चाहत (भाग 4 ) : hindi stories with moral

hindi stories with moral : मीरा का जन्मदिन आया तो घर में ही छोटा सा आयोजन किया गया. उसे मिले सभी तोहफे अच्छे पर जिस तोहफे में आज उसकी जान बस गई थी वो थीं वैभव की दी हुई चांद बालियां .खूबसूरत गहरे नीले रंग की वेलवेट की डिबिया में सजी बालियां उस दिन से उसका सबसे प्यारा गहना बन गई थीं.

रोज किसी ना किसी बहाने मीरा इक बार वो बालियां जरूर देखती. मखमली डिबिया पर धीरे से अपनी उंगलियां फिराती और फिर सहेज कर अलमारी के अंदर रख देती. ऐसा करते हुए मीरा का चेहरा खिले हुए फूल समान हो जाता था.

मन ही मन मीरा वैभव को बहुत चाहने लगी थी.बेशक पति पत्नि का संबंध अभी पूर्ण न हुआ हो पर शारीरिक मिलन से परे वह दिल की गहराइयों से वैभव से जुड़ चुकी थी.

एक दिन शाम को वैभव घर आया तो उसका सर दर्द से फटा जा रहा था.सीधा बेडरूम में जाकर लेट गया वो.

मीरा” उसने पुकारा तो मीरा जल्दी से अंदर आई और उसकी हालत देख कर घबरा गई.

जल्दी से उसका सर उसने अपनी गोदी में रख लिया.

“क्या हुआ आपको?”

“सर दर्द से फटा रहा है…उफ ये इतना तेज दर्द..”

“आपका माथा तो तप रहा है..”

मीरा भागती सी वहां से गई और ठंडे पानी का कटोरा लेकर लौटी.डॉ. को भी फोन कर दिया था उसने. डॉक्टर के आने तक वो लगतार उसके माथे, हाथों और पैरों को ठंडे पानी की पट्टियो से सेंकती रही.

डॉक्टर ने आकर पूरा चेकअप किया तो पाया कि वायरल बुखार था.बेहद कमजोरी आ चुकी वैभव के शरीर में.

अगले कुछ दिनों में मीरा ने वैभव की सेवा अपनी जी जान लगा दी..किसी किसी रात को बुखार काफी तेज हो जाता था.अर्धबेहोशी की स्थिति आ जाती थी तब मीरा भी पूरी रात जागती आंखों में ही काट देती थी.

हफ्ते भर बाद एक दिन जब सुबह वैभव की आंख खुली तो देखा कि मीरा उसके साथ ही अधलेटी अवस्था में सो रही थी.सोते हुए कितनी मासूम लग रही थी.वैभव का बिलकुल दिल नहीं चाहा कि वो उसे उठाए पर ना जाने कैसे मीरा की आंखें खुद ही खुल गईं.

“सो लो ना कुछ देर अभी और”

मीरा ठीक से उठ कर बैठ गई.

“अब कैसा महसूस कर रहे हैं आप?”

“बहुत अच्छा… थैंक यू सो मच.. इतने दिनो इतना सब करने के लिए.” आवाज़ में चाहे कमजोरी थी पर वैभव की आंखों में उसके प्रति प्यार का सागर हिलोरें मार रहा था.

“कैसी बात कर रहे हैं आप..आप फ्रेश हो लीजिए..मैं नाश्ता और दवाई ले कर आती हूं.”

 एक दिन वैभव कुछ जल्दी में था. 

मीरा मेरी ग्रीन वाली फाइल लाना ज़रा.”

 मीरा ने कोने की टेबल पर से फाइल उठाई, साथ ही वैभव का पर्स भी पड़ा था, मीरा ने उसे भी उठा लिया. जल्द बाज़ी में पर्स नीचे गिर पारा. कुछ कार्ड्स के साथ इक छोटी सी तस्वीर भी नीचे गिर पड़ी थी.

मीरा ने तस्वीर उठाई और ध्यान से देखी.तस्वीर एक लड़की की थी.गोरा रंग,बड़ी बड़ी आंखें, कंधों तक कटे भूरे रंग के बाल. फिरोज़ी रंग के सूट के साथ कानों में बालियां सजाए हुए. 

मीरा, उधर से वैभव ने आवाज़ दी.“

मीरा ने तस्वीर दोबारा पर्स में रख दी  और फाइल लेकर वैभव के पास पहुँची.

 “यह लीजिए”मीरा का स्वर ठंडा था.

 “अच्छा चलता हूं.कहकर वैभव निकल गया.

मीरा पूरा दिन कमरे से बाहर नहीं निकली. कौन थी यह लड़की जिसकी तस्वीर वैभव के पर्स में थी, क्या रिश्ता इतना नज़दीक का था की उसकी तस्वीर वैभव के पर्स में रहती थी. इतने वक्त में वैभव ने कभी अपना पर्स यहाँ वहां ना रखा था. आज अनजाने में पर्स मीरा ने उठाया होता तो यह सब वह कभी जान भी पाती. परिवार में सबकी प्यारी कभी पति की प्रिए बन पायी,क्या सिर्फ इस लड़की की वजह से. अगर वैभव इस लड़की को इतना ही चाहते थे तो उससे क्यों शादी की. क्यों उसके भावनायों से खिलवाड़ किया, क्यों सात फेरे लेकर उसकी ज़िन्दगी को भँवर में छोड़ दिया. गाड़ी से उतर कर दरवाजा बंद करके उसने कदम आगे बढ़ाए तो दो बूंद आंसू उसकी आंखों से छलक गए थे.

चाहत (भाग 5)

चाहत (भाग 5 ) – जगनीत टंडन : hindi stories with moral

चाहत (भाग 3 )

चाहत (भाग 3 ) – जगनीत टंडन : hindi stories with moral

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!