चश्में वाली – हितेश मेहरा : Short Moral Stories in Hindi

Short Moral Stories in Hindi : ” क से गाना है, क से गाओ! टिक टिक वन टिक टिक टू…..।”लड़कियों का एक ग्रुप एक पॉइंट लेने की चाह में समर्पण करवाने लगा।

“क्या खूब लगती हो..” अरे नहीं हो गया यह तो;

” कैसे मुझे तुम मिल गई..”ये भी ही गया, अब टाइम होने वाला है,बस करो और हार मान लो।

“कभी आईने पे लिखा तुझे,कभी आंसुओं से मिटा दिया”… सभी आश्चर्य से पीछे की ओर देखने लगे। कभी भी आवाज नही निकलने वाले गले से गाना सुनकर सभी हैरान थे।

मैं सहम गया कि लाइनें गलत हैं या गाना पहले गाया हुआ है,पर सभी ‘वाह विवेक वाह ’करने लगे। मैंने लडकों के दल को हारने से एकबारगी बचा लिया था ।

मैं ज्यादा ही शर्मीले स्वभाव वाला,आधा होशियार–आधा बेवकूफ किस्म का लडका था।

कॉलेज के आखिरी सेमेस्टर में हमें थोड़ी छूट मिल गई थी तो हम भी आखिरी क्लास की यादें बटोरने में लगे हुए थे।

हर दिन कोई न कोई छोटा प्रोग्राम रख लेते,आज वैसा ही अंत्याक्षरी का माहौल बना हुआ था ,हारने वालों को बाकी पूरे दिनों तक जीतने वालों को ‘नमस्ते सर या नमस्ते मैम’ कहना होगा, ऐसा निर्णय हुआ था।

परिणाम हमारे विपक्ष में गया,अब हम सजदा करने वाले थे। बाकी सब के लिए यह शायद आसान हो पर पर मेरे लिए बेहद मुश्किल और पेचीदा था। पिछले एक साल में मैंने तो किसी को नजर उठा कर भी नहीं देखा था,अब उन्हें उनके नाम से सलाम करना, रेत को मुट्ठी मे कैद करने जितना मुश्किल था।

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अगले दिन मैं थोड़ा जल्दी क्लास आ गया, जिसका डर था वहीं हुआ दो लड़कियां पहले से मौजूद थीं। मैं गेट से वापिस मुड़ने ही वाला था कि आवाज आई “अरे !आईने वालों, बिना मिले ही किधर चले।” मैं नजरे झुका कर खड़ा रहा,आखिर हिम्मत कर नमस्ते ट्विंकल मैम,नमस्ते साक्षी मैम बोलते हुए पीछे जाकर बैठ गया।

मन में सोचने लगा आगे के दिन क्लास में ही नहीं आऊंगा,वगेरह वगेरह। तभी क्लास की एक लड़की आते हुए दिखाई दी,में जमीर मार कर सलाम करने के लिए खड़ा हुआ ही था की उसने ऐसा करने से मना कर दिया।

मैं गरदन नीचे किए हुए बैठ गया। यूं तो क्लास में 12–13 लड़कियां थीं,पर सभी नमस्ते कहलवाने में अपना शोर्य समझ रही थी लेकिन इनमें से एक ने मना कैसे कर दिया? मैं भीतर झांकते हुए सोचने लगा।

आज पहली बार मैंने किसी को नजरें उठा कर देखा था, मैं डर रहा था की कहीं उनसे आंखे मिल न जाएं और मैं पकड़ा जाऊं।

यह एहसास निसंदेह सुखद था, आत्मीय सुकून देने वाला था, “नितांत शांति लिए उसके लब मानों ठहरा हुआ पानी हो,उसकी गहरी आंखे सागर की गहराई को मात दे रही थी,उसका बेदाग चेहरा किसी साफ रेगिस्तान की तरह चमक रहा था, गूंथें हुए बाल जिसमें से एक अनसुलझी लट उसके गालों को छू रहीं थीं , वह नूर और सौंदर्य की मलीका जान पड़ती थीं। लेकिन इन सब के अलावा कुछ और था जो चांद में दाग की तरह था,पर उनकी खूबसूरती को जरूर बढ़ा रहा था,”उनका चश्मा”।

अचानक उनसे आंखे मिली तो वापिस लौटा,होश संभालते हुए नोट्स खंगालने लगा।

रूम पर आया,पर शायद मैं नहीं आया , मैं कहीं गुम हो गया था,शायद उनकी ‘आंखों में’ या आंखों से पहलें उनके ‘चश्में में’।

मुझे अजीब सी गुदगुदी हो रही थी, मन सुनहरे ख्यालों में खो रहा था, “ये शाम मस्तानी मदहोश किए जाए” गुनगुनाते हुए मंद मंद मुस्कुराने लगा । खाना बनाया, बेमन खाया भी पर भूख़ मानों अब कभी नहीं लगेगी,ऐसा सौंदर्य पान किया था । छत की ओर सिर किए अगले दिन का इंतजार करने लगा,नींद दूर खड़ी मेरा मजाक उड़ा रही थीं,नींद से दरख्वास्त करते करते सो कर उठ गया।

सुबह हो रही थीं , मैं सोचने लगा कि ये हो क्या रहा हैं मुझे? अंदर से आवाज आई ” प्यार हुआ,इकरार हुआ है”।

क्या? प्यार और मुझे? हा हा हा…।

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पर हो रहा था,मुझे हा यहीं शायद!

मैं सभी बातों को नजरंदाज कर कॉलेज आ गया, मुझे कुछ हो सा गया था, मैं धीरे चलते हुए दौड़ता सा जान पड़ता था। कुछ जल्दी से समेट लेने की जल्दी थीं जैसे की फिर वो मिले न मिले।

मैं क्लास में पहुंचा तो सभी लड़कियां ग्रुप बनाकर बैठी थीं, लड़के भी पास में ही बैठे थे, मैं खुशी से सबको नमस्ते करने लगा..उनकी बारी पर उन्होंने मना कर दिया पर, मैं नमस्ते करने में अपना सौभाग्य समझ, सजदा कर अपनी जगह बैठ गया।।

झूठे ही पेज पलटने लगा,तभी उनमें से किसी की आवाज आई आप भी यहीं आ जाओ, कुछ डिस्कस कर रहे हैं।

यह आवाज उनकी थीं,इस आवाज के बुलाने पर तो मैं जन्नत को ठुकराकर वापिस आ जाऊं,सोचते हुए उठ खड़ा हुआ।

एक छोटी सी स्टूल मेरी ओर खिसका दी गई, मैं बैठ कर टेबल पर देखने लगा, फेयरवेल पर ग्रुप डांस के लिए दो–दो के जोड़े बनाने को लेकर कवायद थी। डांस के नाम पर मेरी सांस ऊपर नीचे होने लगीं। पर मैं या कोई और इस डांस के लिए मना नही कर सकता था,अब मेरे डांस को लेकर मजाक उड़ना पक्का था! मैं तय करने लगा।

12 लड़कियों और 12 लड़कों के नाम की पर्चियां बना कर 2 बॉक्स में डाल दी गई,अब लड़कों को लड़कियों वाली पर्चियों में से और लड़कियों को लड़कों वाली पर्चियों में से एक चुनना था, सब एक एक कर पर्चियां निकाल रहे थे ,

मैंने अपनी पर्ची निकाली,नाम देखा और स्तब्ध हो गया।

हां!ये उनका नाम था “”नीलम””।

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं खुश होऊं या परेशान।अब तो खैरियत मालिक के भरोसे थीं,गाने का चयन हुआ “दीवानगी – दीवानगी”, ॐ शांति ओम का वो गाना था जिस पर सभी एक एक मिनट परफॉर्म करने वाले थे।

सभी अपनी अपनी जगह अपने जोड़ीदार के साथ खड़े हो गए। मैं और वो आमने – सामने थे, उन्होंने अपने हाथ आगे किए , मैं ऊपर से नीचे तक मोम हो गया,रक्त का दबाव नसों को धमकाने लगा, सांसे हवा तलाशने लगी।मैंने हाथ आगे बढ़ा दिए,अब हम एक थे….फिलहाल के लिए शायद।

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उनकी आंखों में देखते हुए कदम अपने आप हिलने लगे, “शाम गजब की… “वाले स्टेप्स आसानी से होने लगे। मैं उनके साथ नौशीखिये से निपुण बन गया। स्टेप्स पूरे हो गए,मेरे हाथ में उनके हाथ थे और कुछ बाकी था,‘साथ उनका साथ’हमेशा के लिए।।

प्यार भी न अजीब खुदगर्ज है,हमेशा अपनी सोचता है, सामने वाले की मर्जी तक जानना जरूरी नहीं समझता। अनंत सपने बुनता है, ख्वाइशों के आसमान को समेटना चाहता हैं,खुद की खुशियां त्याग देता हैं,अपने सपनो का बलिदान देता हैं ,फिर जाकर प्यार मुक्कमल होता हैं।

मैं उनसे अपने प्यार का इजहार करूंगा,अपने एहसास बताऊंगा,फिर उन्हें भले ही मुझसे प्यार हो न हो पर मैं करूंगा। आज हिम्मत करके बोल ही दूंगा ऐसा दृढ़ निश्चय कर कॉलेज आ गया ।

पर आज वो नही आए थे, मैं इंतजार करने लगा,मन में संतुष्ट होने की चाहत थीं ।तभी अजीब सी भाग–दौड़ होने लगी,किसी को कुछ पता नहीं था पर सब बाहर गेट की ओर भाग रहे थे। एक्सीडेंट हो गया ,एक्सीडेंट हो गया।

मैं भी बिना कुछ सोचे बाहर की ओर भागा ।

“कोई लड़की थी अपने ही कॉलेज की!” लड़कों की फुसफुसाहट कानों में सुनाई देने लगीं ।

बाहर आया तो देखा एक स्कूटी रोड के दूसरी साइड पड़ी थी,सड़क पर खून बिखर कर सुख गया था, एक पैर का जूता स्कूटी के नीचे दबा था,कांच के टुकड़े सड़क पर चमक रहे थे।

एक स्पीड से जा रही कार ने रोड के साइड में खड़ी स्कूटी को टक्कर मार दी थीं, घायल लड़की को लोगों ने पास के एस.बी.एम.हॉस्पिटल में एडमिट करवा दिया था।

ये स्कूटी मुझे कुछ जानी पहचानी मालूम हुई ,नहीं!नहीं!

ऐसा नही हो सकता!!!

स्कूटी के पीछे ‘नीलम’लिखा हुआ था। मैं अंदर से गिरने लगा, कांच के घर को मानो कंकर मारकर गिरा दिया हो।

वहां से हॉस्पिटल की ओर भागा,उनके परिवार वालें आ गए थे, पापा और मम्मी रो रहे थे। पास में खड़े लोग कह रहे थे,सिर पे लगी है, डॉक्टर ने कहा है ,‘खून बहुत ज्यादा निकल गया हैं,बहुत ही मुश्किल है बचना’।

मैं पास नहीं जा पा रहा था,मेरे पैर जम गए थे जैसे अंदर सारा खून जम गया हो।

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कभी भी मालिक से कुछ न मांगने वाले हाथ उनकी सलामती की भीख मांगने के लिए फैल गए थे।

मैं रोते हुए वापिस एक्सीडेंट वाली जगह आ गया।

इस जगह, उस कार वालें को गालियां देने लगा, नीचे बैठते हुए मुझे सड़क के एक ओर चमकता तारा दिखने लगा,

“उनका चश्मा”।

मैंने चोर की तरह टूटे हुए चश्में को अपनी बाईं जेब में छुपा लिया। और रूम आ गया, आंसुओं और आंखों पर नियंत्रण नही कर पा रहा था,गालों पर आंसुओं की धारा बहकर सूख चुकी थी ।

अभी उनके घर जाकर आया हूं।

“सुंदर आंखों के साथ चश्मे लगी फोटो पर हार” लगा हुआ था , वो अच्छी नहीं लग रहीं थीं।

वो अब नहीं आयेंगे,उनकी आंखों पर ये चश्मा अब नही लगेगा। वो नजरें नहीं मिलेगी।

वो यहां मिले न मिले एक दिन मिलेंगे तो जरूर इजहार करूंगा।

आजकल प्राइमरी स्कूल में बच्चों को पढ़ाता हूं ,मन बहल जाता है,प्यार बच्चों में बांट दिया हैं खुश रहता हूं।

उन्हे रोज याद करता हूं,चश्मे को हाथ में लिए रोज सजदा करता हूं।

आज लड़ते हुए तीसरी क्लास के दो छोटे–छोटे लड़के मेरे पास आए और बोले ” सर ये मुझे उसके साथ नहीं बैठने दे रहा हैं, मैं और वो हमेशा साथ रहते हैं, वो भी मेरे पास बैठना चाहती हैं”।

अरे! कोन भाई मैने उस से पूछा।

उसने इशारा करते हुए कहा यह ‘नीलम’सर । एक छोटे से चश्मे के साथ एक बच्ची खड़ी हुई।

मेरी आंखें डबडबाने लगी ,मैंने कहा तुम दोनो को कोई अलग नहीं करेगा। बैठ जाओ पास में।।

उन दोनो को पास में बिठाकर फोन में ताकने लगा।

मैं क्लास से बाहर आ गया वो उसके साथ खुश थी,जैसे वो मेरे साथ खुश होती शायद !

!!समाप्त!!

हितेश मेहरा

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