चांद पर दाग  – गीता वाधवानी   : Moral Stories in Hindi

अपनी बेटी साक्षी को विवाह के उपरांत विदा करके रवि अंदर आकर रोने लगा। 

उसकी मां जानकी ने कुर्सी पर बैठते हुए 

रवि को अपने पास बिठाया और समझाने लगीं -” पगले, आजकल तो लड़कियां भी विदाई के समय रोती नहीं है और तू और तेरी साक्षी कितना रो रहे थे और तू तो अभी तक रो रहा है। तुझे तो खुश होना चाहिए कि सागर जैसा समझदार दामाद तुझे मिला है और फिर साक्षी कहां तुझसे दूर है, आती जाती रहेगी, इतना उदास क्यों हो रहा है।” 

रवि-हां मां, आप सही कह रही हो, पर देखा तो उसके बिना अभी से यह घर सूना सूना सा लग रहा है।” 

मां -“जब अपने बेटे सौरभ की शादी करेगा, तो बहू आकर रौनक कर देगी।” 

रवि के चेहरे पर मुस्कान आ गई और बोला -“क्या मां आप भी, अभी तो वह छोटा है।” 

मां -“हां, बड़ा तो होगा‌ ही औरबहू भी लायेगा।” 

रवि, उसकी पत्नी रेखा और सौरभ तीनों जानकी के पास बैठे थे और मुस्कुरा रहे थे। शादी के कारण घर में थोड़े बहुत मेहमान थे, वे तब जाकर सो चुके थे। 

रवि-“मां आपको याद है जब साक्षी पैदा हुई थी तब हम सब कितने खुश थे, और बाद में मैंने?”ऐसा कहकर रवि की आंखों में फिर से आंसू आ गए। 

मां-“हां रवि, सब याद है। कितना खुश था तू। सबको मिठाई बांट रहा था। कभी उसे अपनी परी, कभी अपनी डॉल, कभी मेरा चांद कहकर बुलाता था। ऑफिस से आते ही उसके साथ खेलने लगता था।” 

रवि-“और मैंने ही उसके साथ कितना गलत व्यवहार किया। पहली बार उसके गले पर एक छोटा-सा सफेद दाग देख कर मैंने कहा था-“चांद पर दाग”। छि कौन ऐसा पिता होगा। मैंने उसकी बीमारी को छूत की बीमारी समझ कर उसे एक कलंक समझा और उसे गोद में लेना भी बंद कर दिया था।

उसकी बीमारी का इलाज करवाने की बजाय मैंने उसे उसके हाल पर छोड़ दिया और उससे चिढ़ने लगा। उस मासूम को तो कुछ पता भी नहीं था। जब वह भाग कर मेरी तरफ दौड़कर आती थी तो मैं मुंह फेर कर चला जाता था। मां आपने सब कुछ संभाल लिया, वरना मैं तो बड़ी भारी भूल कर ही चुका था।” 

मां-उसे प्यार और देखभाल की जरूरत थी। अधिकतर लोग इस बीमारी को फैलने वाली  बीमारी समझ कर, तेरी तरह उस इंसान से नफरत करने लगते हैं और उससे दूरी बना लेते हैं। वह मजबूर इंसान डिप्रेशन में आ जाता है। बहू ने वैद्य जी की बात मानकर रोज सरसों के तेल में हल्दी मिलाकर उसे लगाई

और समय-समय पर दवाई खिलाई, इसीलिए तो बीमारी वहीं पर रुक गई और फिर दाग था भी बहुत छोटा। तूने तो  उसके साथ बहुत नाइंसाफी की थी। कौन बाप ऐसा करता है। तूने दिल तोड़ दिया था उसका।” 

रेखा रवि की पत्नी-“हां, माताजी सही कह रही है। हमारी बेटी हर चीज में पढ़ाई लिखाई ,खेलकूद, डांस कंपटीशन सब में अव्वल थी। हमें लगता है कि बच्चे कुछ नहीं समझते, लेकिन वह बहुत समझदार होते हैं और बड़ों से ज्यादा भावुक। थोड़ी बड़ी होने जब एक बार वह आपके लिए पानी का गिलास लेकर आई थी, तब आपने लेने से इनकार कर दिया था, तब वह कमरे में जाकर बहुत रोई थी,पर फिर भी उसने आपके लिए एक ग्रीटिंग कार्ड बनाकर  “आई लव यू पापा, आप वर्ल्ड के बैस्ट पापा हो।”लिखकर कार्ड  हाथ में लेकर रोते-रोते सो गई थी, पर डर के मारे आपको दिया नहीं था। कितनी उदास थी वह।” 

मां-“और जब इस पागल रवि को डॉक्टर ने बताया कि जब त्वचा का रंग बनाने वाली कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं तो उसे विटिलिगो कहते हैं। और यह एक दूसरे को फैलने वाली नहीं होती। तब जाकर इस अकल आई।” 

रवि-“लेकिन मैंने समझने में बहुत देर कर दी। उसके बचपन का बहुत सारा हिस्सा ऐसे ही बीत गया। मैंने बहुत गलत किया मां।” 

मां-“चल कोई बात नहीं, देर आए दुरुस्त आए।” 

रवि-“हां मां, और जब एक बार कक्षा तीन में वह मेरे पिता निबंध लिखकर मेडल  जीत कर लाई थी, तब दूर से मुझे बता रही थी और मैं तब खुद को रोक नहीं पाया था और उसे गले से लगा लिया था। तब भी वह कितना रोई थी और बाद में अपने हाथों से मेरे आंसू पोंछ रही थी और मुझे पानी दे रही थी। तुम सही कह रही हो रेखा,

बच्चे कहते नहीं है लेकिन समझते सब कुछ है। वह दिन और आज का दिन मैं और मेरी साक्षी कभी एक दूसरे के बिना रहे नहीं और आज जब शादी करके उसे विदा किया है तो लग रहा है कि मानो मुझसे कोई मेरा दिल ले गया हो। साक्षी पर कोई दाग नहीं, दाग तो मेरे मन में था। वह तो मेरा चांद है।” 

बातों बातों मे सुबह के 7:00 गए थे और सोए हुए मेहमान भी उठकर आ गए थे और चाय की डिमांड कर रहे थे। अब पापा को शाम का इंतजार था क्योंकि शाम को पापा की लाडली अपने पति के साथ आने जो वाली थी। 

स्वरचित, अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली 

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