पड़ता है,.ऊपर से रश्मि की चिंता अलग से लगी रहती है।”
शोभा का खुद से अपनी बराबरी करते देख अंजना को रहा नहीं गया…
“खैर मुझे बहू चाहे जैसी भी मिली है!.लेकिन मेरी बेटी को सास अच्छी मिली है!.उसकी सास तो इतनी अच्छी है कि,.सुबह के चाय नाश्ते से लेकर रात का खाना भी उसके बिस्तर पर पहुंचा देती है!.इसलिए मैं निश्चिंत रहती हूंँ।”
यह बताते हुए अंजना एक बार फिर से इतराई लेकिन काफी देर से उन दोनों की बातें सुन रहा अंजना का छोटा बेटा मोहित अचानक बीच में बोल पड़ा..
“मांँ!.आप दोनों को बहू चाहे जैसी भी मिली है!. लेकिन अच्छी सास बनने का मौका तो अभी भी आप दोनों के हाथ में है!”
“तू कहना क्या चाहता है?”
अभी कॉलेज में पढ़ने वाले अपने बेटे मोहित की बात सुनकर अंजना को अचानक कुछ समझ में नहीं आया लेकिन मोहित ने उन्हें अपनी तरफ से समझाया..
“माँ!.कल से आप भी एक अच्छी सास की तरह भाभी को सुबह-सुबह बिस्तर पर ही चाय नाश्ता देना शुरू कर दीजिए।”
मोहित के मुंह से अचानक यह सुनते ही अपने ही बातों में फंस चुकी अंजना के चेहरे का रंग उड़ गया। वह अपनी सहेली शोभा का मुंह देखने लगी।
लेकिन अचानक अपने हर सवाल का जवाब पा चुकी शोभा वकील साहब से राय मशवरा लिए बगैर ही वहां से उठकर अपने घर की ओर चल पड़ी।
पुष्पा कुमारी “पुष्प”
पुणे (महाराष्ट्र)