“चटपटा स्वाद ” – कविता भडाना

आज आप सभी के साथ मैं अपने बचपन का एक चटपटा किस्सा सांझा कर रही हूं, मुझे बचपन से ही मिठाई बहुत अधिक प्रिय थी,  अब चूंकि हमारा संयुक्त परिवार था तो सब चीज सीमित मात्रा में ही मिलती थी। पेट तो भर ‍ जाता पर मन नहीं भर पाता….

मेरे मामा का घर बुलंदशहर के पास एक गांव में था, खेती बाड़ी के साथ – साथ उनके आम के बाग और गाए भैंसों की डेयरी भी थी, जब कभी में अपने भाइयों के साथ मामा के घर जाती तो खूब धमाल मचाती, मेरी नानी और नाना भी खूब प्यार करते और अच्छी अच्छी खाने की चीज़े बाजार से लेकर आते, मुझे तो खाने का वैसे ही बहुत शौक रहा है तो हम छुट्टियों में नानी के घर खूब मज़े करते …

जैसा की मैने बताया मुझे मीठा बहुत पसंद था तो मेरी नानी मिट्टी के चूल्हे पर मोटे तले की कढ़ाई रखकर दूध भूना करती थी , दूध तब  तक भुना जाता, जब तक वो मावा ना बन जाए… में तो आस पास ही मंडराती रहती की कब मावा तैयार हो और कब में उसमे बूरा (पीसी हुई चीनी) मिलाकर गर्म गर्म खा जाऊं….

ऐसे ही एक बार में अपने मामा के घर गई हुई थी तो देखा मेरी नानी और मामी खूब सारा दूध भून रही है, मुझे देखकर बोली इस बार अपनी गुड़िया रानी के लिए खूब सारे 

मावे के लड्डू बनाकर दूंगी , हम मम्मी पापा के साथ एक रात के लिए ही गए थे तो नानी ने रात को ही सारे लड्डू बनाने के लिए मामी से बोल दिया ।




रात को खाना खाकर हम सब बाहर बरामदे में बिछी चारपाइयों पर अपने अपने बिस्तरों में घुस गए और गप्पे सप्पे मारने लगे, इधर मम्मी, नानी और मामी शाम को बनाए हुए मावे से लड्डू बनाने की तैयारी करने लगी, मैने एक बड़ी कटोरी में खूब सारा मावा लिया और बूरा मिलाकर खाने लगी , पर पूरा ना खा पाई तो वही बरामदे में अपने पीछे खिड़की के पास कटोरी रख दी की बाद में खा लूंगी, पर जाने कब नींद के आगोश में चली गई….

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आधी रात के आसपास मेरी आंख खुली तो देखा सब सोए हुए है ,मेरा ध्यान अपनी कटोरी पर गया तो नींद में भी मेरी जीभ लपलपाने लगी, भूख का अहसास होने लगा , उस समय गांव में बिजली की बहुत समस्या रहती थी तो रात को आले में, मिट्टी के तेल की ढिबरी, नानी जलाए रखती थी , बहुत हल्की सी ही रोशनी होती थी…. 

खैर मैंने हल्की रोशनी में ही अंदाजे से अपनी कटोरी उठाई और बूरा मिला मावा चुपचाप खाने लगी , पर इस बार स्वाद कुछ तीखा और चटपटा सा आ रहा था,  कुछ क्रिस्पी सा स्वाद भी आ रहा था ,  पर नौ साल की में, छोटी सी बच्ची , स्वाद के बारे में सोचती भी जा रही थी और खा भी रही थी, ….. फिर थोड़ा खाकर छोड़ दिया की अब सुबह खा लूंगी और सो गई….




सुबह देखा तो नानी मेरी मामी से बोल रही थी की ये मीठे की कटोरी बिना ढके किसने रख दी यहां, देखो इसमें कितने सारे ची़ंटे पड़े हुए है….

आंखे मलती में ये देखकर हैरान रह गई की कटोरी में ढेर सारे चींटे आधे खाए पड़े हुए है…

 अब बात समझ आई, रात को मीठे के लालच में सब चींटे कटोरी में आ गए थे और फिर मेरे पेट में…

जब सबको ये बात पता चली तो सब हंस हंस कर लोटपोट हो गए …. मुझे भी अब पता चल चुका था कि रात को मावे के साथ वो तीखा और चटपटा स्वाद किसका था….😂

आज भी सब मुझे कई बार छेड़ते है की बताओ कैसा स्वाद था  चींटो का?…..

सच्ची घटना,स्वरचित

कविता भडाना

 

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