चन्दन – विनय मोहन शर्मा : Moral Stories in Hindi

लगभग सात वर्ष की आयु रही होगी; चंदन की, जब उसके माता-पिता उसे इस संसार में अकेला और बेसहारा छोड़ कर चले गए। चंदन के मामा मनोहर बाबू चंदन को अपने साथ ही हमेशा के लिए शहर ले आये थे। चंदन को देखकर उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कंचन को इस बात से गहरा सदमा लगा

कि अब चंदन भी उनके साथ ही रहेगा। वह कभी भी चंदन से प्यार नहीं करती थी। चंदन की मां सरस्वती से उसे पहले ही नफरत थी।अब चंदन उनके पास आ ही गया था तो उसे देखकर कंचन ने अपने मन के क्रोध को दबाने की कोशिश करते हुए,उस पर दिखावटी प्यार दर्शाने लगी।

         मनोहर बाबू को कान्ट्रेक्ट के काम से बाहर जाना पड़ता था । घर पर चंदन अपनी मामी के साथ ही अकेला रहता था, इसलिए कंचन चंदन से अपने घर का सारा काम करवाती थी और दो वक्त का खाना , जिसमें रूखा सूखा होता था, चंदन को भोजन में देती।

जब मनोहर बाबू घर पर ही होते तो कंचन देवी चंदन पर अपनी सारी ममता उंडेल कर उसे अपने हाथों से भोजन का ग्रास मनुहार करते हुए खिलाती। उसका यह विपरीत रूप देखकर कोई भी यह अनुमान नहीं लगा सकता था कि कंचन देवी चंदन से गहरी नफरत करती है।

        एक दिन मनोहर बाबू काम के सिलसिले में घर से बाहर गए हुए थे और उनकी धर्मपत्नी जी अपनी सहेली से मिलने। घर पर केवल चंदन ही था। चंदन काम से निवृत्त होकर फुरसत में था कि दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। चंदन ने दरवाजा खोला,

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वहां पर देसाई बाबू अपनी धर्मपत्नी श्रीमती मानसी के साथ उपस्थित थे। चंदन के चेहरे पर पड़ी धूल और आंखों से झांकती पीड़ा, चंदन पर होने वाले जुल्म की कहानी बयां कर रही थी। यह जानकर कि मनोहर बाबू घर पर नहीं हैं, देसाई बाबू अपनी धर्मपत्नी के साथ उल्टे पांव लौट गए।

        परन्तु उनके मन में चंदन को लेकर मंथन चल रहा था कि वह इस बालक से कहां मिले हैं। अचानक उन्हें स्मरण हुआ कि मनोहर बाबू इस बालक को अपने साथ उनके घर पर लाए थे और उनसे परिचय भी कराया गया था। देसाई बाबू के दिल से चन्दन पर होने वाले जुल्म की पीड़ा का दर्द अभी निकला नहीं था।

एक दिन उन्होंने मनोहर बाबू से चन्दन को अपने पुत्र के रूप में गोद लेने की अपनी प्रकाट्य इच्छा प्रकट कर दी। मनोहर बाबू को  अपनी धर्मपत्नी के चंदन पर किए गए जुल्मों की कहानी पता चल चुकी थी इसलिए वह देसाई बाबू की इच्छा के आगे नतमस्तक हो गये। चंदन के उज्जवल भविष्य के लिए उन्होंने चंदन को देसाई बाबू के सुदृढ़ हाथों में सौंपते हुए चैन की सांस ली।

विनय मोहन शर्मा

अलवर, राजस्थान

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