“फेरों के बाद वर-वधू अब गौरी-शंकर का रूप में है वधू के माता-पिता दोनों के चरणों को जल से प्रक्षालन करके चरणस्पर्श करेगें ” पंडित जी बोले।
” पंडित जी !फिर तो मेरे माता-पिता को भी हम दोनों के चरणस्पर्श करने चाहिए उन्हें भी गौरी-शंकर का आशीर्वाद मिल जाएगा। ” आर्यन बोला
“नही! यह रस्म सिर्फ वधू के माता-पिता ही करते है”
पंडित जी ने रस्म निभाने पर जोर दिया।
पंडित जी अलावा बाकी रिश्तेदार भी इस रस्म को करने के लिए आर्यन पर दबाव बना रहे थे लेकिन आर्यन के माता-पिता चुपचाप खड़े थे क्योंकि वे उसके स्वभाव को जानते थे।
” पंडित जी !यह रस्म मैने अपनी बहन व मित्र के विवाह में देखी । उस समय तो मैं कुछ नही कर पाया लेकिन मन में एक निर्णय लिया कि अपने विवाह में इस रस्म को नही होने दूँगा। जिस दिन यह रिश्ता तय हुआ उस दिन से मैने स्नेहा के माता-पिता को अपना माता पिता मान लिया था ;अब बताइए मैं उनसे अपने चरण-स्पर्श कैसे करवा सकता हूँ ?”
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पंडित जी भी चुप हो गए क्योंकि बात तो तर्कसंगत थी।
“पंडित जी! कुछ रस्में एक पढ़ी-लिखी बेटी के माता-पिता को भी बेचारगी महसूस करा देती है अतः उन्हें न किया जाए वही बेहतर है।”
आर्यन के सभी साले-सालियां प्रभावित हो कर बोले “वाह जीजू ! क्या बात कही है।”
आर्यन ,स्नेहा के साथ अपने सास ससुर के चरणस्पर्श करके आशीर्वाद ले रहा था।स्नेहा मन ही मन कह रही थी ” पापा ने कुंडली तो बहुत अच्छी मिलाई है।”
दीप्ति सिंह (स्वरचित व मौलिक)