“ऐ चाॅंद मुझे पता है ,तू जीवन से जुड़ा है
जैसे आते हैं जीवन में उतार-चढ़ाव
वैसे ही तू घटता बढ़ता है
कभी पूर्णिमा में खिलता है
कभी अमावस में खो जाता है
कभी धरा संग प्रीत लगाता
कभी भानु से चमकता है।”
पूर्णमासी के खिले हुए चाॅंद को देखते हुए नीलिमा उसमें अपना जीवन देख सोच रही थी कि चाॅंद सा है मेरा जीवन। एक समय ऐसा था जब अमावस की अंधेरी रात में यह जीवन खो गया था। आशा की एक किरण भी नजर नहीं आती थी। जीवन के हर क्षेत्र में परेशानियां झेल रही थी। और याद करती है अपने संघर्ष के 20 वर्षों को कैसे जीवन में उतार-चढ़ाव आये?
” बाल उम्र में विवाह ,परिवार की जिम्मेदारी , सपनों से समझौता, शिक्षा को लेकर अपनों का विरोध,आरोप-प्रत्यारोप और इन सब के बीच उसका जीवन अनंत सपने आंखों में लिए देश दुनिया और समाज के लिए कुछ कर गुजरने का जुनून।”
कैसे वह और उसका पति भुवन अपने सपनों का घर बना ही रहे थे कि दुनिया में कोरोनावायरस का आगमन हो गया। घर बनाने का काम बीच में ही छूट गया, पति बेरोजगार हो गये, और घर बनाने के लिए लिया गया कर्ज बढ़ता गया। सासू मां दिल की मरीज और डायबिटीज से ग्रसित होने के कारण बिस्तर में ही पड़ गई।बिना नौकर चाकर के ऑफिस का काम , सासु मां की देखभाल , पूरे परिवार की जिम्मेदारी उसके लिए एक चुनौती बन गया ।
भुवन का बड़ा भाई शहर में उसका
बड़ा मकान बनता देखकर उससे ईर्ष्या करने लगा।
वह जगह-जगह लोगों से कहता, “देखो इसने कहीं से दो नंबर का पैसा लिया है
तभी इतना बड़ा मकान बनवा रहा है।”
इन सब बातों को सुनकर भुवन कहता, ,”देखो नीलिमा पूरे 20 वर्ष हम अपनी इच्छाओं को मारते रहे, बिना मकान इधर से उधर भटकते रहे,
कहीं घूमने नहीं गये, कुछ अच्छा खाया नहीं, पहना नहीं
तिनका तिनका जोड़ कर,
हम ये घर बना रहे हैं फिर भी कैसे आरोप लग रहे है?”
नीलिमा -“परमात्मा सभी की परीक्षा लेते हैं भुवन हमारी भी परीक्षा चल रही है, बस चुपचाप सब सुनते रहो और सही समय का इंतजार करो”।
बस जीवन में यही दिन और देखना बाकी रह गया था।
पता नहीं परमात्मा को और कितनी परीक्षा लेनी थी।
मानसिक तनाव दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था
इसी बीच पूरा परिवार कोरोनावायरस की चपेट में आ गया। कोरोना के बाद वह बिल्कुल शक्ति हीन हो गई जैसे मानो कोई उसकी शक्ति छीन कर ले गया हो परंतु फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी
जीवन को सकारात्मक रूप से देखती रही और इंतजार करते रही अच्छे समय का।
नीलिमा की सरकारी नौकरी ही बस एक जरिया था जो आस बांधे हुए था पूरे परिवार को।
कैसे सासू मां हमेशा उसकी की पढ़ाई के खिलाफ रहती थी?
उसको को उनसे छुप छुप कर पढ़ना पड़ता।
जब भी वह कोई परीक्षा पास करती
वह नाराज हो जाती और कहती ,” मैंने तो कम पढ़ी लिखी बहू इसलिए ली थी, कि पूरी जिंदगी मेरी सेवा करें,
देखना! जब यह पढ़ लिख जाएगी
इसके पंख लग जाएंगे और फुरर्र से उड़ जाएगी।”
आज सासू मां अहसास हो रहा था कि पढ़ लिखकर सरकारी नौकरी के कारण ही वह पूरे परिवार को सहारा दे रही है। घर के पूरे काम से लेकर और ऑफिस के काम तक नीलिमा इस कोरोना काल में दोनों चीजों को संभाल रही थी। उसे सिर्फ अपने परिवार को ही नहीं संभालना था समाज में जागरूकता लाकर समाज के लोगों को भी सहारा देना था। वह निरंतर समाज सेवी संस्थाओं से जुड़ कर समाज के लोगों के बीच भी कार्य करती रही। और इसी आशा में कि जिस तरह से अमावस के बाद चाॅंद पूर्णिमा में खिलता है उसी तरह से यह जीवन फिर खिल उठेगा। और इन 2 वर्षों में कोरोनावायरस चला गया जीवन फिर सामान्य पटरी पर आ गया।
इसी बीच उसने अपने घर को भी बना लिया।
आज उसकी शिक्षा रीड की हड्डी बन कर पूरे परिवार और समाज को सहारा दे रही है और आज वह अपने सपनों के महल में फिर चाॅंद को बैठ कर देख कर बस यही सोच रही थी।
” ऐ चांद तू मुझे पता है
तू जीवन से जुड़ा है
जैसे आते हैं जीवन में उतार-चढ़ाव
वैसे ही तू घटता बढ़ता है”।
#कभी_खुशी_कभी_गम
रचनाकार अनीता चेची