चमेली मेरे घर में तीन साल से काम कर रही है । वह मेरे लिए दाएँ हाथ के समान है । वह घर के कामों के अलावा खाना बनाने में और मेरी बेटी की देखभाल में भी मदद कर देती है ।
मैं और मेरे पति दोनों ही दस बजे तक ऑफिस के लिए निकल जाते हैं तो चमेली ही लंचबॉक्स तैयार करना बच्ची को स्कूल छोड़ने का काम कर देती है । मेरे ऑफिस में कदम रखते ही चपरासी ने मेरे हाथ में एक पत्र लाकर रखते हुए कहा कि मेडम यह पत्र कल शाम को आया है ।
मैंने उसे हाथ में लिया लंच में पढ़ूँगी सोचते हुए बैग में रख कर काम करने लगी ।
मैं मन ही मन सोच रही थी कि पत्र किसने लिखा होगा फिर वह काम में इतना व्यस्त हो गई थी कि उसकी याद ही नहीं आई । जब लंच का टाईम हुआ तो मैं भी औरों के साथ मिलकर लंच करने लगी । लंच ख़त्म कर बॉक्स रखते समय याद आया था कि मेरे लिए एक चिट्ठी आई है ।
उसे बैग में से निकाल कर खोला तो बहन रिचा का था । उसे खोलकर पढ़ने लगी ।
दीदी प्यार,
दो दिन से पिताजी की तबियत बहुत ख़राब है। डॉक्टर के पास लेकर गई थी तो उन्होंने कुछ टेस्ट कराने के लिए कहा है । टेस्ट कराने के लिए कम से कम हज़ार रुपयों की ज़रूरत होगी । पिताजी का पेंशन अभी तक आया नहीं है । वैसे भी पेंशन खर्च कर लिया तो महीना कैसे चलाएँगे । इसलिए हो सके तो एक हज़ार रुपये भेज सकेगी क्या?
देख दीदी हुआ तो ही भेजना वरना इस बात को यहीं भूल जा । उसके बारे में मत सोच । मुन्नी कैसी है ? अच्छे से पढ़ाई कर रही है ना ? जीजू कैसे हैं ? दीदी हो सके तो एक बार पिताजी को देखने के लिए आ जाना । अच्छा चल अपना ख़याल रखना ।
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रिचा
मैं पत्र पढ़ने के बाद उसे फ़ोल्ड करके अपने बैग में रखते हुए सोच रही थी कि माँ के गुजर जाने के बाद पिता जी ने ही हम दोनों बहनों की देखभाल की है। माँ जब गुजर गई थी तब मैं आठ साल की थी और रिचा छह साल की थी ।
वे खुद एक सरकारी ऑफिस में नौकरी करते थे । उन्होंने मुझे डिग्री तक पढ़ाया और शादी भी अपनी हैसियत से बढ़कर की थी । उन्होंने मेरी शादी के लिए अपने रिटायर होने के बाद आए हुए पैसे और कुछ पेंशन के पैसे भी खर्च कर दिया था ।
मेरी शादी को हुए दो साल हो गए थे और मैं भी पति के साथ नौकरी करते हुए दो हज़ार से ज़्यादा कमाने लगी थी । लेकिन क्या फ़ायदा है ? मुझे वेतन मिलते ही तनख़्वाह लाकर पति के हाथों में रख देना पड़ता है । मेरी ज़रूरत के लिए जो भी पैसे चाहिए वह मेरे हाथ में दे देते थे ।
अब उनसे पिताजी को भेजने के लिए पैसे माँगने पड़ेंगे देखना यह है कि पैसे देते हैं या नहीं ?
शाम को मैं घर पहुँची हाथ पैर धोकर आई कि नहीं चमेली ने चाय लाकर दिया । मैंने चुपचाप चाय पीकर कप वहीं रख दिया । वह समझ गई थी कि मैं परेशान हूँ । इसलिए उसने मुझसे बिना पूछे ही शाम का खाना बना दिया था । उसी मेरे पति सुरेश जी का आगमन हुआ । मेरा मुँह देखते ही कहने लगे थे कि क्या बात है मूड ऑफ है या कुछ और ? इस तरह मेरे सामने मत आया करो यार कहते हुए कमरे में चले गए थे । मैं भी उनके पीछे पीछे पहुँच गई और डरते हुए बहन की चिट्ठी उनके हाथों में पकड़ा दिया था । उन्होंने दो मिनट में पढ़ लिया और बिना कुछ बोले मुझे दे दिया ।
मैं उनके कुछ कहने का इंतज़ार कर रही थी । उन्होंने कुछ नहीं कहा और बाथरूम में फ़्रेश होने के लिए चले गए ।
मैं वहीं बैठकर उनके आने का इंतज़ार करती रही ।
बाथरूम से निकलते ही उसने कहा कि अरे !! तुम अभी तक यहीं बैठी हुई हो चाय वाय नहीं पिलाना है क्या ? उनके लिए चाय लाने के लिए उठने ही वाली थी कि चमेली चाय लेकर आ गई थी ।
उन्होंने चाय पी ही थी कि मैंने धीरे फिर से वही बात दोहराई तो कहने लगे थे कि दो चार दिन छुट्टी लेकर जाओ और उन्हें देख कर आ जाओ ।
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मैंने कहा कि देखने जाने की बात ठीक है परंतु रिचा ने पैसे की बात भी लिखी है ना । आप कहें तो उन्हें एक हज़ार रुपये भी जाकर दे आती हूँ ।
अचानक उनकी आवाज़ में बदलाव आ गया और ऊँची आवाज़ में कहने लगे थे कि पैसे किसके पास हैं । मैंने कहा कि किसी से उधार ले लेते हैं और वेतन आने पर दे देंगे ।
मुझे उधार लेना पसंद नहीं है समझ रही हो ना । मैं भी हार मानने वालों में से नहीं थी इसलिए कहा ठीक है मेरी चूड़ियाँ रखकर पैसे लेते हैं ।
क्या कह रही हो? तुम्हारे गहने गिरवी क्यों रखूँगा वह भी तुम्हारे पिताजी के लिए नहीं यह हरगिज़ नहीं हो सकता है । वैसे भी मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि तुम्हारे पिताजी को शर्म नहीं आती है कि एक शादी शुदा लड़की के करके ससुराल में पत्र भेजकर लड़की से पैसे माँग रहे हैं ।
मुझे बहुत बुरा लगा और आँखें पोंछती हुई कमरे से बाहर आई तो चमेली ने देखा और मुझसे पूछा क्या बात है आप रो क्यों रही हैं ?
मैंने कहा कुछ नहीं है चमेली तेरा काम हो गया है तो अब घर जा कहते हुए मैं रसोई में जाकर रोने लगी थी कि पीछे से चमेली ने मेरे कंधे पर हाथ रखकर कहा कि मैं नौकरानी हूँ इसलिए आप मुझे नहीं बताना चाहतीं हैं ना मेम मैं एक औरत हूँ और आपका दर्द समझ सकती हूँ ।
उसकी बातों को सुनकर मेरे सब्र का बांध टूट गया और मैंने रोते हुए उसे सब कुछ बता दिया । अब मेरा दिल कुछ हल्का हो गया था और उसने भी मुझसे इजाज़त ली और चली गई थी ।
दूसरे दिन सुबह सुरेश ने बिना कुछ कहे अपने काम किए और बिना लंचबॉक्स लिए ऑफिस चले गए । इसका मतलब यही था कि वे कल की बात पर अभी भी ग़ुस्से में हैं । पहली बार मैं अपने आप को इतनी बेबस समझ रही थी । आज तक सुरेश ने जैसे कहा मैंने वैसा ही किया था कभी भी उसे पलटकर जवाब नहीं दिया था और ना ही यह जताया था कि मैं भी नौकरी करती हूँ । मेरा भी पैसा घर खर्च में लगता है । सिर्फ़ एक हज़ार रुपये के लिए उसने इतनी बातें सुना दी थी ।
मुझे भी ऑफिस जाना था पर रुलाई है कि रुक ही नहीं रही थी । मैं फूटफूट कर रोने लगी थी तो चमेली ने आकर मुझे सांत्वना दी और मेरे हाथ में एक हज़ार रुपये रख कर कहा जब देना है तब ही दीजिए ।
मैंने कहा कि तुम्हारे पति ने कुछ कहा तो नहीं?
उसने कुछ नहीं कहा । कल जब मैंने उससे आपके बारे में बताया था तो उसने मुझसे कहा कि मैं आपकी मदद कर दूँ ।
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मैंने पूछा कि तुम्हारे पास इतने पैसे आए कहाँ से ?
उसने कहा कि मैं अपनी तनख़्वाह में से हर महीने दस रुपये की चिटटी बाँधती थी कि मेरी बेटी के लिए कान की एक छोटी सी बाली ख़रीदूँगी । कल ही चिटटी के पैसे आए थे तो मैंने सोचा आपकी मदद कर दूँ ।
एक बात कहूँ मेमसाहेब मैं इतनी मेहनत करके रुपये कमाती हूँ तो मेरे रुपयों पर मेरा अधिकार है । वह कौन होता है मुझे खर्च करने के लिए रोकने वाला । मुझे अपने पैसों को अपने हिसाब से खर्च करने का हक मेरा है ।
मैं उसके हाथों से पैसे लेते हुए सोच रही थी कि चमेली सच ही तो कह रही है कि अपनी मेहनत से कमाए हुए पैसों पर किसी और का अधिकार कैसे हो सकता है । चमेली ने कहा कि आपको ऑफिस के लिए देरी हो रही है । यह लंचबॉक्स लीजिए और जाइए ।
मैंने ऑफिस के लिए निकलकर जाते हुए चमेली से कहा कि चमेली मैं तुम्हें तुम्हारे पैसे तनख़्वाह मिलते ही दे दूँगी और गुनगुनाते हुए निकल गई थी । चमेली को देख कर मेरे मन का डर ख़त्म हो गया था और मन में हिम्मत जाग उठी ।
ऑफिस पहुँच कर मैंने प्यून को बुलाया और उसके हाथों में पैसे और पिता के घर का पता लिखकर देते हुए कहा कि यह पैसे इस पते पर मनीआर्डर कर देना।
पैसे भेजकर मेरे दिल को सुकून मिल गया था क्योंकि अब मैं स्वतंत्र हूँ ।
के कामेश्वरी
बेटियाँ जन्मोत्सव की प्रतियोगिता कहानी नंबर ( 6 )