Moral Stories in Hindi :
सामने दीवार पर नीलिमा की फोटो टंगी हुई थी। सुंदर सुनहरे फ्रेम में मुस्कुराती हुई…!
अविनाश के आंखों में आंसू आ गए।
उसने वहां रखे दीए को जलाया और अगरबत्ती दिखाते हुए नीलिमा से कहा “नीलू अब तो तुम्हारी शिकायत दूर हो गई होगी! मैं एक अच्छा पिता बन गया।भले ही सारी क्रेडिट तुम्हारी और भानु की थी फिर भी थोड़ा हाथ मेरा भी था।
अब तो शिकायत दूर हो गई होगी ना।”
यह कहकर उसने अपनी पत्नी नीलिमा के फोटो को प्रणाम किया। उसकी आंखों से आंसू झर झर बहने लगे।
उसने कहा
“नीलू ,आज तुम्हारा सपना पूरा हो गया। तुम्हारा बेटा आज मेरी तरह ही एक कामयाब डॉक्टर बन चुका है। मुझसे भी ज्यादा आगे चला गया।
अपने कॉलेज में टॉप कर गोल्ड मेडल हासिल किया है।
दुनिया भर के मेडिकल संस्थान उसे बुला रहे हैं।कर रही हो ना प्राउड फील! मैं भी कर रहा हूं …!”
अविनाश लगातार बोलता जा रहा था। उसके कंधे पर किसी का स्पर्श महसूस हुआ।
उसने पीछे पलट कर देखा गायत्री बुआ खड़ी थीं।
” बुआ, आप कब आईं?”
” बस अभी ही…!” गायत्री बुआ की आंखों में भी आंसू थे। उन्होने आगे बढ़कर अविनाश को गले से लगा लिया और उसकी आंखों से आंसू पोंछते हुए कहा
” बेटा, सब तुम्हारी मेहनत है। तुमने ही तो सब कुछ किया है।
एक बिन मां के बच्चे को मां का प्यार देना आसान नहीं होता। तुमने वह भी दिया। आज भानु ने जो कुछ हासिल किया है, उन सब के पीछे तुम्हारा ही तो हाथ है।
अपने आप को दोष मत दो, चलो…!” उन्होंने डॉक्टर अविनाश का हाथ पकड़ कर बाहर ड्राइंग रूम में ले आईं और उसके मुंह में एक रसगुल्ला डालते हुए कहा
” मुंह मीठा करो ,बहुत शुभ घड़ी है।”
वहां अविनाश की मां ,पिता भाई भी थे।
सबने उसे सांत्वना दिया।
उसकी मां ने कहा
” दिल छोटा मत करो अविनाश, काश आज नीलू यहां होती!”
” हां मां आप बिलकुल ठीक कह रही हैं।
मां बार-बार नीलू मुझे यही शिकायत किया करती थी आपके पास तो मेरे लिए टाइम ही नहीं है, कम से कम अपने बच्चे के लिए तो समय निकाल लिया कीजिए ।
बेचारा आपका आसरा देखते हुए सो जाता है और आपके जागने से पहले स्कूल चल जाता है।
कितनी सारी बातें उसे बतानी होती है पर वह बता नहीं पाता …!”
” नीलू, इस समय मुझे अपने पैर जमाने हैं ।जहां हजारों डॉक्टर एक लाइन पर खड़े हैं वहां मेरे पास क्यों आएगा कोई ?
जब तक मैं अपना हंड्रेड परसेंट नहीं दूंगा तब तक सरवाइव करना मुश्किल है।”
यह डायलॉग हुआ वह नीलू को तब से दे रहा था उसकी शादी हुई थी।
देखते ही देखते भानु का उन दोनों की जिंदगी में आ गया ।
कब वह स्कूल जाने लगा, उसका भी उसे ख्याल नहीं।
सारे काम उसके दादा दादी ,चाचा चाची या फिर नीलिमा खुद करती थी।
अविनाश बस पैसे कमाने की मशीन बनता जा रहा था।
कभी-कभी अकेलेपन से त्रस्त होकर नीलिमा उसे पर खींझ पड़ती थी
” अविनाश, कभी तो मेरे लिए समय निकाल लिया करो। सिर्फ तुम और तुम्हारा प्रोफेशन तुम्हारी जिंदगी यही है।”
अविनाश उसे समझाने की कोशिश करता और समझा भी देता था।
उसे लगता नीलिमा सब कुछ समझ गई है जबकि नीलिमा चिढ़ कर बात बदल दिया करती थी।
एक दिन ऐसे ही नीलिमा डेंगू से पीड़ित होकर अचानक ही चल बसी।
बस तीन दिनों की मामूली बुखार ने उसके प्राण हर लिए थे।
अविनाश ने दिन-रात एक कर उसकी जान बचाने के लिए क्या-क्या नहीं किया।
यहां तक की पूरी रात जाकर उसने गणपति के मंत्रों का पाठ भी किया था।
लेकिन ईश्वर ने ना उसकी भावनाओं पर दया दिखाया और ना उसकी पूजा पाठ पर।
तीन दिनों के बुखार में नीलिमा अचानक ही चल बसी।
बड़ी मुश्किल से उसने अपनी आंखें खोल कर अविनाश से कहा था
“मेरे भानु को संभाल लेना।
मैं अच्छी मां नहीं बन पाई, पर तुम अच्छे पिता बन जाना।”
“नीलिमा, तुम्हें कुछ भी नहीं होगा। मैं हूं ना। सब ठीक कर दूंगा।”
अविनाश ने उसके हाथों में हाथ लेते हुए कहा लेकिन नीलिमा धीरे-धीरे बुखार के जोर में डूबती चली गई और फिर हमेशा के लिए इस दुनिया से चली गई।
अविनाश इस बात के लिए तैयार नहीं था।उसका दिल टूट गया था और दिमाग पूरी तरह से हिल गया था।
कभी नीलू गुस्से में उसे ताने दिया करती थी और शिकायत किया करती थी कि उसके पास उसके लिए समय नहीं है!
यही बात अविनाश ने दिल से लगा लिया।
उसने अपना पूरा टाइम अपने बेटे को पालने में लगा दिया। उसकी पढ़ाई लिखाई और सारी जरूरतों के हिसाब से वह अपने अस्पताल और अपनी रूटीन का शेड्यूल बनाया करता था।
अब पुरानी बातें खत्म हो चुकी थी और आज का दिन था कि भानु अपने मेडिकल कॉलेज का टॉपर था। उसे गोल्ड मेडल मिलने वाला था।
आज अविनाश अपने आत्मग्लानि से पूरी तरह से उबर चुका था।
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सीमा प्रियदर्शिनी सहाय
#शिकायत