छलनी कर डालना – पुष्पा जोशी : Moral Stories in Hindi

 ‘बस ताऊजी आप रहने दीजिये,ये मेरी माँ है इनका ध्यान मैं रख लूंगा।’   ‘देखो तो इसकी हिम्मत अपने ताऊ से जबान लड़ा रहा है, तेरी इतनी हिम्मत, अभी बताती हूँ।’ कहकर विमला जी ने कृष्णा को मारने के लिए हाथ उठाया तो उसने उनका हाथ पकड़ लिया।

वह बोला- ‘माँ हम अब यहाँ नहीं रहेंगे’  ‘तो कहाँ रहेंगे?’  ‘ ‘कहीं भी, बस यहाँ नहीं।’उसने अपनी माँ का हाथ पकड़ा और घर के बाहर निकल गया। कृष्णा मात्र तेरह साल का था। कहने को तो वह इस घर का हिस्सा था। दीनदयाल जी का पोता जिनकी शहर में सबसे बड़ी हवेली थी,

और रईस लोगों में उसकी गिनती होती थी। मगर दीनदयाल जी और उनकी पत्नी शोभा जी के देहांत के बाद ‌कृष्णा और उसकी माँ की हालत नौकरों से भी बदतर हो गई थी। कृष्णा के तीन ताऊजी और तीनों ताई का साम्राज्य था। कृष्णा के पिता का देहांत हो गया था और उसकी माँ सरला गरीब घर की थी

और ज्यादा पढ़ी लिखी भी नहीं थी। उसके साथ घर में नौकरों की तरह व्यवहार होता था, वह दिन भर काम करती और बदले में उसे और उसके बेटे को खाना कपड़ा मिल जाता। घर में उसकी कोई इज्जत नहीं थी। जिसको जो मन में आता बोल देते। उनकी कही तीखी बातें सरला के दिल को छलनी कर डालती,

मगर वह सब सहन करने के लिए विवश थी, न मायके में कोई था जो उसे आश्रय देता, न वह ज्यादा पढ़ी लिखी थी।कभी सोचती कहाँ जाएगी,बेटे के सिर पर  कम से कम एक छत है।कृष्णा के आगे वह कभी कुछ नहीं कहती थी। वह सरकारी स्कूल में पढ़ रहा था, सोचती थी कि पढ़ -लिख कर कुछ बन जाएगा।

कृष्णा को भी सबके व्यवहार से दुःख होता, कुछ कहने की कोशिश करता,तो माँ कसम देकर रोक देती। मगर आज सुबह से ही सरला को बुखार था, उसने घर पर झाड़ू पौछा किया। फिर उसे चक्कर आ गया और वह गिर गई। कृष्णा ने उसे सहारा देकर उठाया और बिस्तर पर सुला दिया।

तभी उसकी ताई विमला जी आकर जोर जोर से चिल्लाने लगी महारानी यहाँ आराम कर रही है, खाना कौन बनाएगा, भी तो बर्तन भी नहीं मंजे है। मुफ्त की रोटी तौड़ने के लिए चाहिए। सरला कुछ नहीं बोली कृष्णा ने कहा ताई जी आज मम्मी को बुखार है, वह काम कैसे करेगी।

इस बात पर बवाल मच गया। विमला जी के पति राजेश जी ने कहा क्यों बेकार मुंह लगती हो, यह बुखार की गोली देदो बुखार उतरेगा तो अपने आप काम करेगी, हम मुफ्त की रोटी थोड़ी देंगे। ताऊजी और ताई जी के शब्दों के बाण ने कृष्णा के मन को छलनी कर दिया।

पता नहीं कैसे कृष्णा के अन्दर ताकत आ गई और वह माँ को लेकर घर के बाहर निकल गया। निकल तो गया पर जाए कहाँ राम मंदिर की सीढ़ियों पर माँ को लेकर बैठ गया। माँ को कुछ सुध नहीं थी उन्हें बहुत तेज बुखार था।

मंदिर के पुजारी जी ने जब सरला को देखा तो उन्हें दया आ गई उन्होंने उसे दवा दी और मन्दिर के कार्यकर्ताओं के लिए बने कमरों में से एक कमरे में रहने के लिए जगह दी। भोजन भी दिया। कृष्णा ने उन्हें सबकुछ सच बतला दिया।

दो दिन में सरला का स्वास्थ ठीक हो गया। पुजारी जी  ने मंदिर में उन्हें शरण दी। वे दोनों मन्दिर और मन्दिर के प्रांगण की साफसफाई का काम करते और भी जो छोटे मोटे काम रहते वे कर देते। बदले में उन्हें कुछ वेतन भी मिलता और भोजन भी  मिलता। कृष्णा पढाई भी करता और मन्दिर के पवित्र माहौल में उसका मन प्रफुल्लित रहता। अब मन किसी के व्यंग बाणों से छलनी नहीं होता।कृष्णा और उसकी माँ दोनों बहुत प्रसन्न रहते थे।

प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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